Saturday, May 4, 2024

मुझसे प्यार करने के बाद


 मुझसे प्यार करने के बाद तुम्हारा पहले जैसे कुछ भी नहीं रह जाएगा

इतराने लगोगी हर कविता पर

हर लफ्ज़ में समाने लगोगी मुझे

तस्वीरों से समा जायेंगे

साथ बिताए पल

और शताब्दी के अंत तक याद रह जायेगी हर एक छुअन.


मुझसे प्यार करने के बाद तुम्हारा पहले जैसे कुछ भी नहीं रह जाएगा

टटोलोगी मुझे किताबों में

जिन्हें हमने साथ पढ़ा था

उन बातों में

जिन्हें हमने साथ कहीं थी

बुदबुदाओगी मुझे

और पास आने को ललचाओगी

जब भी मैं दूर होऊंगा.


दरवाजे की हर दस्तक में

मेरे आने का इंतजार होगा

नींद में चूम लेने की लालसा

जब नहीं होऊंगा पास

तुम्हारे होंठ सूख जाएंगे याद में

नींद हो जायेगी बेझिल

चांद खाओगी भूख में

दुहराओगी मेरा नाम.


मुझसे प्यार करने के बाद तुम्हारा पहले जैसे कुछ भी नहीं रह जाएगा

सच को सच कहना समझोगी 

सहन को साहस में बदल दोगी

तुम युद्धरत तो हमेशा से थीं हर कठनाई से

ज़रा और जोर से लड़ना सीख जाओगी 

दुनिया सिर्फ मर्द की नहीं है

बराबरी के हक का पता चलेगा तुम्हें

सीने से खुद को लगाना सीखोगी

और दुनिया को अनुभव से तौलोगी.


तुम्हारी पीठ पर जितनी कविताएं लिखूंगा

सब तुम्हारे सीने में जमा हो जाएंगी

तुम्हारे माथे को चूम

जितने भी सूरज उगाऊंगा

तुम्हें ताउम्र प्रज्ज्वल करेंगे

और जो नज़्में हम साथ लिखेंगे

उनका हर लफ्ज़ चूमोगी.


तुम तुम नहीं रह जाओगी

तुम्हारा होना और भी प्रदीप्त हो जायेगा

ज्यादा निष्पाप, शांत, सरल,

कांटों के बीच युद्धरत गुलाब

प्रेम यही सब बदलाव तो हमारे अंदर लाता है


 मुझसे प्यार करने के बाद तुम्हारा पहले जैसे कुछ भी नहीं रह जाएगा।


(बांग्लादेशी कवि हुमायूं आजाद की कविता से प्रेरित)

इक पत्र और प्रेम कविताएं



 मैंने कहा "तुम जहां हो

वहां तुम्हारा होना 

एक क्रांति है।"


"नहीं, मेरा होना ही 

एक क्रांति है।"

लड़की ने प्रत्युत्तर दिया।


**


किताबों में उलझा

एक वीरानापन है।


कैसे तुम्हें समझाऊं

तुम्हारा दुनिया में होना ही अपनापन है।


**


एक रात तुम लौट आना

शहर से लौटता है कोई गांव जैसे


वैसे शहर से कोई

फिर स्थाई तो नहीं लौटा है गांव

ह्वंगसांग से सारे

यात्री की तरह लौटते हैं गांव


पर एक रात तुम लौट आना

अपने होने की यात्रा पर।


**


तुनहरे हाथों में गुदगुदी होती तो होगी

मेरी याद अभी भी वहां सोती तो होगी

दवा नीम सी बिखरी है चेहरे पे तुम्हारे

मेरी याद बुखार में राहत देती तो होगी।


**


मैंने नहीं चाहा कि

कभी पीली साड़ी को उतारो तुम

पतझड़ में बसंत होती हो

मेरा मन-तरंग खिल जाता है


तुम्हारा मुस्कुराता चेहरा

पीला सूट

खुले बाल

तुम्हें भगवान ने पीली साड़ी में ही बनाया होगा।


**


जो तुम्हें

पाठ्यक्रम में सिखाया जाएगा


वो तुम्हें कभी

वह नहीं बनाएगा

जो तुम बनना चाहते हो


या कि ईश्वर तुम्हें बनाना चाहता था.



