Tuesday, August 29, 2023

तुम

तुम उस भोर सी दीप्त हो 
जो एक सुखद शुरुआत की
आभा लिए प्रकाशित होती है. 

तुम उस देहरी सी दीप्त हो 
 जिसे हर दिवाली घर से वापस जाते 
प्रतीक्षा में छोड़ आता हूँ. 

Monday, August 28, 2023

Love and Goodbyes



अप्राप्य और प्राप्य के बीच 
तुम्हारी उँगलियों की पोरों पर 
अपने आंसू रख चला आया था. 

जो प्राप्त है मेरे पास 
उसके प्राप्य का सुख है. 
जो अप्राप्य, उसके लिए शुभकामनायें. 

... और एक ख़त,
जिसमें लिखा गया 
'कितना गहन प्रेम है हमें'
लेकिन कभी भेजा नहीं गया. 

Sunday, August 27, 2023

    इक ख़त, जिसमें लिखा था कि

कितनी मोहब्बत है हमें
बस लिखा गया, कभी भेजा नहीं गया।
एक ख़त, जिसमें लिखा था कि
कितनी मोहब्बत है तुम्हें,
उसका रहा इंतजार।
एक कविता जिसमें तुमने इश्क को
नमक की तरह स्वादानुसार
जरूरत कहा था
मैंने दूसरी दफा नहीं पढ़ी।
एक कविता जिसमें लम्स का एहसास
अनंत तक रहता है साथ
मेरी फेवरेट है।
अपृथक की जाने वाली जगहों से
तुम्हारे अनुसार
स्त्री खरोंच खरोंचकर कर दी गई है अलग।
मेरे अनुसार
प्रेम, आस्था, समर्पण और उत्तरदायित्व
इनमें से किसी एक की कमी
किसी पुरुष में,
उसे इतना कमजोर बनाती है
कि स्त्री से वह दुर्भावनापूर्ण व्यवहार करता है।
एक स्त्री, एक प्रेम
उतने ही पवित्र हैं
जितनी मंदिर में रखी अबोध प्रतिमा!
Vivek Vk Jain | Dec 2022
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Saturday, August 26, 2023

Papa's Letters to Shaurya. #SecondLetter

 


तुम स्वतंत्रता दिवस प्रोग्राम की तैयारी कर रहे हो। यूट्यूब से वीडियो देख वाकई बहुत अच्छा कर रहे हो। हम दोनों तुम्हें देख रहे हैं और हमारे लिए बड़ा इमोशनल मोमेंट होता है। तुम्हारा डांस, हर एक एक्ट, हरकत वाकई बहुत प्यारी है। हम दो-तीन बार तुम्हारे वीडियो बनाते हैं। 

14 अगस्त को कल्चरल प्रोग्राम है, तुम स्कूल पहुंचते ही रोने लगते हो, हमेशा की तरह। मैं कोशिश करता हूं पर तुम चुप ही नहीं होते। पहला परफॉर्मेंस प्ले के बच्चों का ही है और तुम रोते हुए स्टेज पहुंचते हो। मैं इमोशनल हो जाता हूं और तुम्हें स्टेज से उतार गोद में ले लेता हूं।

ऐसा अक्सर होता है, हमारे पूर्व की तैयारी अच्छी होती है पर कभी-कभी मुख्य परफॉर्मेंस के समय ऐसा नहीं हो पाता... कभी-कभी कुछ-कुछ Unexpected घट जाता है, जिसके लिए हम तैयार नहीं होते हैं।

ऐसा इस तरह का है जैसे Fully Prepared सचिन का टेनिस एल्बो के कारण खेल नहीं पाना या किसी डांसर के पैर में परफॉर्मेंस से पहले चोट आना।

तुम बड़े हो जाओगे तो समझोगे कि जिंदगी जीत नहीं है, हमेशा बेहतर परफॉर्मेंस नहीं है, हमेशा फॉर्म में रहना नहीं है। जिंदगी अपने Highs और Lows को एंजॉय करना है। दोनों जगह पर, दोनों बार कुछ-कुछ सीखना है। Lows में बेहतरी की नई कोशिश और Highs में बेहतरी की और अधिक कोशिश!

