भाईसाहब लीलाधर हैं. उनकी लीलायें देखकर ऐसा लगता है कि बस देखते ही रहें. तीन चार दिन से सर्दी ज़ुकाम से पीड़ित थे, आज कुछ राहत में हैं. राहत मिलते ही लीलायें शुरू हो गई हैं. रात के पौने ग्यारह बज रहे हैं और भाईसाहब की आंखों में नींद नहीं है. उनको सुलाने के सारे जतन किए जा चुके हैं और सारे ही व्यर्थ गए हैं. थककर पापा बोलते हैं 'बेटा, अब हम थक गए हैं और आपको सुलाने के चक्कर में हमें Headache भी होने लगा है.'
भाईसाहब ने ये सुना और पापा के पास आए और पापा के गाल पर प्यार से हाथ फेर
बोले ' प्याये.. प्याये.. पापा', फिर बड़े जतन कर भाईसाहब पलंग से नीचे उतर गए हैं. जबतक हम कुछ समझ पाएं उसके पहले ही ड्रेसिंग टेबल पर रीच में आई कोई सी शीशी उठा लिए हैं. बड़े जतन से फिर बेड पर चढ़े हैं.
जैसा हम उनकी मालिश करने के लिए तेल की शीशी को उल्टा कर हथेली में तेल लेते हैं वैसे ही उन्होंने बंद शीशी को किया और पापा के पास खड़े होकर पापा के सर की मालिश शुरू कर दी है. पापा मम्मा उनकी यह लीला देख हंस देते हैं और उन्हें रोकते हैं लेकिन वे मानने को तैयार नहीं हैं. पापा को सरदर्द है और कुल उन्नीस महीने के हमारे श्रवणकुमार सेवा में लग गए हैं.
उनकी नन्हीं कोमल हथेलियों का स्पर्श बहुत प्यारा लग रहा है इसलिए पापा भी थोड़ी देर उन्हें ये करने देते हैं. थोड़ी देर वह मुस्कुरा कर करते रहते हैं और फिर कहते हैं ' फि..नि...च्छ' (Finish). नया शब्द है जो अभी अभी ही सीखा है.
लेकिन अब मम्मा को भी उनकी लीला का लालच आ गया है. उनकी इस हरकत पर किसी को भी आ सकता है. इसलिए मम्मा बोलती है बेटा मेरे पांव में भी दर्द है... और भाईसाहब उनके पांव की मालिश करना चालू कर देते हैं. मम्मा उन्हें पकड़कर जोर से गले लगा लेती है.