**


एक दिन जब ईश्वर

खुद धान रोपेगा


तो खुद न्यूनतम समर्थन मूल्य

बढ़ाने चला आयेगा.


धरती पे बैठे लोगों को तो

धान कैसे उगती है

कभी समझ नहीं आयेगा!


**


तुम जीता जागता प्रेमपत्र हो.


**


मृत्यु से भी ज्यादा

बदतर होना कुछ देखा है?


क्या ढोया है

वह बोझ


असफलता, 

निःसंतानता,

बेरोजगारी


इससे भी बड़ा बोझ है

अपनी संतान से आंखें न मिला पाना


और उस गलती के लिए

जो तुमने कभी की ही नहीं थी!


**



मुझे पूछना था तुमसे

कि किरदार जिनमें तुम 

रम जय करते थे


उन्हें 

जिस्म से बाहर कैसे निकाला करते थे?


मैं तो जिस किरदार में हूं

वर्षों से वही ढो रहा हूं।


(इरफ़ान के लिए)

निर्मला पुतुल की प्रसिद्ध कविता


बाबा! 


मुझे उतनी दूर मत ब्याहना 


जहाँ मुझसे मिलने जाने ख़ातिर 


घर की बकरियाँ बेचनी पड़े तुम्हें 


मत ब्याहना उस देश में 


जहाँ आदमी से ज़्यादा 


ईश्वर बसते हों 


जंगल नदी पहाड़ नहीं हों जहाँ 


वहाँ मत कर आना मेरा लगन 


वहाँ तो क़तई नहीं 


जहाँ की सड़कों पर 


मन से भी ज़्यादा तेज़ दौड़ती हों मोटरगाड़ियाँ 


ऊँचे-ऊँचे मकान और 


बड़ी-बड़ी दुकानें 


उस घर से मत जोड़ना मेरा रिश्ता 


जिस में बड़ा-सा खुला आँगन न हो 


मुर्ग़े की बाँग पर होती नहीं हो जहाँ सुबह 


और शाम पिछवाड़े से जहाँ 


पहाड़ी पर डूबता सूरज न दिखे 


मत चुनना ऐसा वर 


जो पोचई और हड़िया में डूबा रहता हो अक्सर 


काहिल-निकम्मा हो 


माहिर हो मेले से लड़कियाँ उड़ा ले जाने में 


ऐसा वर मत चुनना मेरी ख़ातिर 


कोई थारी-लोटा तो नहीं 


कि बाद में जब चाहूँगी बदल लूँगी 


अच्छा-ख़राब होने पर 


जो बात-बात में 


बात करे लाठी-डंडा की 


निकाले तीर-धनुष, कुल्हाड़ी 


जब चाहे चला जाए बंगाल, असम या कश्मीर 


ऐसा वर नहीं चाहिए हमें 


और उसके हाथ में मत देना मेरा हाथ 


जिसके हाथों ने कभी कोई पेड़ नहीं लगाए 


फ़सलें नहीं उगाईं जिन हाथों ने 


जिन हाथों ने दिया नहीं कभी किसी का साथ 


किसी का बोझ नहीं उठाया 


और तो और! 


जो हाथ लिखना नहीं जानता हो ‘ह’ से हाथ 


उसके हाथ मत देना कभी मेरा हाथ! 


ब्याहना हो तो वहाँ ब्याहना 


जहाँ सुबह जाकर 


शाम तक लौट सको पैदल 


मैं जो कभी दुख में रोऊँ इस घाट 


तो उस घाट नदी में स्नान करते तुम 


सुनकर आ सको मेरा करुण विलाप 


महुआ की लट और 


खजूर का गुड़ बनाकर भेज सकूँ संदेश तुम्हारी ख़ातिर 


उधर से आते-जाते किसी के हाथ 


भेज सकूँ कद्दू-कोहड़ा, खेखसा, बरबट्टी 


समय-समय पर गोगो के लिए भी 


मेला-हाट-बाज़ार आते-जाते 


मिल सके कोई अपना जो 


बता सके घर-गाँव का हाल-चाल 


चितकबरी गैया के बियाने की ख़बर 


दे सके जो कोई उधर से गुज़रते 


ऐसी जगह मुझे ब्याहना! 


