Saturday, March 27, 2010

......................उलझन

हाँ ना की उलझन में ये तन्हाई उलझ गई.
ख्याल जो संजोये थे, पुलाव बन गये.
धुप में जो थे, सब छाँव बन गये.
दूर से देखा तो एक शहर की आस थी,
पास पहुंचे, सब गाँव बन गये.

ख्याल किया तेरा, तो ख्याली उलझ गयी.
जबाबों के भंवर में एक सवाली उलझ गयी.
चंद लफ्ज सुनने हम बिता बैठे जीवन.
दिल में जज्बात लिए खामोश रहे तुम.
खामोश ये ख़ामोशी कहर बन गयी.
अरमान की उमड़ती लहर बन गयी.

ढूढ़ते रहे हम तेरा निशां कहाँ है,
उंघती आँखों में पाया तुझको.
पलकों पे बैठी मेरे गीत गुनगुना रही थी.
दर्द में सिमटी जिरह गा रही थी,
मजबूरी पे अपनी मुस्कुरा रही थी.
तेरी मजबूरी मुझको गुनाह बन गई.
बे-मंजिल सी राह बन गई.

हाँ-ना की उलझन में तन्हाई उलझ गई.
पलकों के बीच अटकी रुलाई उलझ गई.

Thursday, March 4, 2010

Hello friends, I am not occupied till 8th March....college have GT till this. So I am free, just reading, writing, painting,blogging, playing and enjoying............Read and left your valuable comments on my these frequent poems. Thanking u.


 U knw, wt i made?? even i dnt.......but its a good way to show whole nature with decodesigns by just three color ball pens. :)

Monday, March 1, 2010

अँधेरे की ओर छितराती शाम


उन्नीदे होते हम,
अँधेरे की ओर छितराती ये शाम,
अदभुत! अतुल्य!! सुन्दर!!!

ढलता, पिघलता सूरज
जैसे अस्तित्व भांप रहा हो.
विराग, विहग खगकुल,
राग अपने गा छितरा गया.
समूचा गगन उसमे समा गया.
बचे सूरज की रौशनी समेटते
देहरी पे जलते दिए,
लौटती पन्हारिनें,
बदरंगे बादल,
खुशनुमा मौसम........
 फिर हमारे बीच से निकलती रेल,
जैसे सम्पूर्ण सौंदर्य मंडरा गया हो.

 प्रकृति रंग रंगे हम,
खग विहग गान,
अँधेरे की ओर छितराती शाम,
अदभुत! अतुल्य!! सुन्दर!!!