Friday, September 8, 2023

Papa's Letters to Shaurya. #FourthLetter



 जन्माष्टमी पर तुम्हें कृष्ण बनाते हुए मैं सोच रहा हूँ कि अगर ईश्वर से मैं तुम्हारे लिए और तुम्हारे जैसे नन्हे-मुन्ने कृष्ण-राधाओं के लिए प्रार्थना करूँगा तो क्या करूँगा? पेशे से शिक्षक लेखिका बाबुषा ने अपने छात्रों के लिए एक प्रार्थना की है-

"ऐसी शिक्षा-प्रणाली का अंत हो, जहाँ आंतरिक जीवन-मूल्यों के ऊपर महत्वाकांक्षी परियोजनाओं और गलाकाट प्रतिस्पर्धा पर केंद्रित पाठ्यक्रम हो। 

तरह तरह के रंग बिरंगे उन ईश्वरों की विदाई हो, जिनका अस्तित्व जब-तब संकटग्रस्त होता है। 

मनुष्यों के सर पर पांव रख पताका फहराने वाली श्रेष्ट-बोध से ग्रसित प्राचीन संस्कृतियां विलीन हों। 

आत्म-विकास की प्रक्रिया में अन्य को हेय मानने वाले साधक-योगी सेवानिवृत्त हो। 

व्यव्हार में छद्म का नाश हो। 

शक्ति की लोलुपता का लोप हो। 

विचारों का पाखंड खंड-खंड हो। 

पृथ्वी एक बड़े घास मैदान में बदल जाए। 

बच्चों का राज हो। खेल हों, धुन हो, झगडे हों, कट्टिसे हों, 

सीखें हों, झप्पी हो।  नदियां हों, पहाड़ हों, परिंदे हों। 


महज नर-मादा न हों। 

प्रेम में मुक्त स्त्री हो।  प्रेम में युक्त पुरुष हो। 


विकास की सभ्यता नहीं, सभ्यता का विकास हो। 

पुलिस फौज की आवश्यकता न हो, सरहद न हो। 

प्रकृति की सत्ता हो।  

जीवन खोज हो। "


कितनी सुन्दर प्रार्थना है। तुम्हारे लिए भी शायद यही प्रार्थना करता या शायद इससे आगे उन मानवमूल्यों की भी प्रार्थना करता जो स्वतंत्रता आंदोलन की आत्मा थे। वे मूल्य जो नेहरू जी ने संविधान बनाने से पूर्व उद्देशिका में पेश किये थे जो बाद में संविधान की प्रस्तावना में सम्मिलित हुए और संविधान की आधारशिला बने। 

"सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय का उद्बोधन, 

विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म व उपासना की स्वतंत्रता का उद्बोधन,

प्रतिष्ठा और अवसर की समता का मूल्य, बंधुत्व का उद्बोधन,

और उससे ऊपर पंथनिरपेक्षता और लोकतंत्र का उद्बोधन। "

यही तो वे मूल्य हैं जो मनुष्य को मनुष्यतर बनाते हैं।  मानव को मानव मात्र से प्रेम करना सिखाते हैं। जाति-धर्म से परे, अमीरी-गरीबी से परे, किसी भी विषमता से परे, हमें मात्र मानव बने रहना सिखाते हैं। मानव मात्र के लिए समस्त न्यायों की बात करते हैं। बाबुषा की प्रार्थना और प्रस्तावना के उद्बोधन कितने मिलते जुलते हैं न! 

अगर इन्हीं मानवमूल्यों के आधार पर किसी राज्य का विकास हो पाय तो क्या वो आदर्श राज्य न होगा? होगा, आदर्श नागरिकों का आदर्श राज्य! 

मुझे नहीं पता कि आदर्श राज्य का स्वप्न पूर्ण होगा या नहीं किन्तु मैं कोशिश करूँगा की तुम्हें एक बेहतर नागरिक जरूर बना पाऊं और चाहूंगा की समस्त नन्हें मुन्ने राधा-कृष्ण भी बेहतर मनुष्य बनें और मिलकर एक बेहतर भविष्य गढ़ पाएं।  

Days of Innocence #p4


भाईसाहब को मम्मा स्टोरी सुना रही है "एक बार भालू की कुल्हाड़ी टूट गई, वो रो रहा था। बंदर आया, बोला कि कभी भी रोते नहीं हैं सॉल्यूशन ढूंढते हैं। और उसने मदद कर के कुल्हाड़ी ठीक कर दी। भालू खुश हो गया।"
भाईसाहब पापा के पास आते हैं। उंगली दिखा दिखाकर समझाते हुए कहते हैं "पापा तभी भी लोना नहीं। लोना नहीं है। छोलूशन ढूंढते है छोलूशन।"