Wednesday, December 8, 2021

India as I Know: Solanki, IFFDC and 19331 Unsung Environmental Heroes

 


 

वन विकास और विस्तार (Forest Development and expansion) के लिए काम करने वालों में सबसे पहले हमारे दिमाग में ये नाम आते हैं- शायद फारेस्ट मैन ऑफ इंडिया जादव पेयेंग का या स्वयं 122 हेक्टेयर बैरन लैंड (अनुर्वर भूमि) खरीद कर जंगल खड़ा करने वाले दंपत्ति पामेला और अनिल मल्होत्रा. (अगर इनके नाम आपने नहीं सुने हैं तो कमेंट में लिखिए, मैं अगली पोस्ट में इनके बारे में लिखूंगा.)  लेकिन मैं इनके अलावा एक नई कहानी कहने जा रहा हूं.


मैं जहां पोस्टेड हूं पहले दिन ही एक व्यक्ति मिलने आते हैं मिलनसार, हंसमुख, स्पष्टवादी. उनकी समस्या सुनता हूं और स्टाफ से उनके बारे में पूछता हूं.


'सर ये दीनानाथ सिंह सोलंकी जी हैं. एक समिति के अध्यक्ष हैं. समिति ने 265 हेक्टेयर  का जंगल खड़ा कर दिया है. तमाम उदहारण मेरे पास में इस क्षेत्र में जंगल उजाड़ने वालों के हैं, लकड़ी चोरों के हैं. इसलिए में क्यूरियस हो जाता हूँ. मैं सोलंकीजी  के बारे में पता करता हूं, उनसे मुलाकात करता हूं तो एक नई दुनिया ही सामने आती है.


 बात 1998 की है. सागर के देवरी-गौरझामर क्षेत्र में वेस्टलैंड मैनेजमेंट (बंजर/ऊसर भूमि प्रबंधन) के लिए कुछ ज़मीनों को आईएफएफडीसी की पहल पर समितियों को आवंटित किया गया. उद्देश्य था- वन विकास और विस्तार. इस प्रोजेक्ट को फाइनेंस भी आईएफएफडीसी के माध्यम से ही किया गया.


 जैतपुर कछिया उन्हीं में से एक समिति थी जिसके अध्यक्ष है दीनानाथ सोलंकी जी. इस समिति ने 23 साल के प्रयास से 265 हेक्टेयर का एक बड़ा जंगल खड़ा कर दिया है जिसमें न सिर्फ विभिन्न प्रकार के पेड़ बल्कि नीलगाय, चिंकारा जैसे विभिन्न  जंगली जानवर और ढेर सारे पक्षियों के आसियाने भी हैं. मतलब एक भरा पूरा जंगल.


हर समिति/ संस्था के सफल नहीं हो सकती जबतक एक कुशल नेतृत्व, अच्छा निर्देशन और समूह के ईमानदारी से किये गए अथक प्रयास न हों. 

मैं उनसे समिति की सफलता के राज पूछता हूँ.


वह और समिति के सचिव अनिल मिश्रा जी बताते हैं- 

1. साफ नियत. 

2. सबके साथ लेकर के किया गया प्रयास. 

3. समिति सदस्य एवं गांव के हर व्यक्ति की सहभागिता. 

4. 95% सामूहिक सहभागिता से लिए गए  निर्णय और

5. अध्यक्ष का मैनेजमेंट उनकी सफलता का सहभागी है 

साथ में हमारा रोपण बहुत अच्छा रहा, स्पेशलिस्ट ने जो भी हमें जानकारी दी उसका हमने सदुपयोग किया. कौन सी जमीन में कौन सा पौधा रोपण करना है स्पेशलिस्ट के बताने के अलावा हमें अनुभव के साथ आया. साथ में हमारे गांव के लोगों में समर्पण की भावना भी है.


मैं उनसे फिर पूछता हूं कि देवरी तहसील (जिला सागर म.प्र.) में ही सरखेड़ा समिति है या जिला टीकमगढ़ (म.प्र.) की मोहनगढ़ समिति है वे इतनी सफल नहीं हैं. उसके पीछे का कारण क्या है?


वह बोलते हैं कि इसमें मुख्य बात यह है कि-

1. इन समितियों में 3 से  5 गांव के लोग सदस्य तो गांव के हिसाब से लोगों कि सोच बाँट जाती है, उद्देश्य बाँट जाते हैं. अब सोच के बंटवारा होता है तो असफल होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं. समिति में एक ही सोच के व्यक्ति हों तो सफलता की संभावनाएं ज्यादा होती हैं.

2. कुछ जगह पर गलत एवं लालची लोगों को जुड़ाव भी समिति में हुआ है.

3. कुछ जगह पर ऐसा हुआ है कि शुरुआत में पौधों की देख रेख अच्छे से नहीं पाई. पौधों का विकास अच्छा नहीं हुआ तो लोगों का लगाव कम हो गया.

