Thursday, April 7, 2011

BakBak: Yeh Saali Zindagi

        Enrique चाचू के पाँचों एल्बम बार-बार सुनने के बाद अब नये सिंगर को खोजा जा रहा है,  और खोज ख़त्म हुई है Arash पर, इनके फारसी गाने समझ में न आये लेकिन ताश के पत्तों के बीच  सिर्फ म्यूजिक ही याद रहता है, इसलिए हमें ज्यादा फर्क नहीं पड़ता...... इसके साथ  'Always' सोंग गाने बाली Aysel की आवाज़ तो 'सुपर सेक्सी' है....दोस्त की बात सुन हम हँसते हैं.......2 महीने का कॉलेज, फिर पकाऊ ज़िन्दगी, कॉलेज के इस तरफ हम ज़िन्दगी को घुमाते हैं, और उस तरफ ज़िन्दगी हमें......'रंग दे बसंती' का हर डायलोग सच नज़र आता है.....

      'सॉरी, वो उस दिन के लिए तुम गुस्सा तो नहीं थे न?' वो बोलती है......दुनिया की जहां आधी आवादी को खाने को नहीं मिलता है, जहां 66% भारतीय बच्चे कुपोषित हैं, जहां सरकारें बजट का 70% तक खुद डकार जाती हैं, और बच्चे 'माँ की हड्डी से चिपक ठिठुर, जाढे की रात बिताते हैं', वहीं इन्हें इन फ़ालतू के Emotions की पड़ी है, कितने लकी हैं हम जिनका पेट भरा है, तो इश्क के बारे में सोच तो सकते हैं. अभी इतनी रात को फुटपाथ पर भूखे बैठे होते तो चाँद में भी रोटी नज़र आ रही होती, उसकी शक्ल नहीं.......मैं मेरे पापा को थैंक्स कहता हूँ की उन्होंने इतना कमाया की हमारा पेट भरा है और इतना Capable बनाया की अपना पेट भर सकता हूँ, जबकि देश की आधी आवादी मूलभूत रोटी, कपडा और मकान के लिए तरश रही है........और इसलिए भी की उन्होंने उस वहां हेल्थ फेसिलिटीज़ दी, जहां से एक ढंग का अस्पताल 50 किलोमीटर दूर है, और जाने के साधनों में सिर्फ ट्रेक्टर है.....बेचारा बीमार तो पहुँचते-पहुँचते ही मर जायेगा......
             ' तुम Administration (PSC) की तैयारी करो, तुम्हारा GK अच्छा है.'......मेरे अन्दर एक प्रश्न है, अफसर बनकर किसपर हुक्म चलाओगे? यहांके आधे लोग इतने भूखे की एक हज़ार रूपये के लिए कई जान ले ले और साहूकारों के सामने बहु-बेटियाँ तक चढाने को तैयार हैं, जब कुछ भी नहीं है बेवसी में आत्महत्या कर रहे हैं या इतने सताए की आप उनपर अपना शासन चला के भी कुछ नहीं उखाड़ पाओगे, हज़ारों बर्वरता से पुलिस द्वारा मारे जाते हैं, और आतंकी या नक्सली करार कर दिए जाते हैं, या कुछ इतने निष्ठुर की चंद पैसों से आगे उनके सोचने की क्षमता नहीं जाती......कभी-कभी लगता है, हम उस दल-दल के कीड़े है, जिन्हें रेंगना है, और वो भी उतना ही जितना की सरकार हुक्म दे.....हुक्मरानों की बिछाई बिसात पे मोहरे बदले जाते हैं और हम तो वो पैदल भी नहीं जिन्हें जंग में ही सही कम से कम इज्ज़त की मौत तो नसीब होती है......मैं कभी-कभी चीखना चाहता हूँ, कि मैं इस दल-दल का हिस्सा बनना नहीं चाहता.

                 सड़क पर कचरा बीनने बाले बच्चे 'Right to Education' पर गन्दा मज़ाक लगते हैं, उन्ही में से कोई सड़क पर हादसे का शिकार हो जाये.........और उसके शरीर को उठाने बाला भी कोई न हो तो........!!!.......... लावारिश सी ज़िन्दगी में वो लावारिश लाश ज़िन्दगी भर याद रहेगी. 

कुछ हाल भोपाल की सडको से--

                  




              ******

अन्ना हजारे, तुम्हारे प्रयास व्यर्थ न जाये.........तुम्हें प्रणाम!!