उस देश में ब्याहना 


जहाँ ईश्वर कम आदमी ज़्यादा रहते हों 


बकरी और शेर 


एक घाट पानी पीते हों जहाँ 


वहीं ब्याहना मुझे! 


उसी के संग ब्याहना जो 


कबूतर के जोड़े और पंडुक पक्षी की तरह 


रहे हरदम हाथ 


घर-बाहर खेतों में काम करने से लेकर 


रात सुख-दुख बाँटने तक 


चुनना वर ऐसा 


जो बजाता हो बाँसुरी सुरीली 


और ढोल-माँदल बजाने में हो पारंगत 


वसंत के दिनों में ला सके जो रोज़ 


मेरे जूड़े के ख़ातिर पलाश के फूल 


जिससे खाया नहीं जाए 


मेरे भूखे रहने पर 


उसी से ब्याहना मुझे!

 

Friday, March 8, 2024

Shaurya Gatha: The book

 इस किताब में ऐसी बहुत सारी जगहें हैं जहां पर आप लिख सकते हैं। पढ़ते पढ़ते अगर आपको कुछ लिखने का मन कर जाए तो लिखिए... किताब का उद्देश्य यही है।

यकीं से कह सकता हूं जब आप इस किताब से बाहर आएंगे तो बच्चों के प्रति थोड़े ज्यादा वात्सल्य से भरे होंगे, थोड़े ज्यादा प्रेमल और कोमल हो चुके होंगे।
बच्चों की दुनिया बरकरार रहे, उतनी ही मासूम रहे, हर बच्चे का बचपन ज्यादा खूबसूरत बने... इसी उम्मीद के साथ यह आप सबको समर्पित...

किताब अब ऑनलाइन अवेलेबल है. खरीदने का लिंक:-

   AMAZON



Thursday, March 7, 2024

शौर्य गाथा 112.

 भाईसाहब की पेंटिंग स्किल्स बेहतर होती जा रही हैं, साथ ही अब वे दीवारों को अपना कैनवास भी कम बना रहे हैं, इसलिए मम्मा पापा ने भी चैन की सांस ली हुई है.

भाईसाहब ने सेंटर टेबल पर crayons से बहुत अच्छी आकृति बनाई है. पापा को ये बहुत प्यारी लगती है "बेटा ये क्या बनाया? अब्स्ट्रैक्ट आर्ट है?"
भाईसाहब: "पापा मैंने अपनी ताल (Car) के लिए लोड (Road) बनाया है. अले! लोड नहीं था न, तो आदे तैसे जाती!!"
भाईसाहब प्यारी सी जुबां में बिलकुल सटीक जवाब देते हैं. पापा उनकी समझदारी देखकर अचरज में हैं!

Friday, March 1, 2024

शौर्य गाथा 111.

 पापा भाईसाहब को सुलाने की कोशिश कर रहे हैं। "बेटा क्लोज योर आईज़।" पापा बोलते हैं।

भाईसाहब तुरंत आंख बंद कर लेते हैं। फिर पापा से बोलते हैं "पापा, बोलो ओपन योर आईज़।"
पापा बोलते हैं "ओपन योर आईज़।"
भाईसाहब आंखें खोल लेते हैं।
भाईसाहब फिर बोलते हैं "पापा बोलो क्लोज योर आईज़।"
पापा "क्लोज योर आईज़।"
भाईसाहब आंखें बंद कर लेते हैं।
फिर खुद से ही 'ओपन योर आईज़', 'क्लोज योर आईज़' बोल बोलकर, गर्दन मटका मटकाकर आंखें बंद करना, खोलना शुरू कर दिया है।
पापा देख देखकर मुस्कुरा रहे हैं। थककर उन्होंने सुलाने के इरादे त्याग दिए हैं।

