Thursday, May 5, 2022

India As I Know: Story of The #SaveBuxwahaForest Movement.



#SaveBuxwahaForest Movement को सोशल मीडिया पर मैं करीब से शुरू से ही देख रहा था. यह पर्यावरण से जुड़ा Movement था इसलिए इसमें मेरी उत्सुकता कुछ ज्यादा थी। लेकिन अब तक मुझे वही पता था जो मैंने सोशल मीडिया पर पढ़ा था इसलिए मैंने और कुछ जानने के लिए संकल्प से संपर्क किया। संकल्प उसी क्षेत्र से हैं और आंदोलन की शुरुआत संकल्प और उनके कुछ साथियों ने ही मिलकर की थी।


संकल्प से मैं मुख्यतः था 2-3 प्रश्न करता हूं कि आंदोलन शुरू कैसे हुआ? इस आंदोलन से अब तक क्या-क्या फायदे हुए हैं? और इस आंदोलन से आप और आपके मित्रों ने क्या सीखा? अंतिम प्रश्न इन युवाओं की सोच जानने के लिए किया गया था।


मात्र 24 वर्षीय संकल्प बताना शुरू करते हैं। ' भैया अप्रैल 2021 की बात है, मैं और मेरे साथी को कोविड में काम कर रहे थे उसी दौरान अखबार में एक खबर आई कि बक्सवाहा के आसपास के जंगल का क्षेत्र आदित्य बिरला ग्रुप की एक कंपनी के लिए लीज पर दिया जा रहा है जिससे वहां हीरे का उत्खनन किया जा सके। क्योंकि बक्सवाहा क्षेत्र और पूरा संपूर्ण बुंदेलखंड क्षेत्र ही गरीबी, भूखमरी, अशिक्षा और रोजगार की कमी से प्रभावित रहा है इसलिए मेरे लिए खुश कर देने वाली खबर थी। लेकिन मैंने अखबार की हेडलाइंस को फॉलो करना शुरू कर दिया तो पता चला इसके लिए तकरीबन 2,15,875 (दो लाख पंद्रह हजार आठ सौ पचहत्तर) पेड़ काटे जाने हैं जिससे उस क्षेत्र के तकरीबन 10 हजार लोग प्रभावित होने वाले थे। अधिकतर लोग लघु वनोपज- महुआ, तेंदूपत्ता, चिरौंजी गुठली, जलाऊ लकड़ी और चारे के लिए जंगल पर निर्भर हैं। इसलिए उन पर प्रभाव ज्यादा पडने वाला था। साथ ही मैंने पड़ा कि प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से मात्र 400 लोगों को वहां पर रोजगार मिलने वाला था जिसमें से अधिकतर कुशल (skilled) और अर्ध कुशल (Semi-Skilled) लेबर का उपयोग होना था मतलब की स्थानीय लोगों को बहुत ज्यादा फायदे वहां पर नहीं थे किंतु उनकी आय जरूर खतरे में थी। 


मैंने और मेरी अन्य साथियों ने मिलकर रिसर्च की तो पता चला कि यह क्षेत्र केन्‍द्रीय भूमि जल बोर्ड ( Central Ground Water Authority (CGWD))  द्वारा 2017 में सूखा प्रभावित क्षेत्रों (Semi Critical Condition) में घोषित है किंतु यहां पर 160 लाख लीटर पानी प्रतिदिन उपयोग किया जाना था मतलब साफ था पानी का अत्यधिक उपभोग उस जगह होना था जहां पर पानी की पहले से ही कमी है। इसके लिए वहां पर वन में उत्सर्जित होने वाली धाराओं पर बांध बनाए जाने थे मतलब साफ था कि छोटे-छोटे नाले सूख जाने थे। छोटे नालों से पानी नदी में बहकर जाता है। इसलिए बेतवा, शासन नदियां भी प्रभावित होने वाली थीं। साथ ही यह ओपन कास्ट माइनिंग का प्रोजेक्ट था अतः भूजल पुनर्भरण (Groundwater recharge System) भी खत्म होने वाला था और भौम जलस्तर (Water Table) भी तीव्रता से नीचे जाने वाली थी। मतलब साफ था कि  स्थानीय लोगों को ना तो रोजगार था वहां पर ना प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से ज्यादा फायदा होने वाला था, जबकि ढेर सारे घाटे सामने आने वाले थे। जिसमें सबसे बड़ी समस्या पानी की होने वाली थी।


