मैं पूंछना चाहता हूँ कुछ,
कुल जमा तेईस कि उम्र में
ज्यादा समझ नहीं मुझे
लेकिन बचपन में
मैंने पडोसी के घर के
दो कांच फोड़े थे
तो माफ़ी मेरे पापा ने मांगी थी.
मुझे याद है...हाँ, याद है
जब मैंने पड़ोस के
छोटे से बिट्टू को
सड़क पे गिराया था तो
माँ ने खींच के मारा था मुझे.
गुस्से से बड़बड़ाई थी-
'शायद मेरी परवरिश में ही कहीं
खोट रह गई.'
मैं तुमसे पूछना चाहता हूँ,
आप बस घर के नहीं
सारे वतन के मुखिया हैं,
फिर क्यूँ नहीं कभी
जिम्मेदारी से स्वीकारी
सदस्यों कि गल्तियाँ
या क्यूँ नहीं कहा कभी
'शायद खोट हममें है,
हमारे नेतृत्व में है.'
चलो मैं तुम्हारे अल्लाह को
एक चवन्नी में खरीद लेता हूँ.
तुम मेरे ईश्वर को,
चार आने में खरीद लो.
हर उपवास को रोज़े से बदल देता हूँ,
तुम चाँद को उठा
उस कोने में रख दो,
जिससे दिखता रहे हमेशा.
हर रोज़े में
देखना पड़ता है इसे.
और ये करवाचौथ......उफ़! बेचारी सुहागिनें.
रख दो, इसे उस कोने में रख दो!
देखो दिए तो छुओ,
तुम्हारे छूने से बुझते नहीं ये.
मेरे छूने से,
तुम्हारी कोई ईदी बासी भी नहीं हुई.
जमाराह उठा के पटक देते हैं,
रावन इस बार नहीं बनाते.
पापों को लताड़ना क्या
जब वो हममें-तुममें
सामान हज़ार बरस से बैठा है!
चलो इस बार
तुम अपनी दाढ़ी काट लो,
मैं अपनी चोटी काटता हूँ.
मैं जनेऊ फेंकता हूँ,
तुम टोपी फेंक दो.
आदमी को आदम सा दिखने तो दो ज़रा,
क्या-क्या नकाब पहनेंगे.....?
चलो मेरी आँखों की
नफरत मोहब्बत से रंग दो तुम.
मैं तेरी आँखों का तीखापन
प्यार से धकेलता हूँ.
इस बार गले मिलते हैं,
....लड़ेंगे फिर कभी.
या कभी नहीं.