Tuesday, February 27, 2024

पापा के नोट्स 7


तुम्हारे साथ समय व्यतीत करना Treat सा है। तुम्हारे साथ पूरा एक हफ्ता बिना ऑफिस जाए मिलना मतलब मेरे लिए बहुत सारा सुकून और प्रेम मिलना है। तुम घर में सबको प्रेम से गले लगा रहे थे, सबसे बात कर रहे थे और अपनी तोतली प्यारी आवाज में मन मोह रहे थे।
जो लोग बोलते हैं दुनिया में प्रेम कम बचा है, उन्हें छोटे बच्चों को देखना चाहिए। हम बच्चों को समझदार और मेच्योर बनाने के चक्कर में दुनिया से प्रेम छीन रहे हैं। हम उन्हें एक ऊंचा आसमान देने के चक्कर में उनसे ज़मीन छीन रहे हैं। प्रतिस्पर्धा... एक दूसरे से आगे बढ़ने की है, जबकि एक दूसरे से अधिक प्रेम करने की होनी थी। हमें अधिक प्रेमल होना था... हम अधिक प्रतिस्पर्धी हो गए और अब धूमिल हो रहे हैं।
मैं चाहूंगा दुनिया के अंत में प्रेम बचे... बस प्रेम। जब भी किसी बच्चे को देखता हूं मुझमें ऐसा होने की उम्मीद बढ़ जाती है।

Thursday, February 22, 2024

शौर्य गाथा 109

 पापा 5 सेकंड रूल वाले हैं। मतलब कोई भी खाने की चीज जमीन पर गिर गई है तो तुरंत उठा-पौंछकर खा सकते हैं।

मम्मा अपोजिट है। एक बार जमीन पर गिरी चीज मतलब 'अखाद्य' हो गई। भाईसाहब मां पर गए हैं।
एक बार भाईसाहब बेड पर से मखाना खा रहे हैं। एक मखाना इनके हाथ से बेड पर गिर जाता है। चूंकि नीचे गिर गया है इसलिए ये खा नहीं सकते और आसपास कुछ ऐसा है नहीं कि वहां अलग करके रख दिया जाए, इसलिए उठाते हैं और पापा के देकर कहते हैं "पापा खा लो, नीचे गिर गया था।" फिर मम्मा की ओर देखते हैं और कहते हैं "मम्मा नीचे गिर गया था तो मैंने पापा को दे दिया।"
पापा मम्मा एक दूसरे की ओर देख रहे हैं। मम्मा कहती है "बेटा ऐसा नहीं करते किसी को..." और भाईसाहब बीच में बात काट कर कहते हैं "मैंने जानबूझ कर दिया... जानबूझकर..." और अपनी प्यारी सी हंसी में हंसने लगते हैं।
पापा ने वैसे तो मम्मा की कभी बात नहीं सुनी लेकिन उस दिन से 5-सेकंड-रूल से तौबा कर लिया है।

Thursday, February 15, 2024

शौर्य गाथा 108.

 दो महीने बाद भाईसाहब तीन साल के हो जाएंगे... और मुझे अभी से वह दिन याद आ रहा है 23 मार्च 2021. कितना इमोशनल दिन था मेरे लिए... हाथ में लेते हुए इस नन्हीं-सी जान को टप-टप आंसू गिरे थे. इन लगभग तीन वर्षों में कितनी बदल गई है जिंदगी. बहुत से एहसास हैं जो नए-नए मेरे अंदर जन्मे हैं... बहुत सी बातें हैं जो मैंने इस बच्चे से सीखी है... बहुत सा प्रेम है जो महसूस किया है... और भाईसाहब? लगभग तीन साल के भाईसाहब कुछ ज्यादा जिद्दी हो गए हैं... चूजी हो गए हैं... और बहुत सारा प्यार करने लगे हैं. मसलन ऑफिस से आते हैं पुच्ची पर पुच्ची देते हैं फिर जोर से पापा को भींच लेते हैं.

