Friday, November 20, 2009

तुम

बंजर सी धरती पे,
इक बूँद सा गिरे!
समा गए.
फिर बादल सा छलछला गये.
अब बंजर धरती हरियाली है.
फूल खिले और खुशहाली है.

चट्टान से कठोर मन में,
तुम पानी सा,
दरारों में भरे!!
फिर हिम बन गये,
चट्टानें फोड़ गये!!

अरमानो में,
किरदार सा आ गये!
चुपके से ही समां गये.
अब अरमान जब भी जागते है,
तुमको साथ पाते है!

मेहमान थे

मेहमान थे,
मेहमान से,
निकल आये उनके दिल से.

उन्होंने रोका भी नहीं,
हम रुके भी नहीं.
इक हद के बाद,
मेहमान, मेजबान कि परेशानी बन जाता है.
हम परेशानी थे,
वो परेशान थे.
हम बात समझ चुपचाप निकल आये.
दिल कि भरी जगह,
चुपचाप छोड़ आये.
यादें साथ लाये, बातें साथ लाये.
अकेले ही गए थे, तनहा ही आये!!

मगर,
वो खुश हैं,
इक बेवजह का मेहमान जो चला गया!!!
शायद मेरी जगह किसी और ने ले ली हो!!
शायद वो यही चाहते हो!!!