मुझे मेरी पहली परफॉर्मेंस याद है। मैं तब करीब 4 साल का था। (तुम ढाई साल के भी नहीं हो, शायद तुम्हें याद भी ना रहे।) स्कूल में परफॉर्मेंस थी। मुझे "मछली जल की रानी है..." स्टेज पर जाकर बोलना था। मैं स्टेज पर बस सर खुजलाता रह गया। मैं भूल ही गया कि क्या बोलना था। कुछ दूर पर अतिथि के रूप में स्टेज पर बैठे तुम्हारे दादाजी से बोलता हूं कि "पापा, सर खुजला रहा है।" और वो हंसने लगे। जबकि ऐसा था भी नहीं। बस नर्वस होने के कारण ऐसा कर रहा था।

तुम्हारे दादाजी ने इस घटना का जिक्र कभी किया नहीं और स्कूल में मुझे बिल्कुल Stage Fear नहीं था। अच्छा स्टेज परफॉर्मर था। 

Lows शायद किसी धावक का दौड़ने के पहले झुककर अपना पैर पीछे करना है। Highs एक सीढ़ी चढ़ अगले की पुनः तैयारी करना है।

ओशो अपने प्रवचन में कहते हैं कि "भगवान महावीर ने कहा है आप जैसा/जो बनना चाहते हैं वैसा/वो सोचना शुरू कर दो।" मजेदार बात ये है कि 2600 साल बाद ब्रह्माकुमारी सिस्टर शिवानी भी बिल्कुल यही बात बोलती हैं।

दौ हजार छः सौ साल बाद भी फिर से वही बात क्यों बोलनी पड़ रही है? ज्ञान का पुनः प्रसारण क्यों जरूरी है? एकाग्रता क्या है? किसी और पत्र में बताऊंगा...

तुम्हारे पापा

#शौर्य_गाथा #Shaurya_Gatha

Thursday, August 24, 2023

शौर्य गाथा 70.

 भाई साहब के हाथ में मोबाइल चार्जिंग केबल है। भाई साहब के पापा को लगता है कि वे गले में न फंसा लें ।इसलिए पापा उनसे लेने की कोशिश करते हैं।

"पापा, मैं खेल रहा हूं।" भाईसाहब देने से इंकार कर देते हैं।
पापा उनके साथ खेलना शुरू कर देते हैं। भाईसाहब पापा के कंधे पर केबल डाल देते हैं, जैसे साड़ी का पल्लू डाला हो।
"पापा आपने साड़ी पहन ली। तैयाल हो दए। तलो ऑफिस तलें?" और फिर हंसने लगते हैं।
फिर अपनी कमर पर लगाते हैं। "पापा मैंने बेल्ट पहन लिया। ऑफिस तलें?"
पापा: "मैं बेल्ट पहन लूं, फिर ऑफिस चलेंगे।"
पापा उनके हाथ से केबल लेकर बेल्ट सा पहनते हैं और फिर "बाय.." बोल रूम से निकल जाते हैं।
भाईसाहब पीछे से चिल्ला रहे हैं "पापा... मुझे भी... मुझे भी..."
...उधर पापा केबल छिपा रहे हैं।

Tuesday, August 22, 2023

Papa's Letters to Shaurya. #FirstLetter

 जब भी तुम्हें स्कूल छोड़ने जाता हूं और स्कूल के गेट से ही तुम रोने लगते हो मुझे बहुत स्ट्रांग होना पड़ता है। तुम्हें छोड़ अपनी भीगीं कोरें लिए मैं चुपचाप लौट आता हूं। जब मैं बोर्डिंग गया था बहुत रोया था। हर दिन स्कूल के मेन गेट पर खड़ा होता था, तुम्हारे दादाजी के इंतजार में। तुम्हारे दादा जी बड़े स्ट्रांग थे मैं थोड़ा-थोड़ा धीमे-धीमे बन रहा हूं लेकिन एक बात जो मैं तुम्हारे साथ नहीं होने देना चाहता वह है 'अकेलेपन का एहसास' और बोर्डिंग के शुरुआती दिनों की खरोंचें जो मेरे साथ हमेशा के लिए रह गई है। मैं नहीं चाहता तुम्हारे साथ भी स्कूल के शुरुआती दिन की यादें आंसू वाली हों। शायद इसलिए भी मम्मा के कहने के बावजूद मैं तुम्हें पकड़ने चला जाता हूं, गले लगा लेता हूं।

