Tuesday, October 17, 2023

जंगल की कहानियां 3.


 मैंने यहाँ नया नया ज्वाइन किया है. कुल जमा एक हफ्ता ही हुआ है. बिलकुल नयी जगह पर फील्ड को समझना, स्टाफ को जानना इसी में ही कई दिन लग जाते हैं. इन्हीं सब के शुरूआती दौर में हूँ और आज शाम होते ही लगातार फ़ोन बजने लगा है. एक गांव में, एक खेत में मगर घुस आया है. कुछ दूर पर नदी है, धान का खेत है, जिसमे डेढ़ दो फुट पानी भरा हुआ है, शायद इसलिए ही नदी से होकर खेत तक पहुँच गया है. अगस्त का महीना है, अँधेरा लगभग हो गया है, गांव से खेत लगभग एक किलोमीटर है. शाम को कुछ भी कार्यवाही संभव नहीं है लेकिन सुबह से जल्दी कार्यवाही करनी होगी. मगर अगर गांव तक पहुँच गया तो मानव और मगर दोनों कि जान को खतरा है.

मैं स्टाफ से बात करता हूँ. दो स्टाफ कि ड्यूटी रातभर के लिए लगा देता हूँ. वे खेत में जाते हैं, हरकारे को समझाते हैं, लेकिन हरकारा वहां से जाने से मना कर देता है. वे अब रातभर वहीँ हरकारे के साथ बैठकर जागेंगे.

मैं वरिष्ठ को फ़ोन करता हूँ. मैंने अभी तक स्पॉटेड डियर, बार्किंग डियर के रेस्क्यू किये थे लेकिन मगर जैसे किसी हिंसक, फुर्तीले जानवर का रेस्क्यू पहली बार करना था. रेस्क्यू के लिए संसाधन आवश्यक थे, वे भी जुटाने थे. वरिष्ठ जवाब देते है "विवेक तुम कर लोगे, मुझे भरोषा है. बाकि जो भी आवश्यक है, मुझे फ़ोन करना." उनका मुझपर भरोषा देख मुझे तसल्ली मिलती है.

रात में मैं अगले दिन कि तैयारी करता हूँ. एक टीम बनाता हूँ. कुछ वरिष्ठों को फ़ोन कर 'रेस्क्यू कैसे कर सकते हैं' पूछता हूँ. विवेक शर्माजी, एक स्नेककैचर हैं, उनके बारे में पता चलता है. उन्हें फ़ोन करके पूछता हूँ "आप इसमें मदद करेंगे?" वे सहर्ष तैयार हैं. उन्होंने मगर का रेस्क्यू कभी नहीं किया है. उनके लिए भी ये अडवेंचरस होने वाला है. 

सुबह पांच बजे स्टाफ का फ़ोन आता है. "सर यहाँ भीड़ जमा होने लगी है. करीब दो सौ तीन सौ आदमी आ गए हैं." यहाँ के लोगों को वाइल्डलाइफ को लेकर अलग क्रेज है! मैं थाने में कॉल करता हूँ. पुलिस स्टाफ को घटना स्थल पर क्राउड मैनेजमेंट के लिए बुलाता हूँ. अपने बाकि स्टाफ को भी बुला लेता हूँ. सुबह पांच बजे इतने लोग तो एक दो घंटे बाद में कितने होंगे! सोशल मीडिया, व्हाट्सप्प के जमाने में खबर आग से भी तेजी से फ़ैल रही है.

अच्छा उजाला होते ही करीब सात बजे से हम 'मिशन मगर रेस्क्यू' चालू कर देते हैं. तब तक तरकरीबन डेढ़ दो हज़ार लोग, जिसमे महिला और बच्चे भी शामिल हैं, खेतों के आसपास आ गए हैं. अब मुझे मगर का भी रेस्क्यू करना है और इन लोगों को भी मगर से बचाना है. मैं माइक लेकर अपील करता हूँ, लेकिन लोग कहाँ मानने वाले हैं! स्टाफ और पुलिस स्टाफ डंडे हाथ में लिए है लेकिन इनपे असर नहीं है. खैर मगर की लोकेशन से डेढ़ सौ मीटर दूर लोगों को करने में सफल हैं. वहां लोग डर कर वैसे भी नहीं जा रहे हैं और मैंने बोल दिया है कि जो बॉडीबिल्डर मदद करने तैयार हैं आ जाएँ. हमें रस्सी खींचने में मदद चाहिए. बस, फिर क्या था कुल जमा चार पांच लोगों के अलावा सब तमाशबीन पीछे हट गए हैं.

नर मगर है. लम्बाई दस से बारह फुट. हमारे पास आवश्यक उपकरण हैं. हम कोशिश करते हैं, रस्सी के फंदे डालते हैं और मगर फंसते ही लोटने लगता है. अधिक रस्सियां लायी जाती हैं, एक समुचित दूरी बनाये रखने का ध्यान रखा गया है, एक तरफ से आवाज़ कि जा रही है कि वो उस ओर ना जा पाए. लम्बे बांस भी हैं कि एक ओर आये तो बांस कि मदद से उसे हरकाया जा सके. करीब दो घंटे लगातार मेहनत की गई है. हम सभी लोग और शर्माजी मुस्तैदी से डटे हुए हैं, बाकि स्टाफ क्राउड मैनेजमेंट का अपना अपना कार्य कर रहा है. करीब दो घंटे लगातार मेहनत कि गई है. मगर को रस्से से जकड लिया गया है. अब हम आश्वस्त हो गए हैं कि अब उससे खतरा नहीं तो कुछ लोग उसे डंडों कि मदद से टांगकर खेत के बाहर लेकर आ रहे हैं. खेत के बाद खेत हैं तारकरीबन तीन सौ मीटर तक. दुर्गम पगडंडी पर मगर को कंधे पर डाले लेकर आने में हालत खराब हो गई. लेकिन किया भी क्या जा सकता है, न कोई वाहन और पिंजरा वहां तक जा सकता है.  

शर्मा जी का इसमें सर्वाधिक योगदान रहा है. वे लगातार हमारे साथ सिपाही कि तरह डटे रहे हैं. हम आगे की कार्यवाही करते हैं. पास ही करीब तीस किलोमीटर दूर एक बड़े बांध का बैकवाटर क्षेत्र है जहाँ पर मगर प्राकृतिक रूप से रहते हैं, वहां उसे विधिवत कार्यवाही करने के बाद छोड़ा जाता है. 

हमने शर्मा जी का नाम पंद्रह अगस्त पर कलेक्टर महोदय द्वारा सम्मान के लियर प्रस्तावित किया है. अवार्ड लेने के बाद वे अभिवादन करने आते हैं. उनके चेहरे पर गर्वयुक्त ख़ुशी देखक्रर अच्छा लगता है.