Monday, May 24, 2021

जंगल की कहानियां : #buxwahaforestmovement

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बुंदेलखंड क्षेत्र जो मध्य प्रदेश के 7 और उत्तर प्रदेश के 7 जिलों में फैला हुआ है. एक पठारी क्षेत्र है. पठारी क्षेत्रों की अपनी अलग अलग समस्याएं होती हैं, किन्तु इस क्षेत्र की मुख्या समस्या ये है कि यहां पर मृदा कि बहुत गहरी परत नहीं है. कहीं तो 50cm से भी कम है. ऐसे क्षेत्र कि समस्या ये होती है कि यहाँ की मिट्टी वर्षाजल बहुताधिक नहीं सोख पाती है और वर्षाजल का Runoff बहुत अधिक होता है. जिससे मृदा का ऊपरी उपजाऊ परत का बहाव भी बहुताधिक होता है. चूँकि वर्षा का जल धरती में नहीं समाता है इसलिए वर्षाकाल में बाढ़ की आशंका और बाकि समय में सूखे की आशंका अत्यधिक होती है. अत: ऐसा क्षेत्र Flood Prone and Draught Prone दोनों होता है.
इसके अलावा बुंदेलखंड कम वर्षा (Low Rainfall), गर्म जलवायु (Hot Climate), Grid and Ravine Lands, अल्प सिंचाई (Low Quality of Irrigation) की समस्या से गुजर रहा है. जिसक जिक्र सरकार ने 2009 में बुंदेलखंड पैकेज देते वक़्त किया था और नीति आयोग अपनी रिपोर्ट 'Study of Bundelkhand' (2016) में कर चुका है.
तुम्हें पता है इतनी सारी समस्याओं के लिए हमें कई अलग अलग उपाय की जरुरत नहीं है. इन सब समस्याओं का हल एक ही उपाय से हो सकता है, और वो उपाय है- Forestation (वनोपरोपण या वनों का निर्माण), #part1 में 'वनों का महत्त्व' पढ़ेंगे तो आपको समझ आएगा.
अब हम बक्सवाहा पर आते हैं, जहां बुंदेलखंड की ऊपर लिखित अधिकतर समस्याएं तो मौजूद हैं किन्तु वहां Forestation (वनोपरोपण) नहीं, उल्टा Deforestation (वनोन्मूलन) होने वाला है.
बक्सवाहा छतरपुर जिले का हिस्सा है, जहाँ के वन क्षेत्र पन्ना टाइगर रिज़र्व के बफर क्षेत्र से मात्र 20km दूर है. मतलब वनस्पति और जीव (Flora and fauna) में यह क्षेत्र पन्ना नेशनल पार्क वनक्षेत्र जैसा ही है. मजेदार बात तो ये है कि यह क्षेत्र बुंदेलखंड की गंगा बेतवा नदी का कैचमेंट एरिया है, और यहाँ पर हीरे की खदानें आने पर सारी सरिताओं का पानी और भूमिगत जल खनन कार्य में उपयोग होने वाला है.
आप अगर गूगल पर बुंदेर डायमंड ब्लॉक (Bunder Diamond Block) डालेंगे तो यहाँ पर सर्वे करने वाली रिओ टिंटो कंपनी के प्रपोजल की एक रिपोर्ट पीडीऍफ़ फॉर्मेट में मिलेगी जिसमें उसने खनन के लिए 971.515 हेक्टेयर वन भूमि के डायवर्सन की बात कही है. इसमें आसपास के 12 गावों का विस्थापन भी शामिल है. पढ़ेंगे तो उसमें वन विभाग की टिपण्णी भी है जिसमे कहा गया है की ये क्षेत्र वाइल्डलाइफ कॉरिडोर है और इसमें चौसिंघा, तेंदुआ, चीतल, चिंकारा, मोर आदि जानवरों का निवास है और टाइगर के लिए भी माइग्रेटरी कॉरिडोर है.
2019 में आदित्य बिरला ग्रुप की Essel Mining कंपनी को यहां पर हीरे के उत्खनन का प्रोजेक्ट 364 हेक्टेयर भूमि के लिए मिला है. हमें सोचना होगा कि पूरे वनक्षेत्र के इस हिस्से में क्या जानवर विचरण नहीं करते होंगे? यहाँ पर खनन क्या बाकि के वनक्षेत्र को प्रभावित नहीं करेगी? 2015 में टाइगर मूवमेंट रहा है. क्या खनन इसे प्रभावित नहीं करेगा?
कुछ और प्रश्न भी हैं जो ऑफिसियल वेबसाइट पर खंगाल कर पढ़ने के बाद समझ आती है:-
1. जिन 6 गांवों के आसपास प्रस्तावित खनन क्षेत्र (proposed mining area) है उनमें से 2 गाँव खनन एरिया के बहुत पास हैं, 1km से कम दूरी पर हैं.
2. क्षेत्र का सामाजिक प्रभाव आकलन (Social Impact Assessment) नहीं हुआ है. अगर हुआ भी है तो Detail Data Analysis पब्लिक में नहीं है.
ध्यान रखें, सोशल Social Impact Assessment के 6 उपभाग होते हैं-
a. Hazard Assessment
b. Risk Assessment
c. Economic assessment
d. Project program and policy evaluation
e. Cultural Impact
f. Environmental Impact Assessment
3. जो भी आकलन (Assessment) पब्लिक में है वो एकतरफा (Onesided) है, प्रोजेक्ट पाने वाली कंपनी द्वारा बनाया गया है.
4. चौथा प्रश्न मेरा Environmental Impact Assessment ( पर्यावरण प्रभाव आकलन), Economic Value of Forests (वनों का आर्थिक मूल्य) और Cost Benefit Analysis (लागत लाभ विश्लेषण) पर है.
हालाँकि इसमें राष्ट्र स्तर के नियम होते हैं. अत: इसपर अगली कड़ी में विस्तार से बात करनी होगी.