लाइफ साइकिल का कॉन्सेप्ट कितना सही है ना! जो हुआ है वह आगे भी होना है और in-between हमें As a Human Grow करना है और इसके बीच हमने क्या क्या गलतियां की हैं हमें हिस्ट्री सिखाती है।
...और इतना कुछ समझ जाने के बावजूद भी यदि आंसू आ रहे हैं तो प्रेम शायद समस्त ज्ञानों के ऊपर है।
पिता कभी अपना प्रेम जाहिर नहीं कर पाते, मां की तरह... हमेशा पापा बनने की कोशिश करते रहते हैं, सख्त बनने की कोशिश... सख्त दिखने की कोशिश... मैं भी सख्त होने की कोशिश कर रहा हूं... अपने आंसू छिपाने की कोशिश कर रहा हूं... लेकिन लिख रहा हूं कि कल जब जता न पाऊं तो तुम समझ सको कि तुम्हारे पापा भी मम्मा की तरह प्यार करते हैं... उतना ही... बिल्कुल उतना ही।
मैंने जो पिताओं के द्वारा लिखे प्रसिद्ध पत्र पढ़े उनमें से एक अब्राहिम लिंकन का है जो उन्होंने अपनी संतान के टीचर के लिए लिखा था... उसका सार मैं एक दिन तुम्हें सुनाऊंगा और दूसरे नेहरू जी के द्वारा इंदिरा गांधी के लिए जेल से लिखे पत्र हैं जो Glimpse of World History नाम से पुस्तक के रूप में जमा किए गए हैं।
मैं भी तुम्हें बताना चाहूंगा कभी कि इतिहास ने क्या-क्या सीख भविष्य के लिए दी थी और क्या-क्या हम अभी तक सीखे नहीं है। इवोल्यूशन की प्रक्रिया में हिस्ट्री का कितना महत्व है बताना चाहूंगा। मैंने जो अबतक जिंदगी से सीखा उसे भी बताना चाहूंगा। शायद समझा भी पाऊं।
तुम्हारे पापा।
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Friday, August 18, 2023

प्रतापी अक्षयकुमार!

 


महाकाव्य रामायण में अक्षयकुमार को पढ़ते पढ़ते अनायास ही महाकाव्य महाभारत के अभिमन्यु का स्मरण हो आता है. यहाँ सोलह साल का कुमार अपने पिता से जिद कर के देश में घुस आये अज्ञात शत्रु से भिड़ने के लिए चला जाता है, वहां तेरह साल का कुमार अपना अधूरा ज्ञान लिए अपने ताऊ युद्धिष्ठर से जिद कर लड़ने चला जाता है. वही ज़िद, वही जूनून. यहां हनुमान इस छोटे से बालक की वीरता देख हतप्रभ हैं और उसकी तारीफ में कहते हैं -


अयं महा त्मा च महां श्च वी र्यतः समा हि तश्चा ति सहश्च संयुगे। असंशयं कर्मगुणो दया दयं सना गयज्ञैर्मुनि भि श्च पूजि तः ॥ २७॥ (वाल्मीकि रामायण)

वहां व्यूह रचनाकार द्रोण, कर्ण जैसे प्रतापी योद्धा उसके कौशल को देख अत्याधिक प्रभावित हैं. यहाँ यह किशोर जहाँ हनुमान जैसे प्रतापी से युद्धरत होकर वीरगति को प्राप्त होता है वहीँ अभिमन्यु के सामने तो द्रोण, कर्ण, दुर्योधन इत्यादि सात सात महारथी थे. वह अंत तक लड़कर वीरगति को प्राप्त होता है.

आप सोच रहे होंगे कि मैं क्यों अक्षयकुमार और अभिमन्यु को तौल रहा हूँ, जबकि अक्षयकुमार तो अधर्म के साथ खड़ा था और अभिमन्यु धर्म के साथ... मैं कहूंगा, अक्षयकुमार भी अपने धर्म का पालन आकर रहा था, घर में घुस आये अज्ञात शत्रु से लड़ रहा था. तब उसका धर्म यही था और उसने उसका पालन अपने मृत्यु तक किया.

