Sunday, August 14, 2022

हम | भोपालनामा 8

 वो लड़की

पीला पहन लेती है
तो बसंत हो जाती है,
गुलाबी पहने तो जयपुर.
वो इतनी हरी है जैसे भोपाल हो.
उसकी आँखों में बड़ी झील तैरती है.
मैं प्रेम हूं,
वो ममत्व.
मैं नदी भर के उसपे लुटाता हूं,
वो सागर है.
मैं गीत हूं,
वो धुन.
और जो जो मैं नहीं हो पाता
वो सबकुछ हो जाती है.
लम्हा तक हो जाती है सिमटकर.
मैं उसके साथ ख्वाबों का शहर
भोपाल होना चाहता हूं
वो मेरे साथ
आसमान हो जाना चाहती है.
हम हर दिन साथ होना चाहते हैं.
मैं उसका पिता होते होते रह गया
वो सच में मेरी माँ हो गई.