हमने संपूर्ण रिसर्च की थी और उसका डाटा सोशल मीडिया पर पोस्ट और वीडियो के माध्यम से डालना शुरू किया। धीमे धीमे अन्य डॉक्यूमेंट पढ़े

तो पता चला 2014 में जो फॉरेस्ट क्लीयरेंस रिपोर्ट दी गई थी उसमें वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 (Wild Life (Protection) Act, 1972) के Schedule-I की 7 प्रजातियां वहां पर दिखाई गई थी साथ में बहुत सारे जानवर (तेंदुआ, भालू, काला हिरण, चीतल, मोर, लकड़बग्घा, फॉक्स इत्यादि)  वहां पर प्रदर्शित किए गए थे लेकिन नई फॉरेस्ट क्लीयरेंस रिपोर्ट में ये सब प्रदर्शित ही नहीं किए गए थे। प्रदर्शित किया गया था कि एक भी जानवर 382 हेक्टेयर के जंगल में नहीं है! जबकि सच ये नहीं था।


 इंटरेस्टिंग बात तो यह है भैया कि मात्र 19 किलोमीटर पर पन्ना टाइगर रिजर्व की बफर जोन है। साथ ही यही क्षेत्र पन्ना टाइगर रिजर्व और नौरादेही वाइल्डलाइफ सेंचुरी के बीच में एक कॉरिडोर का भी काम करता है, इसलिए वाइल्डलाइफ के हिसाब से भी यह बहुत महत्वपूर्ण क्षेत्र है।


हमने सारी डिटेल को सोशल मीडिया पर पोस्ट करना शुरू कर दिया और देखते ही देखते न्यूज़ वालों ने हमारी खबरों को सोशल मीडिया से उठा उठा कर के अपने न्यूज़पेपर में और न्यूज़ चैनल में डालना शुरू कर दिया। मजेदार था कि उनकी खुद की रिसर्च कुछ भी नहीं थी, वह हमारी सोशल मीडिया अकाउंट से उठा उठा कर के ही फैक्ट डाल रहे थे।


धीमे धीमे यह हुआ कि देश की सबसे बड़ी पर्यावरण (Environment) से संबंधित मैगजीन डाउन टू अर्थ (Down To Earth) में भी इसके बारे में छपा, ज़ी न्यूज टीवी चैनल ने भी उसके बारे में डाला और झारखंड के, इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के छात्र संघ, छोटे-बड़े एनजीओ भी हमारे साथ आना शुरू कर दिया।


हम सब ने मिलकर के छोटे बड़े एनजीओ के साथ विश्व पर्यावरण दिवस 5 जून 2021 को #SaveBuxwahaForest मूवमेंट  ट्विटर पर चलाया और उस दिन वह टॉप 3 ट्रेंडिंग हैशटैग में से एक था।


हम युवा अपना हर कदम फूंक-फूंक कर के रख रहे थे. क्योंकि हमें रिसर्च भी करनी थी, हमें यह भी ध्यान देना था कि यह आंदोलन गलत हाथों में ना चला जाए, हमें यह भी ध्यान रखना था कि हम कानून का किस तरीके से उपयोग कर पाएंगे और किस तरीके से समाज के हर तबके को शामिल कर (सोशल मोबिलाइजेशन) के लोगों को अपने साथ शामिल करवाएं.


इसके लिए हमने अलग अलग टीम बनाई। दृगपाल सिंह, अभिषेक जैन ने बहुत अच्छी तरीके से सोशल मोबिलाइजेशन किया। विवेक दांगी, अनुज पाटनी ने बहुत अच्छी तरीके से सर्च की। आशिक मंसूरी ने इमली घाट, कसेरा, बक्सवाहा में नुक्कड़ सभाएं की। हमारी मेहनत देख ग्राउंड पर और सोशल मीडिया पर लोगों ने जुड़ना शुरू कर दिया।


इसका फायदा यह हुआ कि मूवमेंट के सपोर्ट में देश भर से लोग आ गए सुप्रीम कोर्ट हाईकोर्ट में कई लोगों ने याचियाएं लगाईं। डॉ धरनेंद्र द्वारा एनजीटी में केस दर्ज किया गया और उनकी याचिका पर एनजीटी ने बुक्सवाहा में माइनिंग के खिलाफ अगस्त में स्टे लगा दिया। उस पर मुहर लगाते हुए हाईकोर्ट ने अक्टूबर 2021 में स्टे ऑर्डर दे दिया।


संकल्प इतनी सारी बातें इतनी आराम से मुझे बता रहे थे कि मैं उनके ज्ञान, उनकी कोशिशों को देखकर हतप्रभ था। इसलिए मैंने उनसे पूछ ही लिया कि "आपका क्या पॉलिटिक्स में आने का इरादा है?" 