अक्षयकुमार रावण का सबसे छोटा पुत्र था और मंदोदरी के गर्भ से जन्मा था. एक कथा अनुसार वह रावण की दूसरी पत्नी धन्यमालिनी की कोख से जन्मा था. बाल्मीकि रामायण अनुसार वह बहुत ही पराक्रमी योद्धा था और मात्र सोलह की उम्र में उसने समस्त अस्त्र शास्त ज्ञान प्राप्त कर लिए थे. शुक्राचार्य के दिए वेद पुराण ज्ञान से वह पिता की ही तरह प्रकांड पंडित बन गया था. बाल्मीकि रामायण अनुसार अक्षयकुमार का युद्ध कौशल देख हनुमान बड़े प्रभावित थे और वाल्मीकि रामायण में इसे ऐसे बखान किया गया है :

ततः शरैर्भि न्नभुजा न्तरः कपिः कुमा रवर्येण महा त्मना नदन्।
महा भुजः कर्मवि शेषतत्त्ववि द् वि चि न्तया मा स रणे परा क्रमम्॥ २५॥

इतने ही में महा मना वी र अक्षकुमा र ने अपने बा णों द्वा रा कपि श्रेष्ठ हनुमा न जी की दो नों भुजा ओं के मध्यभा ग–छा ती में गहरा आघा त कि या । वे महा बा हु वा नरवी र समयो चि त कर्तव्यवि शेष को ठी क-ठी क जा नते थे; अतः वे रणक्षेत्र में उस चो ट को सहकर सिं हना द करते हुए उसके परा क्रम के वि षयमें इस प्रका र वि चा र करने लगे- ॥ २५ ॥

अबा लवद् बा लदि वा करप्रभः करो त्ययं कर्म महन्महा बलः ।
न चा स्य सर्वा हवकर्मशा लि नः प्रमा पणे मे मति रत्र जा यते॥ २६॥

‘यह महा बली अक्षकुमा र बालसूर्य के समा न तेजस्वी है और बा लक हो कर भी बड़ों के समा न महा न् कर्म कर रहा है। युद्धसम्बन्धी समस्त कर्मों में कुशल हो ने के का रण अद्भुतद्भु शो भा पा ने वा ले इस वी र को यहाँ मा र डा लने की मेरी इच्छा नहीं हो रही है।॥ २६॥

अयं महा त्मा च महां श्च वी र्यतः समा हि तश्चा ति सहश्च संयुगे। असंशयं कर्मगुणो दया दयं सना गयज्ञैर्मुनि भि श्च पूजि तः ॥ २७॥

‘यह महा मनस्वी रा क्षसकुमा र बल-परा क्रम की दृष्टि से महा न् है। युद्ध में सा वधा न एवं एका ग्रचि त्त है तथा शत्रु के वेग को सहन करने में अत्यन्त समर्थ है। अपने कर्म और गुणों की उत्कृष्टता के का रण यह ना गों , यक्षों और मुनि यों के द्वा रा भी प्रशंसि त हुआ हो गा , इसमें संशय नहीं है।। २७॥

परा क्रमो त्सा हवि वृद्धमा नसः समी क्षते मां प्रमुखो ऽग्रतः स्थि तः । परा क्रमो ह्यस्य मनां सि कम्पयेत् सुरा सुरा णा मपि शी घ्रका रि णः ॥२८॥

‘परा क्रम और उत्सा ह से इसका मन बढ़ा हुआ है। यह युद्ध के मुहा ने पर मेरे सा मने खड़ा हो मुझे ही देख रहा है। शी घ्रता पूर्वक युद्ध करने वा ले इस वी र का परा क्रम देवता ओं और असुरों के हृदय को भी कम्पि त कर सकता है॥ २८॥

(साभार : ramcharit.in )

हालाँकि मानस में अक्षयकुमार की वीरता का कोई बखान नहीं है और जितनी डिटेल में महाभारत में अभिमन्यु के कौशल और वीरता का बखान है उतना वाल्मीकि रामायण या अन्य किसी में अक्षयकुमार का नहीं है. स्वाभाविक भी है. वह एक राक्षस कुमार था अनैतिक रावण का पुत्र था. किसी भी महाकाव्य में एंटी हीरो की तारीफें स्वाभाविक रूप से कम ही होंगी, किन्तु जितना भी बखान है वो अनायास ही अभिमन्यु की याद दिला देता है. एक किशोर का अपने परिवार हेतु अपने प्राणों को न्यौछावर कर देना कितना अद्भुत है!

