Tuesday, August 29, 2017

#3_Train_Accidents_In_10_Days

मेरे देश में बुलेट ट्रेन पे काम
शुरू हो चुका है.
यकीन मानिए एक दिन हम तरक्की में
चीन जापान के बराबर होंगे.
अमरीका में भी नहीं है बुलेट ट्रेन!!
ट्रेन हादसे!!
क्या कहा??? सुनाई नहीं दिया.
अरे बहुत है जनता देश में,
हादसे तो होते रहते हैं
ट्रेनें तो पटरी से उतरने ही बनी हैं.
तुम ज्यादा मत सोचो.
बुरा मत देखो, कहो, सुनो.
खालिश गांधीवादी रहो बे!
सीधे बुलेट ट्रेन पे कन्सन्ट्रेट करो.
अरे! बुलेट ट्रेन देखना
दस साल बाद.
विकास का कार्य पूर्ण होगा तब.

धर्म और राजनीति

जब धर्म को राजनीति और राजनीति को धर्म की शह मिलती है, आम नागरिक ठगा जाता है.
हमारे दिल रेप पीड़िता के लिए नहीं चीत्कारते, न ही गोरखपुर 70 बच्चों की मौत पर लेकिन हम एक अपराधी के खातिर मरने- मारने पे उतारू हो जाते हैं.
दरअसल जनता जैसी होती है उसे वैसे ही राजनेता मिलते हैं और वैसे ही गुरु. इसलिए हमारे लोकतंत्र के मंदिर (संसद) में 33% जघन्य अपराधी हैं और लोकनिर्माता के घर (मंदिर) में ऎसे बाबा.
बाबा और ये 30 मौतें असल में हमारी सोच और समझ की प्रतिकृति हैं और हमारे समाज की नग्न तस्वीर.

तीन तलाक़

कॉमन सेंस बड़ी रेयर (दुर्लभ) चीज है. शायद इसलिए तीन तलाक़ जैसे फैसले 2017 तक का इंतज़ार करते हैं और उसपर भी दो 'हाइली क्वालिफाइड' (अत्यधिक योग्य) जज अपने पूर्वाग्रह नहीं छोड़ पाते. सदियों से चली आ रही रीति-रिवाज-मान्यताएं-धारणाएं जरुरी नहीं सही ही हों. अगर होतीं तो हम दलित-उत्थान के लिए प्रयासरत नहीं होते, न ही सती प्रथा ख़त्म हुई होती. 
ये नहीं है कि बस यही एक कुरीति थी. अभी कई बाकि हैं. हर धर्म में ही. क्यूंकि कुरीतियां मज़हब देख के नहीं बनतीं. वे एक निश्चित वक़्त का समाज देख के बनती हैं, जिन्हें बाद में आने वाली पीढ़ियां फॉलो (पालन) करती रहती हैं... और वे कुरीतियां सदियों तक चलती रहती हैं. फिर हटाओ तो विरोध इसलिए होता है कि वो सदियों से चली आ रही थी.
जरूरी नहीं हमारे बाप-दादाओं ने जो किया वो सही हो और जो हम आज करें वो कल के वक़्त के हिसाब से सही हो. क्यूंकि नैतिकता वक़्त और समाज दोनों के हिसाब से बदलती है... और इसलिए किसी भी रीति का बदलना भी जरूरी है... नहीं तो वो कुरीति में परिणित हो जाएगी.
विरोध इस निर्णय का नहीं बल्कि इस बात का होना चाहिए कि ये निर्णय इतनी देरी से क्यों आया.
इतिहास गवाह है जितना समाज और धर्म का बेड़ागर्क धर्मगुरुओं ने किया है उतना शायद ही किसी ने किया हो. भोपाल में होने वाली मौलवियों की मीटिंग कितना करेगी, देखने वाली बात होगी.