ख्याल जो संजोये थे, पुलाव बन गये.
धुप में जो थे, सब छाँव बन गये.
दूर से देखा तो एक शहर की आस थी,
पास पहुंचे, सब गाँव बन गये.
ख्याल किया तेरा, तो ख्याली उलझ गयी.
जबाबों के भंवर में एक सवाली उलझ गयी.
चंद लफ्ज सुनने हम बिता बैठे जीवन.
दिल में जज्बात लिए खामोश रहे तुम.
खामोश ये ख़ामोशी कहर बन गयी.
अरमान की उमड़ती लहर बन गयी.
ढूढ़ते रहे हम तेरा निशां कहाँ है,
उंघती आँखों में पाया तुझको.
पलकों पे बैठी मेरे गीत गुनगुना रही थी.
दर्द में सिमटी जिरह गा रही थी,
मजबूरी पे अपनी मुस्कुरा रही थी.
तेरी मजबूरी मुझको गुनाह बन गई.
बे-मंजिल सी राह बन गई.
हाँ-ना की उलझन में तन्हाई उलझ गई.
पलकों के बीच अटकी रुलाई उलझ गई.