Tuesday, December 1, 2009

सच

सच कहती हूँ,
मैं खफा नहीं,
न ही बेवफा!

तुम,
नींद, दिन, रात
सब फना कर,
मेरे हो गये.

मैं,
तुम्हारी थी,
तुम्हारे हर पड़ाव पर,
साथ निभाने.
मंजिल और करीब लाने.

तुमने,
बढ़ना छोड़ दिया,
चलना छोड़ दिया.
ये कैसे बर्दाश्त करती!!

तुम्हारी उन्नति के लिए,
अथाह तन्हाई सहती हूँ.
बेवफा नहीं,
दुनिया की नज़रों में,
फिर भी बेवफा बनती हूँ.
 मेरे प्यार को,
इससे बड़ा सबूत क्या दूँ?
काश! तुम समझो........सच क्या है.