Thursday, December 26, 2013

धम्मा...

1.


लोगों ने महावीर, बुद्ध के कहे को
सत्य माना,
उन्हें इंसान नहीं भगवान कहा.
उनके पत्थर के प्रतिमान बनाये,
फिर उनका कहा, उन्हीं पत्थरों में तज दिया.

मूर्तियां भगवान् बन गई,
...और महावीर, बुद्ध का कहा कहीं खो गया.

हम सिर्फ मूर्तिपूजक थे, मूर्तिपूजक ही रहे.



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2.


धर्म बदले, भगवान बदले,
मूर्तियां बदलीं, पूजा के तरीके बदले,
बस हम नहीं बदले.

न महावीर का कहा माना,
न बुद्ध का कहा माना.
हमने बस धर्म बदले, हम नहीं बदले.

हम सिर्फ मूर्तिपूजक थे, मूर्तिपूजक ही रहे. 



Wednesday, December 25, 2013

क्यूंकि मरे हुए लोग फिर से नहीं मर सकते.




मैं चाहता हूँ
दफ़न कर दी जाएँ
चाँद की कसम ले के
कही गयीं तमाम बातें,
बेदखल कर दिए जाएँ
ईमानदारी से रिश्ते निभाते लोग.

हर रात कर  दी जाये अमावस और बुझा दिए जाएँ सारे तारे.
किसी करवट पे पड़े ख्वाब तोड़ दिए जाएँ,
निर्वासित कर दी जाएँ वो ऑंखें
जिन्हें देख,
ख़ुदा यहीं-कहीं नज़र आता था.

कठघरे में खड़ा कर देता हूँ,
कभी खुद को, कभी तुमको.
हर दफे तुम्हें देता हूँ सज़ा-ए-मौत.
फिर ज़िंदा ही दफ़न करता हूँ खुद को,
क्यूंकि मरे हुए लोग फिर से नहीं मर सकते.

Sunday, December 15, 2013

एक गांव, एक शहर

तुम्हारे शहर के किसी कोने में पड़ा है
मेरा गांव,
तुम्हारा शहर बढ़ता जा रहा है,
मेरा गांव खाता जा रहा है.

यकीनन जब गांव शहर बनते हैं,
अच्छा लगता है.
लेकिन गांव-सा अपनापन मरता है,
अंदर से आदमी कुछ-कुछ मर जाता है.

तुम्हारे इस शहर के कोने में,
मेरा गांव हुआ करता था कभी.
अब इसे भी
शहर कहते हैं....तुम्हारा शहर.

एक मरे गांव कि अस्थियां भी
विसर्जित करने नहीं मिली!
गांव मर गया....
शहर दो फलांग और बढ़ गया.

Monday, December 9, 2013

हम लड़ेंगे साथी / पाश




हम लड़ेंगे साथी,उदास मौसम के लिए
हम लड़ेंगे साथी,गुलाम इच्छाओं के लिए
हम चुनेंगे साथी,जिन्दगी के टुकड़े

हथौड़ा अब भी चलता है,उदास निहाई पर
हल अब भी बहते हैं चीखती धरती पर
यह काम हमारा नहीं बनता,प्रश्न नाचता है
प्रश्न के कन्धों पर चढ़कर
हम लड़ेंगे साथी

कत्ल हुए जज्बों की कसम खाकर
बुझी हुई नजरों की कसम खाकर
हम लड़ेगे साथी
हम लड़ेंगे तब तक
जब तक वीरू बकरिहा
बकरियों का मूत पीता है
खिले हुए सरसों के फूल को
जब तक बोने वाले खुद नहीं सूँघते
कि सूजी आँखो वाली
गाँव की अध्यापिका का पति जब तक
युद्ध से लौट नहीं आता
जब तक पुलिस के सिपाही
अपने ही भाइयों का गला घोंटने को मजबूर हैं
कि दफ्तर के बाबू
जब तक लिखते हैं लहू से अक्षर....
हम लड़ेंगे जब तक
दुनिया में लड़ने की जरूरत बाकी है....
जब बन्दुक न हुई,तब तलवार होगी
जब तलवार न हुई,लड़ने की लगन होगी
कहने का ढंग न हुआ,लड़ने की जरूरत होगी
और हम लड़ेंगे साथी....

हम लड़ेंगे
कि लड़े बगैर कुछ नहीं मिलता
हम लड़ेंगे
कि अब तक लड़े क्यों नहीं
हम लड़ेंगे
अपनी सजा कबूलने के लिए
लड़ते हुए जो मर गए
उनकी याद जिन्दा रखने के लिए
हम लड़ेंगे साथी.....

- पाश (
Avtar Singh Sandhu)

Wednesday, December 4, 2013

स्ट्रोंग कॉफी



तुम्हें भुलाने हर दिन
बस एक 'स्ट्रोंग कॉफी' काफी होगी...

ऐसा सोचता था मैं.

तुम गये,
कॉफ़ी हर शाम पीता हूँ
...और पीते-पीते तुम्हें याद करता हूँ.


तुम ठोकर हो, पर शबनमी हो.
दिल को लगती हो, दिल गीला करती हो.
हर दिन... हर दिन.
हर शाम... हर कॉफ़ी पे.