Wednesday, August 16, 2023

शौर्य गाथा 68.

 हम घर का सामान लेने जा रहे हैं। भाईसाहब ने तुरंत ही कैप पहन लिया है "पापा देखो मैं तो पुलिस अंकल बन गया हूं!" कैप पहनना और अपने को पुलिस अंकल कहना आजकल इनका फेवरेट काम है लेकिन कैप पहनने के बाद उसे इतना नीचे कर लेते हैं कि आगे वाला हिस्सा (Visor) इनकी आंखों के सामने होता है। इन्हें सही से दिखता नहीं है, इसलिए फिर सिर उठाकर चलते हैं।

भाईसाहब कैप पहने ही स्टोर पहुंचते हैं। घुसते ही इन्होंने दौड़ के एक बास्केट ले ली है। इनके वजन के बराबर ही होगी। भाईसाहब अब आराम से बास्केट खींचते हुए एक ओर जा रहे हैं।
"अरे आप कहां जा रहे हैं?" मम्मा पूछती है।
"अले मम्मा, डायपल थथम (खत्म) हो दए हैं न। वो लेने जा ला।" भाईसाहब मम्मा की स्टाइल में ही तुरत जवाब देते हैं।
हम लोगों की हंसी छूट जाती है लेकिन इन्हें न दिखे और इनका मज़ा न किरकिरा हो जाए, इसलिए चुपचाप हंसी मुंह में ही दबाए इनके पीछे हो लेते हैं।

Friday, August 11, 2023

शौर्य गाथा 66.

 भाईसाहब के पास सब है जिसकी जिद करते हैं... पापा उन्हें दिलाते रहते हैं, मम्मा डांटती रहती है कि "आप सारी जिद मान लेते हैं... ऐसे सारी जिद थोड़ी न पूरी की जाती हैं... उसे 'न' सुनना भी सीखना होगा ना!"

पापा को भी इस बात का एहसास है लेकिन उनका मन नहीं मानता है। बचपन में बहुत कुछ था जो उन्हें जिद करने के बाद भी नहीं मिल पाया... छोटे से गांव उनके पिताजी के लिए संभव नहीं था... बाद में कम उम्र में बोर्डिंग स्कूल चले गए। इसलिए पापा के लिए जो संभव होता है दिलाने की कोशिश करते हैं।
हालांकि पापा धीरे-धीरे न कहना सीख रहे हैं... मम्मा की डांट का असर भी हो रहा है और पापा भी धीमे-धीमे 'पापा' बन रहे हैं।

Thursday, August 10, 2023

विभीषण की कहानी : घर का भेदी...



विभीषण का नाम सुनते ही हिंदी की एक युक्ति दिमाग में आना शुरू हो जाती है - 'घर का भेदी लंका ढाये.' बचपन से ही हम यही सुनते आ रहे हैं. कुछ लोग कहते हैं कि ये सच नहीं है. जो भी हो विभीषण का चरित्र रामायण में बिलकुल अनोखा चरित्र है. वो राक्षस कुल में जन्म लिया है किन्तु कर्मों से, कथनों से राक्षस नहीं है. रामानंद सागर जी की रामायण में भी विभीषण का ऐसे चित्रांकन (अभिनेता: मुकेश रावल जी) किया गया था जिसमें वे शरीर से सख्त दिखते थे किन्तु बातों से कोमल ह्रदय थे.

जैसा कि रावण के जन्म की कहानी^ कहते वक़्त लिखा था कि महर्षि विश्रवा और राक्षसकुल की कैकसी को तीन पुत्र रावण, कुम्भकर्ण, विभीषण और एक कन्या प्राप्त सूर्पनखा प्राप्त हुए थे और कहते हैं इन तीनों पुत्रों में से प्रथम पुत्र रावण में अनुवांशिक रूप से अपने पिता और अपनी माता दोनों के कुलों के बराबर गुण आये. दूसरे पुत्र कुम्भकर्ण में माता के कुल के गुण थे. अंतिम पुत्र विभीषण में पूर्णत: पिता के कुल के गुण थे. ये भी एक कारण है कि विभीषण कार्य और कथन से पिता की तरह ही ऋषि प्रतीत होते हैं. 

