कुछ लड़कियां ज़मीं होती हैं, कुछ आसमां,
कुछ नींद होती हैं, कुछ ख़्वाब,
कुछ नदी होती हैं, कुछ समंदर,
कुछ लड़कियां छत होती हैं, कुछ घर.
तुम रेयर कॉम्बिनेशन हो,
तुम ये सबकुछ हो!
*
भाषा खत्म हो जाएगी,
मैं तुम्हें कविता से पुकारूंगा.
कविताएं भाषाओं से नहीं
संवेदनाओं से लिखी जाती हैं.
कविताएं मुख से नहीं
एहसासों से कही जाती हैं.
*
तुम्हारे होंठों को चूमकर
ईश्वर के सबसे करीब होता हूं.
सीता ने
प्रेम से राम को
राधा ने
प्रेम से कृष्ण को
ईश्वर बनाया है!
*
तुम्हारी हंसती आंखों में
निश्छलता रहेगी जबतक
प्रेम
बना रहेगा धरती पर
तबतक.
*
मुझे यकीं है
सिर्फ प्रेम ही
किसी को पवित्र कर सकता है
कर्मकांड नहीं!
*
यौवन के
हर कोने पर निशां हैं.
देह के
हर हिस्से पर कोंपल सा फूटा हूं.
तुम्हारी आत्मा पर
कविता बोई है मैंने.
कैसे और कहां
जाओगे मुझे छोड़कर!
*
मैंने जब
नौकरी की,
रीढ़ की हड्डी खोई,
फाइनेंशियल मैनेजमेंट सीखा
सोशल सिक्योरिटी की परतें ओढ़ी.
सोशल स्टेटस समझा,
फिर लोगों को आंखों में
उसका दंभ देखा...
मैं जान गया
मैं इस दुनिया के लिए
नहीं बना हूं.
*
जब जब मैं मद्धम पड़ता हूं
तुम उग आते हो
उजाले की तरह.
*
किसी कविता सी तुम
फूट पड़ती हो घावों से
दर्ज़ के बीज से जैसे
फूट पड़ा है कोई पौधा.
जख्मों से
निकल पड़ी हैं कविताएं,
कहानियां, कई चित्र.
शुक्रिया दर्द का, जख्मों का.
*
मैंने तुम्हें ज़िंदा रखा है
किस्सों में, कहानियों में,
कविताओं में.
देह...
देह से परे
कवि ही किसी को
ज़िंदा रख सकता है...
कलम से.
*
लेट होने पर जो तुम
गुस्सा करती हो
मॉर्निंग वॉक न करूं तो
मुंह फुलाती हो
ऑफिस से आ कितना बतियाती हो
कुछ बातों पर कितना घबराती हो
मेरे मजे लेती हो
कितना खिलखिलाती हो
बच्चे से चिपक
मासूम सो जाती हो
भीड़ में हाथ पकड़
जो मुस्कुराती हो
किसी पार्टी में
कोने में ले जा बतियायी हो
चूम लूं, लजाती हो.
तुम बहुत भाती हो.
*
कुछ कविताएं
कितनी गरम होती हैं
जैसे पीठपर
तुमने अधर रख दिए हों.
*
मेरे सीने में जमा
जो समंदर है
कहो
क्या तुम्हारे भी अंदर है?
सही की धार में बहते हो?
गलत को गलत कहते हो?
*
मैं अगढ़ ही रहना चाहूं तो?
तराशकर कहीं रखा जाऊं
सब देखें, पूजा करें.
मैं किसी पहाड़ का,
किसी नदी में बहता
अगढ़ पत्थर ही रहना चाहूंगा.
*
ईश्वर को सबसे ज्यादा याद
कृषक ने किया.
ईश्वर ने सबसे कम
कृषक की सुनी.
*
एक शहर था
जहां तुम्हारे होने तक मैं था
तुम्हारे होंठों को चूम मैंने
उस शहर को छोड़ा.
वो शहर
तुम होंठो में जमाकर
साथ ले गई हो.
बड़ा ताल जमा किया था होंठों पर
प्यास में फिर भी वे
सुना है मेरी राह तकते हैं!
*
कि मेरे शहर आओ
वो पेड़ अब भी चहचहाता है
वैसे ही,
वो नदी अभी बजे जा रही है
वैसे ही,
चौराहा वो निरंतर जी रहा है
वैसे ही.
तुम्हारे हमारे जाने से
कुछ तो नहीं बदला.
एक रिश्ता,
एक सपनों के घर के अलावा.
*
मैं तुम्हें सुलगा लेता हूं जानम
किसी शाम कातर होती आंखों में
भर जाता है उम्मीद का धुंआ.
*
एक दिन
कविता यूं ही अटक जायेगी
एक सांस
यूं ही थम जायेगी
कोई ख्वाब
यूं ही आंखों में रह जायेगा
एक टीस
बची रह जायेगी.
आसमां के गीत पर
सुबह को चादर ओढ़ गुनगुनाऊंगा.
एक रोज दुनिया से निकल
मैं दुनिया का हो जाऊंगा.
*
तुमसे एक अंतिम बात कहनी थी
ख्वाब सड़क पर पड़ी टहनी थी
एक सिरे पे जिसके तुम्हारा नाम था
पेड़ की दूसरे सिरे पे आस बंधी थी.
मेरे जिस्म में पत्ती रहनी थी.
ख्वाब सड़क पर गिरी टहनी थी.
*
तुम्हारे पास
जान रखकर वो लड़का
ज़िंदगी ढूढने चला है.
जिंदगी ढूंढ ले वो
तो बताना
बेजान जीने की अगर कला है.
*
मैंने कविताएं लिखीं
प्रेम सार्वजनिक कर दिया
मैंने कविताएं लिखीं
दुःख सार्वजनिक कर दिया.
मेरे दोस्त,
सबकुछ तुम्हारे साथ ही नहीं
घटित हो रहा है पहली बार.
यकीन न हो तो
मेरी कविताएं पढ़ लेना.
*
प्रेम के खातिर
मारे जाते हों युवा
जिस समाज में
वो समाज कैसे कहला सकता है?
कहला भी ले तो
सभ्य कैसे कहा जा सकता है?
*
इंतजार करते रहे हम
कि सुंदर होगा जहां में कुछ और.
और बस गए हम.
तुम्हारे होंठों में बना घर
ताउम्र रह गए हम.