पूरे घर को कैनवास बना के रखा है. बड़ी-बड़ी ड्राइंग करते हैं. कभी-कभी तो बात भी नहीं मानते हैं. बातें अधिक क्यूट हो गई हैं और आवाज तोतली है पर निखलने लगी है.
पापा और भाईसाहब अच्छे दोस्त हो गए हैं. पापा कभी जिद मानते हैं... कभी नहीं भी. भाईसाहब गुस्सा करते हैं... कभी नहीं भी. भाईसाहब और पापा क्रिकेट खेलते हैं. कभी वह बॉलिंग करते हैं... कभी पापा बॉलिंग करते हैं. वैसे भाईसाहब अधिकतर 'तोहली अंकल' ही बनते हैं.
पापा और भाईसाहब बॉक्सिंग करते हैं. भाईसाहब के प्रहारों से बेचारे पापा गिरते रहते हैं.
पापा स्कूल छोड़ने जाते हैं भाई साहब लौट कर बोलते हैं "पापा त्यों अकेला छोड़ दिया था?"
पापा: "जिससे आप वहां फ्रेंड्स के साथ खेल पाओ."
...और भाईसाहब दौड़कर पास आकर गले लगते हुए बोलते हैं "मुझे तो आपते साथ थेलना है."
पापा इतना सारा प्यार पाकर उन्हें जोर से गले लगा लेते हैं.
--
तीन साल... कल की ही बात लगते हैं... सबसे सुखद साल हैं... जिनका मुझे हर पल याद है.
दो महीने बाद भाईसाहब तीन साल के हो जाएंगे... और मुझे अभी से वह दिन याद आ रहा है 23 मार्च 2021. कितना इमोशनल दिन था मेरे लिए... हाथ में लेते हुए इस नन्हीं-सी जान को टप-टप आंसू गिरे थे. इन लगभग तीन वर्षों में कितनी बदल गई है जिंदगी. बहुत से एहसास हैं जो नए-नए मेरे अंदर जन्मे हैं... बहुत सी बातें हैं जो मैंने इस बच्चे से सीखी है... बहुत सा प्रेम है जो महसूस किया है... और भाईसाहब? लगभग तीन साल के भाईसाहब कुछ ज्यादा जिद्दी हो गए हैं... चूजी हो गए हैं... और बहुत सारा प्यार करने लगे हैं. मसलन ऑफिस से आते हैं पुच्ची पर पुच्ची देते हैं फिर जोर से पापा को भींच लेते हैं.
पूरे घर को कैनवास बना के रखा है. बड़ी-बड़ी ड्राइंग करते हैं. कभी-कभी तो बात भी नहीं मानते हैं. बातें अधिक क्यूट हो गई हैं और आवाज तोतली है पर निखलने लगी है.
पापा और भाईसाहब अच्छे दोस्त हो गए हैं. पापा कभी जिद मानते हैं... कभी नहीं भी. भाईसाहब गुस्सा करते हैं... कभी नहीं भी. भाईसाहब और पापा क्रिकेट खेलते हैं. कभी वह बॉलिंग करते हैं... कभी पापा बॉलिंग करते हैं. वैसे भाईसाहब अधिकतर 'तोहली अंकल' ही बनते हैं.
पापा और भाईसाहब बॉक्सिंग करते हैं. भाईसाहब के प्रहारों से बेचारे पापा गिरते रहते हैं.
पापा स्कूल छोड़ने जाते हैं भाई साहब लौट कर बोलते हैं "पापा त्यों अकेला छोड़ दिया था?"
पापा: "जिससे आप वहां फ्रेंड्स के साथ खेल पाओ."
...और भाईसाहब दौड़कर पास आकर गले लगते हुए बोलते हैं "मुझे तो आपते साथ थेलना है."
पापा इतना सारा प्यार पाकर उन्हें जोर से गले लगा लेते हैं.
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तीन साल... कल की ही बात लगते हैं... सबसे सुखद साल हैं... जिनका मुझे हर पल याद है.

Saturday, February 3, 2024

शौर्य गाथा 107.

 रात के 11 बजने को हैं और भाईसाहब जोर जोर से "दादू... दादू... दादू..." चिल्ला रहे हैं। रात में दादू की इतनी तेज याद आ रही है! पापा पूछते हैं "दादू को वीडियो कॉल करूं?"