लेकिन इसके पीछे एक और कारण भी है. जब अपने नाना सुमाली की इच्छा से तीनों भाइयों रावण, कुम्भकर्ण और विभीषण से भगवान् ब्रह्मा की आराधना की तो बाकि भाइयों ने बल, शक्ति मांगी किन्तु विभीषण उनमें से अकेले थे जिन्होंने माँगा कि 'प्रभु, मैं हमेशा सच के साथ चलूँ, सत-धर्म का साथ दूँ.'

कहानी अनुसार विभीषण मंत्री थे लंका के और सही-गलत का ज्ञान राजा को देना उनका कर्त्तव्य था किन्तु जब उन्होंने पर-स्त्री सीता के हरण के प्रति अपने महाराज रावण से आपत्ति प्रकट की, उनको समझाना चाहा तो उनका अपमान किया गया. उनके सर पर लात से प्रहार किया गया. विभीषण उसी पल सत्य का साथ देने अपने कुछ साथियों सहित श्रीराम के पास पहुँच गए. लेकिन सच तो ये है कि इसके पूर्व से ही विभीषण भगवान् विष्णु के अनन्य भक्त थे. उन्होंने ब्रह्मा से सत-धर्म परायणता के अलावा भागवत-भक्ति का भी वरदान माँगा था. दक्षिण भारत की एक मान्यता अनुसार वे भगवान विष्णु के रूप रंगनाथ-स्वामी के भक्त थे. उनकी पूजा करते हुए ही हनुमान ने उन्हें लंका दहन के पहले देखा था और उनका ही महल जल जाने से बच गया था.

विभीषण ने जब लंका को छोड़ा तो वे भगवान् राम के शरणागत होने के बाद युद्ध में उनकी मदद करते रहे. कहते हैं उन्होंने लंका के बहुत सारे राज़ राम को बताये थे इसलिए भी भगवान यह युद्ध मानवीय रूप में जीतने में सफल रहे. युद्ध के समय असली और मायावी विरुपाक्ष को पहचानने का रहस्य राम को विभीषण ने बताया था. अतिकाय को मारने के लिए ब्रम्हास्त्र का प्रयोग करने का परामर्श लक्ष्मण को विभीषण ने ही दिया था. सुषेण वैद्य का पता भी विभीषण ने बताया था. निकुंबला मंदिर तक जाने का गुप्त रास्ता भी विभीषण द्वारा ही बताया गया था, जहाँ जाकर लक्ष्मण मेघनाथ को मार सके थे. रावण की मृत्यु का ज्ञान भी विभीषण ने ही राम को दिया था और उनके बताये अनुसार ही नाभि में वाण मार रावण को मृत्यु सैय्या पर सुलाने में राम सफल हुए थे. (मानस में: 'नाभि कुंड पियूष बस याके, नाथ जिअत रावण बल ताके।')

लंका को जलाने को श्रेय भले ही हनुमान जी को दिया जाता हो किन्तु लंका की महत्वपूर्ण गुप्त जानकारियां विभीषण ने ही भगवान राम को प्रकट की थीं जिससे ही राक्षसराज रावण की बलशाली सोने की लंका एक मानवीय शत्रु के सामने घुटने टेकने पर मजबूर हुई थी. शायद इसलिए भी विभीषण को 'घर का भेदी लंका ढाये' जैसी नकारात्मक कहावत में शामिल किया गया है. 

विभीषण के अनुसार उन्होंने ये सत्य धर्म के लिए किया था किन्तु एक अन्य चरित्र कुम्भकर्ण का भी है जो अपने सत-धर्म पर अडिग रहे थे. जो रावण से कहते हैं कि "आपने सीता का हरण कर गलती की है और सीता को आपको वापिस राम के पास छोड़ कर आना चाहिए" और जब रावण इंकार कर देते हैं तो वे कहते हैं " मैं जानता हूँ कि आपने गलत किया है और आपकी तरफ से लड़ते हुए मैं सत्य की तरफ नहीं खड़ा हूँ. फिर भी मैं अपने धर्म का पालन करूँगा, और मेरा धर्म है अग्रज की बात को मानना, अपने राजा के कहे का पालन करना. मैं धर्म का अनुसरण करते हुए लडूंगा और राम के हाथों मृत्यु को प्राप्त होऊंगा."

