Tuesday, April 23, 2013

भाई





मैं कहता हूँ
बूढ़े बरगद पे साया है कोई.
लेकिन जुदा हैं उसके ख्याल.
हमारे ख्याल,
जैसे एक ग़ज़ल के दो मिसरे
जुड़े हों ग़ज़ल से
पर कहते हों अलग-अलग सी बात.

अहसास होता है
वो भी बालिग हुआ है,
समझने लगा है कि साये नहीं होते.

बड़े भाई होने की धौंस अब नहीं चलेगी. :-)