वे बोलते हैं "नहीं भैया, मेरा कोई इरादा राजनीति करने का नहीं था। इनफैक्ट हम में से किसी का भी इरादा राजनीति करने का नहीं था। हम लोग अपने क्षेत्र के लोगों का सोच कर के यह कार्य कर रहे थे। अभी भी मैं समाज के अंदर जाकर के कुछ बदलाव लाने के लिए सिविल सर्विसेस की तैयारी कर रहा हूं।"


मैंने उनसे पूछा "आप और आपके दोस्तों पर इस आंदोलन का क्या प्रभाव पड़ा?"


  वह बोलना शुरू करते हैं "भैया सबसे बड़ी बात तो हम सब का ज्ञानवर्धन हुआ। हमें पहली बार पता चला कि क्या-क्या क्लीयरेंस देश में माइनिंग के लिए ली जाती है। इसके अलावा हम लोगों को जोड़ पाए थे, हमारी सभा में लोगों ने हमें सुना था। पहली बार हम लगा था कि हम सब मिलकर काम करें तो वह बेहतरीन काम कर सकते हैं। पहली बार हम एक टीम के रूप में आए थे जिनमें से अधिकतर लोगों को तो मैं पहले से जानता भी नहीं था और कुछ से तो अभी तक नहीं मिला हूं।


हमने सीखा कि First Study, Learn then Act (पहले पढ़ो, सीखो, फिर काम करो) हमने सीखा कि किस तरीके से सरकार के द्वारा बनाए गए चैनल/कानून का जैसे एनजीटी, आरटीआई, हाईकोर्ट का सही तरीके से प्रयोग किया जाता है। लोगों का साथ कैसे मिलता है, मैनेजमेंट कैसे किया जाता है और नकारात्मक लोगों से कैसे दूर रहा जा सकता है।


मजेदार तो ये था कि हमें कुछ लोगों ने देशद्रोही तक घोषित करने की कोशिश की। फेसबुक पर कुछ ग्रुप के द्वारा हमारे खिलाफ वीडियो डाले गए, स्थानीय विधायक ने हम लोगों के लिए "भटके हुए युवा जो विकास के खिलाफ हैं" तक कहा।


तब भी हम सब  उन सब के खिलाफ डटे हुए थे। हमारी अच्छी कोशिशें देख वाटरमैन ऑफ इंडिया श्री राजेंद्र सिंह, मेधा पाटेकर,आशीष गौतम, एक्टर अखलेंद्र मिश्र, आशुतोष राणा,  जी पाटन ऑफ इंडिया मेघा पाटेकर राम आशीष गौतम, धरनेंद्र जी, अंकिता जैन, निखिल दवे साथ आए, डाउन टू अर्थ, द वायर, क्विंट हिंदी, भास्कर आदि ने इस आंदोलन के बारे में लिखा।'


अंत में संकल्प मेरे से एक बात कहते हैं, " भैया कैंपा एक्ट (Compensatory Afforestation Fund Management and Planning Authority (CAMPA) Act) अंतर्गत हुए compensatory Afforestation (प्रतिपूरक वृक्षारोपण) से उसी गुणवत्ता का जंगल खड़ा नहीं सकता है। बिना वाइल्डलाइफ के यह चंद पेड़ों का समूह बस होगा।"


बक्सवाहा के जंगलों की स्थिति अभी ये है कि उत्खनन पर हाई कोर्ट के आदेशानुसार फिलहाल रोक लगी हुई है। सागर विश्वविद्यालय ने उसी क्षेत्र में 9000 साल पुराने भृत्तिचित्रों की ख़ोज की है,  इसलिए इस क्षेत्र को सुरक्षित रखने का एक और कारण हमारे पास पास है।


#indiaasiknow #youthiconofindia


(तस्वीरें: संकल्प और बक्सवाहा के जंगल)