विभीषण के अनुसार वे धर्म का पालन करते हुए राम के साथ मिल गए और और कुम्भकर्ण के अनुसार वे धर्म का पालन करने रावण की और से लड़ते हुए श्रीराम के हाथों वीरगति को प्राप्त हुए. लेकिन सत्य और धर्म तो एक ही हो सकता है तो सच्चा धर्म कौन सा था? 

वो आपको सोचना है. मेरे अनुसार तो पर-स्त्रीहरण उस समय की मोरालिटी अनुसार महापाप था और उसकी रक्षा करना सबसे बड़ा धर्म. रामायण की अन्य कथाओं में जैसे सति अहिल्या की कथा में भी कुछ-कुछ ऐसा ही लिखा मिलता है. शायद विभीषण के लिए इसलिए भाई का साथ देने से बड़ा धर्म-मार्ग राम की पत्नी को न्याय दिलाना था. इसलिए ही विभीषण का चरित्र विश्वास, धर्म, मित्रता और न्याय का प्रतीक माना जाता है.

लेकिन फिर कुम्भकर्ण के लिए ऐसा क्यों नहीं था? जबकि वे भी धर्मपालन की बात करते हैं. मैं जो समझा हूँ उसके अनुसार एक तो कुम्भकर्ण जन्म से ही माता के कुल के राक्षसी-गुण सर्वाधिक थे इसलिए वे नैतिकता को पूर्णत: समझने में असमर्थ रहे और साथ ही दूसरा ये कि पूरा वर्ष ही निद्रा में रहने के कारण वे परिस्थिति को ही अच्छे से नहीं समझ पाए थे और शायद तीसरा ये कि अधिकतर निद्रालीन रहने के कारण वे सत्य-असत्य की समझ ही गूढ़ रूप से नहीं रखते थे. इसलिए ही जहाँ विभीषण का चरित्र विश्वास, धर्म, मित्रता और न्याय का प्रतीक माना जाता है, वही रावण का साथ देने के लिए, दुराचार के साथ रहने के लिए कुंभकर्ण को बुराई के रूप में जलाया जाता है.

ऊपर मैंने सति अहिल्या की कथा की बात की है जिसमें रामायण से पूर्व में इंद्र द्वारा उनके सतीत्व हरण पर उनके पति महर्षि गौतम ने सजा देते हुए उन्हें पत्थर की मूरत बना दिया था. रामायण में राम द्वारा उनको पुनः मानवरूप देना एक तरीके से 'स्त्री का सतीत्व छल से हरा भी जाये तब भी स्त्री को ही सजा मिलेगी!' वाली पूर्व की मोरालिटी का विरोध भी है. जैसे राम माता अहिल्या को मानव रूप देते हुए कह रहे हों "माता, जब दोष आपका नहीं तो सजा आपको क्यों?" हालाँकि समाज आज भी बहुत आगे नहीं बड़ा है वह बलात्कारी से ज्यादा बलात्कार की शिकार महिला को अधिक सजा देता है, दोषी मानता है. शायद तब भी बहुत आगे नहीं बढ़ पाया था तभी तो वही राम अग्निपरीक्षा लेते वक़्त समाज से हारे से प्रतीत होते हैं. यह अनावश्यक कार्य भी उन्हें करना पड़ता है. 

लेकिन विभीषण इस सत-धर्म को समझते थे. इसीलिए पूरा युद्ध होने बाद वे अपने प्रियजनों के लिए रोते हैं तो एक कथा अनुसार रावण उनसे कहता है कि "तुमने अपने धर्म का पालन किया है अनुज!" और एक अन्य कथा में जब वे लंका का राज लेने से इंकार करते हैं तो भगवान् राम अपना विराट भागवत-स्वरुप दिखा आदेश देते हैं, जिसे विभीषण को स्वीकारना पड़ता है और वे भाभी मंदोदरी का आशीष ले सिंहासन पर बैठते है. 