भाईसाहब (अपनी तोतली आवाज में): "नहीं, मैं तो गाना गा रहा हूं।"
पापा मम्मा को हंसी आ जाती है! रात 11 बजे भाईसाहब जोर जोर से जादू... जादू... (कोई मिल गया) गाना गा रहे हैं। एलेक्सा देवी ने इन्हें सब सिखा दिया है!
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Wednesday, January 24, 2024

मां बिन दो दिन | पार्ट 5


पापा को मम्मा बिन दो दिन और दो रात बड़ी मेहनत करनी पड़ी है। भाईसाहब को दिनभर खेलों में व्यस्त रखा गया है, रात में अनेकानेक प्रयत्न कर सुलाया गया है और सुबह सुबह भाईसाहब के जागने से पहले उनके पास खड़े मिले हैं, जिससे वे सुबह जागते ही मम्मा को याद न करने लगे। कल तड़के सुबह मम्मा ट्रेन से आने वाली है और पापा को डर है कि भाईसाहब को सर्दी है तो पक्का मम्मा उन्हें कुछ न कुछ बोलेगी। फिलहाल बड़ी मुश्किल से बारह बजे तक भाईसाहब को सुलाया जा सका है। पापा ने सुबह चार बजे का अलार्म भरा है कि मम्मा की ट्रेन के समय जाग जाएं। पापा इस डर से कि अलार्म से भाईसाहब न जाग जाएं अलार्म से पंद्रह मिनट पहले ही अपने आप ही जाग गए हैं। पापा उठने की कोशिश करते हैं और भाईसाहब पापा से और अधिक चिपक गए हैं। पापा धीमे धीमे अपने को हटाते हैं और अपनी जगह को तकिए से रिप्लेस करते हैं। भाईसाहब कुनमुनाकर फिर से गए हैं।
मम्मा तड़के सुबह आ गई है और सुबह साढ़े नौ बजे जागने वाले भाईसाहब मम्मा की आहट से सुबह छः बजे ही जाग गए हैं। जागते ही भाईसाहब मम्मा से चिपक गए हैं। मम्मा उनकी आवाज सुनते ही बोलती है "इन्हें तो सर्दी हो गई है। ऐसे ख्याल रखा है यार....!" पापा को पता था कि ये होने वाला है। पापा कुछ बोलें उसके पहले ही उनको भी छींक आ जाती है और मम्मा फिर से बोलती है "आपको भी हो गई! खुद का भी ध्यान नहीं रखा!!" पापा मुस्कुरा रहे हैं। "अच्छा, मॉर्निंग वॉक पे गए थे?" मम्मा पूछती है। पापा अपनी हैल्थ का भी ध्यान कम रखते हैं। पापा हां में जवाब देते हैं।
मैं और शौर्य मम्मा की ओर ऐसे देख रहे हैं जैसे पूछ रहे हों "इतने प्रश्न क्यूं यार!" और मम्मा ऐसे देख रही है जैसे कह रही हो "भई, ध्यान रखना पड़ता है।"
...और मम्मा पापा को hug कर लेती है। भाईसाहब अभी भी मम्मा से चिपके हुए हैं।

Saturday, January 20, 2024

मां बिन दो दिन | Part 4


भाई साहब एक किताब लेकर आए हैं। मैं देखता हूं दीवान ए ग़ालिब है।
भाईसाहब: "पापा पापा मैं इस पर लिखूंगा।"
पापा: "अरे यह कौन सी किताब है?"
"पापा ये कॉपी है... कॉपी। मैं इस पर लिखूंगा।"
"अच्छा इस कॉपी पर क्या बना है?"
"पापा भगवान बने हैं... भगवान जी।"
मैं मुस्कुराता हूं। सोचता हूं ग़ालिब के चाहने वालों ने तो कम से कम उन्हें ईश्वर की तरह पूजा ही है।
पापा: "अरे आप मेरे हाथ पर लिख दो न। पापा की पेंटिंग कर दो।"
भाईसाहब को ये आईडिया ज्यादा पसंद आया है। वे पापा के हाथ पर अपनी सुप्रसिद्ध मॉडर्न आर्ट बनाने लगे हैं।
भाई साहब ने बनाने बनाते एक हार्ट (Heart) भी बना दिया है। इन्हें आने लगा है बनाना!
"आपने तो हार्ट बना दिया" पापा बोलते हैं। भाईसाहब बेफिक्र हैं। जैसे कोई उम्दा आर्टिस्ट बस अपने काम से काम रखता है, वैसे ही बिना सर उठा कहते हैं "पापा पापा मैं तो हार्ट भी बना लेता हूं।"
पापा मुस्कुरा रहे हैं। वहां ग़ालिब भी मुस्कुरा रहे हैं। शुक्र है उनका चेहरा मॉडर्न आर्ट का कैनवास बनने से बच गया।
लेकिन तभी भाईसाहब तोतली भाषा में बोलते हैं "पापा, पापा मम्मा कहां गई... मुझे मम्मा के हाथ पर भी बनाना है।"
...और बस, पापा भाईसाहब को कहीं और उलझाने में लग गए हैं।