4. कुछ जगह पर मैनेजमेंट बहुत अच्छा नहीं रहा और

5. कहीं खाते के आय-व्यय में पारदर्शिता नहीं रही.


इसी बीच में सोलंकी जी से हंसते-हंसते पूछ लेता हूं कि 'कहां तक पढ़े हैं?' सोलंकीजी पहले थोड़ा सा असहज होते हैं फिर मुस्कुरा कर कहते हैं 'सर, पांचवी पास हूँ.'  भले ही वे पांचवी तक पढ़े हैं लेकिन उनके द्वारा किया गया काम, उनके द्वारा लिए गए निर्णय, उनकी लीडरशिप क्वालिटी किसी बड़े मैनेजमेंट इंस्टिट्यूट से पढ़े हुए व्यक्ति से भी बेहतर है. इसलिए वह राष्ट् स्तर पर आईएफएफडीसी के निर्देशक मंडल के ग्यारह सदस्यों में से एक हैं.


मैं सोलंकी जी से नंबर लेकर हरीश गेना जी, चीफ प्रोजेक्ट मैनेजर से बात करता हूं और वही प्रश्न दोहराता हूं. वो बोलते हैं हमने 1993 के बाद समितियों को जब चुनाव किया  तो कम्युनिटी मैनेजमेंट, अध्यक्ष की रूचि और सेल्फलेसनेस को ध्यान में रखा.


फिर मैं उन पर नया सवाल दाग देता हूं कि "आपने जो जमीन और सोसाइटी के लिए लोगों को चयन किया, क्षेत्र का चयन किया तो क्या-क्या मापदंड रखे थे?"


वह कहते हैं "हमारा पहला उद्देश्य था कि जिस हम जमीन का सिलेक्शन करें वह जमीन डेढ़ सौ हेक्टेयर के करीब वेस्टलैंड (अनुपयोगी या बंजर ज़मीन) होना चाहिए .साथ में जो लोग जुड़े हैं उनकी प्रोफाइल लो (आर्थिक रूप से पिछड़ा तबका)  होना चाहिए. अधिकतर लोग मार्जिनल सेक्शन से, खेतिहर मजदूर या भूमिहीन किसान होने चाहिए. हमने ग्राम पंचायत से मीटिंग की पीआरए (Participatory rural appraisal)* एक्सरसाइज की और फिर कम्युनिटी के साथ मिलकर के सब कुछ प्लान किया. हमने वीमेन पार्टिसिपेशन (महिलाओं की सहभागिता) का विशेष ध्यान रखा. इसीलिए जब फारेस्ट प्रोटेक्शन ग्रुप (वन संरक्षण समूह) बनाये तो उसमें से 50-60% तक महिलाएं थीं.  


मैं डिप्टी प्रोजेक्ट मैनेजर आरके द्विवेदीजी से भी बात करता हूं. उनसे मेरा सबसे पहला प्रश्न यह होता है कि 'यह पहले से ही दिमाग में था कि हमें ग्रासरूट लेवल पर लीडरशिप डेवलपमेंट करनी है और सोलंकीजी जैसे ग्रासरूट लेवल से उठकर आये लीडर्स को नेशनल लेवल पर लाकर के डायरेक्टर बनाना है?'


 वह कहते हैं 'हां, हमारा शुरुआत से ही उद्देश्य था. लोगों में सेंस ऑफ ओनरशिप (स्वामित्व की भावना) विकसित करना, माइक्रोमैनेजमेंट, माइक्रोफाइनेंस गांव-गांव में सिखाना और वीमेन पार्टीशन बढ़ाना और जो लीडरशिप डेवलप हो उसको एक बड़ा प्लेटफार्म देना.'


 पंचायत अधिनियम के उद्देश्य मेरे सामने घूमने लगते हैं. उनके भी कुछ कुछ ऐसे उद्देश्य थे. वे कितने सफल हुए हैं?


आईएफएफडीसी शब्द हम बार बार प्रयोग कर रहे हैं तो अब हम इसे भी जान लेते हैं. इफको (IFFCO: Indian Farmers Fertiliser Cooperative ) ने 1993 में 'इंडियन फार्म फॉरेस्ट्री डेवलपमेंट कोऑपरेटिव लिमिटेड' (आईएफएफडीसी) नामक एक अलग बहु-राज्य सहकारी समिति को बढ़ावा दिया, जिसका उद्देश्य ग्रामीण गरीबों, आदिवासी समुदाय की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को बढ़ाने के लिए स्थायी प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन के माध्यम से पर्यावरण के संरक्षण और जलवायु परिवर्तन को कम करना था और विशेष रूप से महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करना था.


 उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तराखंड में अब तक 29,421 हेक्टेयर बंजर भूमि को बहुउद्देशीय जैव विविधता वन के रूप में विकसित किया गया है. ये वन समुदाय की जरूरतों को पूरा कर रहे हैं और सालाना लगभग 1.41 लाख टन वायुमंडलीय कार्बन का संग्रह कर रहे हैं, जिससे जलवायु परिवर्तन को कम करने में मदद मिल रही है.  इन वनों का प्रबंधन 152 ग्राम स्तरीय प्राथमिक कृषि वानिकी सहकारी समितियों (पीएफएफसीएस) द्वारा किया जाता है, जिसमें 19,331 सदस्य हैं, जिनमें से लगभग 38 प्रतिशत भूमिहीन हैं, 51 प्रतिशत छोटे/सीमांत किसान हैं. महिलाओं की कुल सदस्यता का 32 प्रतिशत हिस्सा है.

 वर्तमान में, आईएफएफडीसी कृषि वानिकी, एकीकृत वाटरशेड विकास, जलवायु प्रूफिंग, ग्रामीण आजीविका विकास, महिला सशक्तिकरण, सीएसआर (Corporate Social Responsibility) आदि पर 22 परियोजनाओं को लागू कर रहा है. इससे 8 राज्यों के लगभग 9,554 गांवों में किसानों और ग्रामीण गरीबों की आय बढ़ाने में मदद मिली है. नाबार्ड और राज्य सरकारों की साझेदारी में विभिन्न राज्यों में वाटरशेड के तहत 17,330 हेक्टेयर विकसित करके लगभग 15,171 हेक्टेयर अतिरिक्त क्षेत्र को सिंचाई के तहत लाया गया.  महिला सशक्तिकरण के लिए, IFFDC कौशल और सूक्ष्म उद्यम विकास आदि के माध्यम से 18,465 सदस्यों (95 प्रतिशत महिला सदस्यों) वाले 1,825 स्वयं सहायता समूहों (SHG) का पोषण कर रहा है.


 इफको ने बीज उत्पादन कार्यक्रम (एसपीपी) आईएफएफडीसी को सौंपा है.  तदनुसार, आईएफएफडीसी ने हरियाणा, उत्तर प्रदेश, पंजाब और राजस्थान राज्यों में स्थित अपनी 5 अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी बीज प्रसंस्करण इकाइयों (एसपीयू) के साथ किसानों के खेतों पर विभिन्न फसलों की उच्च उपज और आशाजनक किस्मों का एसपीपी शुरू किया है. वर्ष 2019-20 के दौरान कुल 3.73 लाख क्विंटल प्रमाणित धान, हाइब्रिड धान, मूंग, सोयाबीन, उड़द, तिल, हाइब्रिड बाजरा, हाइब्रिड मक्का, सूडान ज्वार घास खरीफ और गेहूं, जौ, चना, सरसों, जीरा, बरसीम के दौरान प्रमाणित  इफको किसान सेवा केंद्र (एफएससी), इफको-ई बाजार, आईएफएफडीसी किसान सेवा केंद्र (केएसके), आईएफएफडीसी कृषि वानिकी सेवा केंद्र (एएफएससी) और प्राथमिक कृषि वानिकी सहकारी समितियों (पीएफएफसीएस) के माध्यम से किसानों को उपलब्ध कराई गई.


आईएफएफडीसी राष्ट्रीय तिलहन और पाम आयल मिशन (एनएमओओपी) और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (एनएफएसएम), भारत सरकार की मिनीकिट योजना के तहत कृषि विभाग को बीज की आपूर्ति करता है.  वर्ष 2019-20 के दौरान 16 विभिन्न फसलों के कुल 385 किलोग्राम सब्जी बीज भी किसानों को उपलब्ध कराए गए हैं.


साथ ही अभी यह संस्था ToF (Trees Outside Forest ) प्रोजेक्ट्स पर काम कर रही है. एग्रोफोरेस्ट्री विकास में जोर शोर से काम कर रही है.


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नवंबर की सर्द रात है. रात (या सुबह) के 3 बजने को हैं. मैं रात्रि गश्ती पर हूँ. एक टीम दूसरी तरफ गश्तिरत है. मेरा फ़ोन बजता है. 'सर, एक अपराधी पकड़ा है. पेड़ काट रहा था.' 


'कहाँ पर?' मैं पूछता हूँ. 

'सर, कछया के पास से.'

'उफ्फ्फ्फ़....'


यह देश की एक दूसरी तस्वीर है. जहँ पर आईएफएफडीसी और सोलंकीजी जैसे लोग जंगल ऊगा रहे हैं वहीँ कुछ असामाजिक तत्व जंगल को काटने पर तुले हुए हैं. 


वन विकास और वन सुरक्षा हम सबकी जिम्मेदारी है. जैव विविधता बनाये रखने, जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने में आईएफएफडीसी की समितियों के मात्र 19331 सदस्य नहीं बल्कि हम सबके सामूहिक सहयोग की आवश्यकता होगी.


[ *Participatory rural appraisal (PRA) is an approach used by non-governmental organizations (NGOs) and other agencies involved in international development. The approach aims to incorporate the knowledge and opinions of rural people in the planning and management of development projects and programmes.


आईएफएफडीसी के बारे में जानकारी साभार इफको कि वेबसाइट से.]