विभीषण को अन्य कथाओं में देखें तो वे लंका के राज्याभिषेक उपरांत मंदोदरी से शादी करते हैं और एक कथा अनुसार अशोक वाटिका में सीता की प्रधान सेविका त्रिजटा उनकी पुत्री थीं. किन्तु दोनों कथाएं बाद में डाली गई प्रतीत होती हैं. 

चित्र : राम के शरणागत होते विभीषण.

Wednesday, August 9, 2023

शौर्य गाथा 65 : First Click by Him!

हम सेलिब्रेट कर रहे थे और मोबाइल से फ़ोटो खींच रहे थे, कि सहसा भाईसाहब मेरे हाथ से "पापा मैं भी, मैं भी..." कहकर मोबाइल ले लेते हैं। अगले दस मिनट तक भाईसाहब उनके वजन के हिसाब से भारी मोबाइल सम्हालते हुए, फोकस कर फोटो क्लिक करने की कोशिश में बिताते हैं। जबतक उनका हाथ बटन तक जाता है, तब तक मोबाइल झुक जाता है, बेचारे फिर सम्हालते हैं... और फिर वही कोशिश दुहराते हैं।
दस मिनट बाद मोबाइल पापा के हाथ में होता है और जो रिजल्ट आता है वो दो साल के भाईसाहब के हिसाब से शानदार है! मम्मा पापा की एक प्यारी सी ब्लर्ड फ़ोटो!!
मुझे अप्रत्याशित रूप से बड़ी क्रिएटिव लगती है और मैं उन्हें गले लगा लेता हूं।
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Sunday, August 6, 2023

शौर्य गाथा 64 : प्रेम

भाईसाहब को सुलाने की कोशिश हो रही है। तरकरीबान एक घंटा हो गया है और भाईसाहब सो ही नहीं रहे हैं। मम्मा बोलती है- "शायद ज्यादा थका हुआ है आप पैर दबा दीजिए।" पापा दबाना शुरू करते हैं और भाईसाहब अगले दस पंद्रह मिनट में सो जाते हैं। पापा को याद आता है कि दादू भी उनके ऐसे ही पैर दबाना शुरू कर देते थे और पापा मना करते करते ऐसे ही सो जाते थे। पापा की उम्र तब करीब दस बारह वर्ष रही होगी।
जीवन में प्रेम का कितना दुहराव है न!
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Friday, August 4, 2023

शौर्य गाथा 63 : Days of Innocence #p3

पापा भाईसाहब से बोलते हैं: "आप बहुत बदमाश बच्चे होते जा रहे हो शौर्य."
भाईसाहब : "आप बहुत बदमाश पापा होते जा लहे हो पापा."
---
पापा भाईसाहब को गले लगकर प्यार करते हुए : " मेरा प्यारा सा नन्हा मुन्ना बच्चा."
भाईसाहब पापा के गाल पर प्यार से हाथ फेरते हुए अपनी टूटी फूटी भाषा में : "मेले प्याले से मुन्ने मुन्ने पापा."
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Tuesday, August 1, 2023

शौर्य गाथा 62: पापा ती येलो वाली धड़ी

 पापा की भाईसाहब को सुलाने की कोशिश हो रही हैं, उनके चेहरे से नींद नदारद है। भाईसाहब चिल्लाना शुरू करते हैं "पापा ती येलो वाली धड़ी ताहिए। येलो धड़ी..." और रोना चिल्लाना शुरू हो जाता है। पापा बेचारे अपनी सभी घड़ियां उनके पास रख देते हैं, लेकिन उनमें कोई से भी "येलो धड़ी" नहीं है। भाईसाहब अपना शोर जारी रखते हैं। मम्मा लेटी हुई है, बेचारी आधी नींद में से उठ जाती है।

पापा पूछते हैं "मैं अब येलो घड़ी कहां से लाऊं?"
मम्मा झल्लाकर बोलती है "उसे पापा की येलो गाड़ी चाहिए, घड़ी नहीं।"
पापा बेचारे इनका एक हरे पीले रंग की जिप्सी कार वाला खिलौना ढूंढ कर लाते हैं, भाईसाहब देखते ही खुश होकर बोलते हैं "हाहाहा.... मिल दई पापा ती येलो धडी।"
पापा राहत की सांस लेते हैं, भाईसाहब कार हाथ में लिए लिए दस मिनट में सो जाते हैं!
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