Wednesday, September 20, 2023

Papa's Letters to Shaurya #FifthLetter


 तुम मोशन सिकनेस की वजह से वॉमिट किए जा रहे हो और वो तुम्हें गोद में बिठाए हुए है। वो तुम्हारी वॉमिट से पूरा भीग गई हैं। खुद को पेपर नैपकिन से क्लीन करने की कोशिश करती है, लेकिन कितना ही कर पाती है! कपड़े चेंज करने के लिए कोई ढंग की जगह नहीं है । पूरे डेढ़ घंटे तक ऐसे ही गीली और बदबू सहती बैठी रहती है। मुझे लगने लगा है कि माएं इस ग्रह से नहीं हैं, कहीं और से आई हैं। इतना निश्छल प्रेम! संतान के लिए इतना सब कुछ..!

ऐसे ही मैं बोर्डिंग में था और तुम्हारी दादी बिना गैप किए हर इतवार मिलने आती थी। पूरे रास्ते उल्टी करते हुए! वो आती थी और खुद से खाना खिलाकर ही चैन लेती थी।

अधिकतर भारतीय अस्पताल पिता को डिलीवरी के वक्त लेबर रूम में नहीं आने देते हैं। मुझे भी नहीं जाने दिया गया था। किंतु तुम्हारी मां ने किस पीड़ा का अनुभव किया होगा उसकी एक झलक मुझे तब अनुभव हुई जब रूम में शिफ्ट होते-होते स्ट्रेचर से खड़ी हुई और वह भरभराकर के गिर गई! विज्ञान कहता है कि लेबर पेन किसी हड्डी टूटने से भी कई गुना ज्यादा दर्दनाक होता है।

मांओं का तप, त्याग, ममत्व कई लोगों ने लिखा है किंतु जितना भी लिखा जाए मुझे हमेशा कम लगता है। वे अमेजिंग हैं। एक लड़की मां बनते ही पता नहीं कैसे, कहां से अपार शक्ति और समझदारी से भर जाती है!

मैं तुम्हारी मां को तुम्हारा ख्याल रखते देखता हूं और सोचता रहता हूं कि ऑफिस और उसके बाद भी इतनी ऊर्जा के साथ वो सारा कैसे कर लेती है!

किसी ने लिखा था 'स्त्री काम से लौटने के बाद भी काम पर ही लौटती है।' मैं नहीं चाहता कि तुम्हारी मां के साथ ऐसा हो। भरसक कोशिश करता हूं ऐसा नहीं हो। लेकिन मां के रूप में जब वह वापस लौटती है तो वह थकती नहीं है। शायद मां होना 'काम' होना नहीं होता है!

मैं तुम्हें गोद में लिए बार-बार वॉमिट से सरोबार तुम्हारी मां को देख रहा था। तुम्हारे प्रति उसका प्रेम महसूस कर रहा था। अपनी मां को भी याद कर रहा था। घर से छूटते हुए उनका चेहरा मेरी आंखों में अक्सर रह जाता है। बहुत कुछ है जो मैं जता नहीं पाता। मुझे कुछ कुछ पुरुष बनाने में शायद समाज सफल तो रहा ही है!

मर्द इमोशंस जाहिर नहीं करते। मर्द रोते नहीं हैं। मर्द परिवार का बोझ लिए ही चलते हैं! उफ !जाने क्या-क्या। उफ! ब्लडी सोसायटी!!

यह मेरा लिखा दुनिया के तमाम पिताओं के लिए, इस उम्मीद के साथ की वे थोड़े और अधिक मां होते जाएंगे। मुझे लगने लगा है कि दुनिया स्त्री से कोमलता और मां से प्रेम लेकर ही बेहतर हो सकती है!