Thursday, January 18, 2024

मां बिन दो दिन | Part 3


पापा शाम 7:15 बजे से ही भाई साहब को गोद में ले घूम रहे हैं। सारे घर की लाइट बंद हैं। 15 मिनट घूमने के बाद पापा इनको बेड पर लिटाकर खुद भी बगल में लेट जाते हैं। भाई साहब भी 'पापा की मेहनत को सम्मान देने' 15 मिनट तक आंखें बंद कर लेते रहते हैं फिर करवट बदलकर कहते हैं "पापा सोना नहीं है... नानी के रूम में चलो।" पापा ने मुस्कुराते हुए उठाते हैं और नानी के रूम में लेकर जाते हैं।
अब भाई साहब नाना नानी के साथ खेलने लगे हैं। नानी पराठा बना कर लाती है... भाईसाहब पराठा खा रहे हैं। नानू के साथ खिलखिला रहे हैं। ग्रैंड पैरेंट्स कितने अमेजिंग होते हैं न! कितनी जल्दी बच्चों से घुलमिल जाते हैं। उन्हें बच्चों को संभालने के कितने तरीके पता होते हैं। नाना नानी दिनभर भाईसाहब के साथ खेल रहे हैं, उन्हें खिला रहे हैं, उनके साथ डांस कर रहे हैं और मम्मा की याद नहीं आने दे रहे हैं।
तरकरीबन 9:30 बजे पापा उन्हें गोदी लेते हैं, एक बार और सुलाने की कोशिश कर रहे हैं। भाई साहब का फेवरेट गाना गाया जा रहा है। भाईसाहब दिनभर के थके हुए इसलिए पापा की गोदी में सोने लगे हैं।
पापा बेडपर बगल में उनसे चिपककर लेट जाते हैं। पंद्रह मिनट में ही भाईसाहब सो गए हैं।
दिनभर की मेहनत काम आई है। भाईसाहब पर्याप्त थके थे, इसलिए सोते समय मम्मा को याद नहीं किया है।
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सुबह 6:00 बजे भाई साहब जाग गए हैं। भाईसाहब की रनिंग नोज हो रही है। रात में ये ओढ़ते नहीं है। पापा ने 1:00 बजे तक तो जागकर उन्होंने उढ़ाया, फिर पापा ही सो गए। पापा को भी छींकें आ रही हैं। पापा भी नहीं ओढ़े हैं। रात भर जाग जागकर हम 'दोनों बच्चों' को जो ओढ़ाती थी वह तो अभी घर है नहीं। पापा और भाईसाहब दोनों ही मम्मा को अत्यधिक मिस कर रहे हैं। पापा इन्हें पेट पीठ गले में बेबीरब मलते हैं। ओढ़ाकर-छाती से चिपकाकर कहानी सुनाई जा रही है। फाइनली भाईसाहब 7:00 बजे सो गए हैं... पापा भी अब मॉर्निंग वॉक पर निकले हैं... दो-तीन घंटे तक भाई साहब सोएंगे ही।

