Tuesday, December 14, 2021

India As I Know: Couple with a Forest Dream. The SAI Sanctuary Story

 


साई सैंक्चुअरी (SAI (Save Animals Initiative) Sanctuary) ब्रह्मगिरि पहाड़ियों की तलहटी (foothills) में स्थित एक वन्यजीव अभ्यारण्य है. ब्रह्मगिरि हिल्स कोडागु जिले, कर्नाटक में स्थित हैं. ये वही पहाड़ियां हैं जहाँ से कावेरी नदी निकलती है. वही नदी जिसका पानी प्राप्त करने के लिए तमिलनाडु और कर्नाटक की सरकारें और किसान युद्धरत रहते हैं, ये वही ब्रह्मगिरि हिल्स हैं जहाँ पर प्रसिद्ध ब्रह्मगिरी वन्यजीव अभ्यारण्य स्थित है. लेकिन फिर भी मैं यहाँ मात्र 300 एकड़ में फैले साई सैंक्चुअरी की बात क्यों कर रहा हूँ? इसमें ऐसा क्या है?

साई सैंक्चुअरी देश का पहला और एक मात्र प्राइवेट वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी है. एक युगल पामेला और अनिल मल्होत्रा 1991 में हिमालय से लौट कर यहां आते हैं और शुरू में 12 एकड जमीन खरीद कर इसकी अवधारणा रखते हैं. अनिल पिता की बीमारी के कारण अमेरिका से लौट कर वापिस आये थे. जब पिता की मृत्यु उपरांत अस्थिविसर्जन हेतु पामेला और अनिल हरिद्वार गए तो हिमालय देख कर यहीं का होने का निश्चय लिया लेकिन वक्त के साथ उन्हें समझ आया कि अगर जंगलों को नहीं बचाया तो न तो बारिश होगी, न पानी बचेगा और न ही हम ये जैवविविधता ,(Bio Diversity) देख पाएंगे. इसलिए उन्होंने एक वर्षावन (Rain Forest) बनाने का निर्णय लिया.

1991 में वे दक्षिण आ गए और ब्रह्मगिरि हिल्स के पास 12 एकड जमीन खरीदी. इनके लिए ज़मीन खरीदना इतना आसान नहीं था. भारत में कानूनन पेंच और इनका बाहरी होने के कारण इन्हें ज़मीन आसानी से नहीं मिल रही थी, साथ ही जानने वालों ने इन्हें बेवकूफ कहा. कारण? कौन व्यक्ति अपनी सारी जमा पूँजी लगाकर जमीन ख़रीददता है और वो भी एक जंगल बनाने! इससे किसका फायदा है? आर्थिक लाभ (Economic Benefits) क्या होंगे?

लेकिन पामेला का ये जूनून था और अनिल को पामेला से प्यार, इसलिए एक ऐसा जंगल बना जिसे हम आज साई सैंक्चुअरी के नाम से जानते हैं.

ब्रह्मगिरि वन्यजीव अभयारण्य के साथ स्थित यह प्राइवेट अभ्यारण्य 1.2Km की एक एक्स्ट्रा बफर ज़ोन का निर्माण करता है. यहां से एक नाला भी बहता है.

बहुत सारी तितलियों, सभी तरह के पक्षियों, तेंदुओं, चीतल, हाथियों, बार्किंग डियर का ये घर है.

'यहां आकर जंगली जानवर बच्चों को जन्म देते हैं क्यूंकि वो यहाँ ज्यादा सुरक्षित महसूस करते हैं.जेड पामेला एक इंटरव्यू में बताती हैं.

रेनफॉरेस्ट दुनिया में पानी, बादल निर्माण, जल स्त्रोतों और ऑक्सीजन देने के लिए जाने जाते हैं. जहाँ कावेरी नदी के लिए हम लड़ रहे हैं, वहीँ हमने कभी कावेरी नदी सिस्टम, उसके आसपास के जंगल को बचाकर नदी जल स्तर सुधारने का कभी सोचा ही नहीं है उल्टा पश्चिमी घाट को ख़त्म ही करते जा रहे हैं. इसलिए साई सैंक्चुअरी हाई होप्स (बड़ी उम्मीद) बनकर सामने आता है.

'हमने शुरू में ही निर्णय लिया था कि हमारे बच्चे नहीं होंगे, मतलब मानव संतान (Human Offsprings). लेकिन हमारे इतने सारे बच्चे होंगे कि एक भरे पूरे जंगल का निर्माण करेंगे ये नहीं सोचा था.' अनिल ने एक इंटरव्यू में बताया था. 'जो ख़ुशी हमें यहाँ मिली दुनिया में शायद कहीं और किसी काम में नहीं मिलती.' पामेला ने उसी इंटरव्यू में कहा.

भगवत गीता के निस्स्वार्थ सेवा कर्म का पामेला और अनिल मल्होत्रा एक अपूर्व उदहारण हैं. जिन्होंने अपनी जीवनभर कि पूँजी सिर्फ आनेवाली पीढ़ियों का भविष्य बचाने के लिए कुर्बान कर दी. वे उदहारण हैं कि यदि बड़े कॉर्पोरेट हाउस ऐसे ही जंगल आवश्यकता अनुरूप खड़ा करें तो महाराष्ट्र एवं देश के अन्य हिस्सों की पानी की समस्या को काम किया जा सकता है.

ये कहानी इसलिए भी सुना रहा हूँ क्यूंकि पिछले महीने, 22 नवंबर 2021 को अनिल मल्होत्रा का 80 की उम्र में निधन हो गया है. लेकिन जो वे पीछे छोड़ के गए हैं वो वर्षों याद रखा जायेगा और आने वाली पीढ़ियों के लिए उदहारण बना रहेगा.

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ऐसी कहानियां हमें जिंदा रखती हैं. जहां लोग जंगलों को उजाड़ रहे हैं, सरकारी पैसे और वन विभाग की अथाह मेहनत से बने प्लांटेशन पर कब्ज़ा कर रहे हैं वहीं अनिल और पामेला गेल मल्होत्रा जैसे उदाहरण हमारे बीच हैं.

[फोटो: खुद के विकसित किए जंगल में अनिल और पामेला]