Sunday, January 12, 2014

रोज़गार




इक सवाल की तरह पनपी हो तुम
अब मुश्किल है कह पाना
कि रोटियों की तड़प ज्यादा है या तुम्हारी.

उफ़! रात की हथेली पे चाँद का रुपया
बरवस तुम्हें भुलाता है.
छू लूँ चाँद या तोड़ लूँ,
खरीद लूँ दो रोटियां
जिससे तुम्हें याद कर पाऊँ, भरपेट.