Wednesday, January 17, 2024

मां बिन दो दिन | Part 2


आज पापा के दो ही टारगेट हैं -
एक, दिनभर भाईसाहब मम्मा को याद न करें।
दो, दिनभर में भाईसाहब इतना थक जाएं कि रात में जल्दी सो जाएं।
पापा दिन भर का प्लान बनाते हैं। भाईसाहब सुबह उठते ही मम्मा या पापा बोलते हैं और जिसका नाम लिया उसी की गोदी में आकर ही रूम से निकलते हैं। भाई साहब अभी से इतनी स्पेसिफिक हैं! पापा सुबह 9:30 बजे से ही भाईसाहब के पास में बगल में लेट जा गए हैं, भाईसाहब कल लेट सोए थे तो आज लेट उठने वाले हैं। करीब 10:00 बजे भाईसाहब जागते हैं और बगल में मुस्कुराते पापा दिखते हैं तो खुद ही भी मुस्कुराते हुए "पापा... पापा..." बोलते हैं और गोदी में आ जाते हैं।
चलो पहले पार्ट में पापा को सफलता मिल रही है।
पापा दिन भर में उन्हें क्रिकेट खिलाते हैं। 'तोहली अंतल' बहुत अच्छा क्रिकेट खेल रहे हैं। 300- 400 मीटर दूर एक स्कूल है, वहां तक वॉक पर लेकर चलते हैं। भाईसाहब चलते चलते प्यारी प्यारी बातें कर रहे हैं। पापा को भी 'हैंगआउट विद शौर्य' में मजा आ रहा है। बीच में डॉग मिलता है। भौंकता है। भाईसाहब: "पापा, ये बेड डॉगी है।"पापा दसवीं बार हम्म्म में जवाब देते हैं। भाईसाहब शशि दीदी अच्छी है... पुतरा तेज चलो... मैं तिरतेत खेलता हूं... और जाने क्या-क्या बोल रहे हैं।
शाम में भाई साहब नानू के साथ में बम बम बोले... मस्ती पर डोले... पर डांस कर रहे हैं। भाईसाहब नानू को बता रहे हैं कि "ये ईशान भैया की मूवी का गाना है।" नाना नानी दिनभर से केयर कर रहे हैं। उनका प्यार अद्भुत और अपूर्व है!
हमने मिलकर दिनभर मम्मा की याद नहीं आने दी है। फाइनली 7:00 बजे से हमें लगने लगा कि भाईसाहब को नींद आने लगी...

Monday, January 15, 2024

मां बिन दो दिन | Part 1


मम्मा को रात में ओवरनाइट ट्रेन से कांफ्रेंस के लिए जाना है इसलिए भाई साहब का ध्यान भटकाना जरूरी है। भाईसाहब कह रहे हैं "पापा तेत थाना है तेत। बर्थडे वाला तेत।" पापा को आइडिया आता है और पापा उन्हें ले जाते हैं केक लाने। भाईसाहब एक पेस्ट्री तो वहीं बेकरी पर ही चट कर जाते हैं और दूसरी मांगते हैं "पापा और भी खिलाओ ना।"
पापा "बेटा अब घर पर खायेंगे न।"
भाईसाहब "ओते पापा।"
पापा पेस्ट्री के साथ मम्मा के लिए ट्रेवलिंग के हिसाब से कुछ खाने के लिए भी ले लेते हैं। भाईसाहब को अपना मनपसंद खाने मिल गया है। अब भाईसाहब थोड़े कूल हैं।
पापा मम्मा को छोड़ने गए हैं, भाईसाहब नाना नानी के साथ हैं और ध्यान भटकाने टीवी तो है ही।
पापा लौट कर आते हैं। टीवी में चींटी घुस गई है कह नानू टीवी ऑफ करते हैं। भाईसाहब के टेंट्रम चालू होते हैं। पापा उन्हें गोदी में उठा लेते हैं। बना बनाकर कहानी सुनाई जा रही है। रात 11:30 बज रहे हैं। नानू भी बगल में लेटे हैं। पापा को लगता है भाईसाहब सोने वाले हैं कि भाईसाहब बोलते हैं "पापा, मम्मा कहां गई?"
पापा: "बेटा ऑफिस में है ना। आ जाएगी चिंता मत करो।"
भाई साहब आंखें मूंद रहे हैं कि फिर 10 मिनट बाद "पापा, मम्मा कहां गई?" पापा वही जवाब देकर सुलाने की कोशिश करते हैं। वो सो नहीं रहे हैं तो नानू उनसे कहते हैं "अरे! मेरा शौर्य छुप जाता है।" भाईसाहब रजाई में नानू के साथ छुप रहे हैं। पापा ढूंढने की 'कोशिश' करते हैं पर उन्हें ढूंढ नहीं पा रहे हैं। रात 12:30 बजने कोई हैं... भाईसाहब आधी नींद में आ गए हैं... यकायक से "पापा, पापा...गोदी... गोदी।" कहने लगते हैं।
पापा गोदी में लेते हैं। भाईसाहब 15 मिनट में सो जाते हैं। पापा और नानू ने चैन की सांस ली है।