हर Movie में कोई ना कोई किरदार मुझे अपने करीब लगता है, और 'धोबी घाट' का अरुण तो मुझे अपने बिलकुल करीब लगा. वो Artist है, serious है लेकिन Simple भी. कभी वो इतना फालतू है कि यास्मिन के Video घंटो देखता रहता है और कभी इतना Busy कि Paintings से वक़्त ही नहीं मिलता. वो जिस तरह से Serious होकर सोचता है मुझे अच्छा लगता है. उसकी creativity को Area चाहिए, broad एरिया. इसीलिए उसे पुरानी मुंबई में फ्लैट चाहिए. ऐ फिल्म ही किसी epic के पहले अध्याय कि तरह है या किसी महाकाव्य के कुछ अधूरे पन्नों कि तरह जिसके बाकी पन्ने लिखना कवि भूल गया हो. मुन्ना बिलकुल मासूम है, बोलते वक़्त आँखे मिचकाता है, और एक ही वाक्य में बात ख़त्म कर देता है. ...और उसका वो कहना, कि वो दरभंगा बिहार से है, लेकिन घर कि याद नहीं आती क्यूंकि वहां उसे खाने कम मिलता था. मुंबई पता नहीं कितनों के लिए एक स्वप्न कि तरह है, जाने कितने लोग यहाँ आये और मुन्ना कि तरह ही झुग्गियों में लगभग जानवरों सी ज़िन्दगी जी रहे हैं. मुन्ना चूहे भी मारता है (मुझे अभी पता चला कि गवर्मेंट ने झुग्गियों में चूहे मारने बाले लगा रखे हैं, जिससे प्लेग ना फैले.) और उसे अपने इस काम से नफरत है. लेकिन उसे 'शाई' से प्यार हो गया है. 'शाई' कुछ अजनबी सी है, खुद से ही. banker है लेकिन शौक Photography है. साईं को अरुण से पहली बार में ही प्यार हो गया जैसे उसे भी किसी कि तलाश थी जो उसी कि तरह अधूरा हो. उसे शायद US की साफ़ सड़के अच्छी नहीं लगी इसीलिए Shining India में असली भारत की तस्वीर ले रही है. और सबसे अहम् 'यास्मिन की दीदी' के वो चार विडियो ख़त..पूरी कि पूरी फिल्म उन्ही पे टिकी है. ज़िन्दगी कि जंग में कभी अरमान हमपर भारी होते हैं, कभी ज़िन्दगी और कभी अवसाद. जब अवसाद भारी होते हैं तो हम जंग हारना शुरू कर देते हैं. कितने अरमान के साथ उसे उसके माँ-बाप ने एक मुम्बईया से ब्याह था और वही उसकी ज़िन्दगी ले गया. उसकी आत्महत्या एक हत्या ही तो थी.
ज़िन्दगी में सपने पाल लो तो वे हमे अपनी ज़िन्दगी जीने नहीं देते और पूरे हो जाएँ तो बस जीवन ही जी लिया, एक पल में ही. कितनों के सपने ढल गये, कितनों के बह गये. लेकिन मुंबई वहीं खड़ा है, सागर किनारे अपने से बतियाता. Mumbai Diaries यही है, एक क्षितिज जो सपनों को दर्दनाक हकीकत से मिलवाता है. किरण राव तुम्हें सलाम!
ज़िन्दगी में सपने पाल लो तो वे हमे अपनी ज़िन्दगी जीने नहीं देते और पूरे हो जाएँ तो बस जीवन ही जी लिया, एक पल में ही. कितनों के सपने ढल गये, कितनों के बह गये. लेकिन मुंबई वहीं खड़ा है, सागर किनारे अपने से बतियाता. Mumbai Diaries यही है, एक क्षितिज जो सपनों को दर्दनाक हकीकत से मिलवाता है. किरण राव तुम्हें सलाम!