Sunday, June 27, 2021

मेघनाथ (मेघनाद) यथार्थ




रामायण में मेघनाथ का किरदार विजय अरोरा जी ने निभाया है. जो अपने समय में एक प्रसिद्द फिल्म अभिनेता रहे हैं. यादों की बारात और इंसाफ जैसी प्रसिद्द फिल्म्स उनके खाते में हैं. अपने समय में वो अपनी प्रियतम मुस्कान के लिए जाने जाते थे. कहते हैं, उन्होंने राम के किरदार के लिए भी ऑडिशन दिया था. ये पोस्ट लेकिन विजय अरोरा नहीं मेघनाथ के बारे में है.


मेघनाथ का किरदार रामायण का बड़ा अद्भुत किरदार है. मेघनाथ-लक्ष्मण युद्ध जितना प्रसिद्द है उतनी ही रौचक मेघनाथ के जन्म की कहानी भी है.


रावण बड़ा प्रतापी था किन्तु बाली और सहस्त्रबाहु अर्जुन से युद्ध में हारा भी था. इसलिए उसे पुत्र के रूप में अपने से भी ज्यादा बड़े योद्धा की कामना थी. ज्योतिष के महाज्ञानी रावण ने इसके लिए एक उपाय किया. उसने सारे ग्रहों को मेघनाथ के जन्म के समय  ज्योतिष के ग्यारहवें घर में (11th house of horoscope ) जाने का आदेश दिया. कहते हैं अगर सारे ग्रह ग्यारहवें घर में हो तो इस वक्त में उत्पन्न व्यक्ति पत्थर को भी छूने से सोना कर सकता है. बहुत ही वैभवशाली-कीर्तिवान व्यक्ति उत्पन्न होता है.


 रावण के डर से सारे ग्रह देवों ने उसकी बात मानी, सिर्फ शनिदेव को छोड़कर. वे उस वक्त बारहवें घर में बैठ गए और बाद में यही मेघनाथ की मृत्यु का कारण भी बना. रावण शनिदेव की इस हरकत से इतना क्रोधित हुआ कि उसने उन्हें बंदी बनाकर कारागृह में डाल दिया. मेघनाथ का जन्म हुआ तो 8  ग्रह ज्योतिष के ग्यारहवें घर (11th House of Horoscope) में थे. इसलिए वह बड़ा प्रतापी था. उसने पैदा होते ही मेघ सी गर्जना में प्रथम क्रंदन किया. इसलिए उसका नाम मेघनाथ रखा गया.


पुराणों अनुसार योद्धाओं की महामहरथी, अतिमहारथी, महारथी, अतिरथी और रथी नाम से पांच श्रेणियां हैं. महामहारथी में ब्रह्मा, विह्णु, महेश, गणेश, शक्ति और कार्तिकेय बस आते हैं. अतिमहारथियों में ब्रह्मा, विष्णु. महेश के अवतारों (राम, कृष्णा, परसुराम, हनुमान, वीरभद्र इत्यादि) के अलावा बस मेघनाथ और अर्जुन ही आते हैं. रावण और लक्ष्मण महारथी माने जाते हैं.


मतलब मेघनाथ लक्ष्मण और रावण से भी बड़ा योद्धा था!


 एक बार रावण को देवताओं से युद्ध हुआ और युद्ध में रावण को इंद्र ने बंदी बना लिया. जब मेघनाथ को पता चला तो उसने अकेले ही देवलोक पर चढ़ाई कर दी और इंद्र को बंदी बनाकर लंका ले आया. वह इंद्र का वध करने ही वाला था कि ब्रह्मा जी प्रकट हुए उन्होंने उसे इंद्र को छोड़ने को कहा. बदले में मेघनाथ ने ब्रह्मा से ब्रह्मास्त्र के अलावा अमरता का भी वर मांगा. ब्रह्मा ने अमरता का वर देने से मना कर दिया किंतु उसे वरदान दिया कि अगर वह अपनी कुलदेवी प्रत्यंगिरा माता के लिए निकुम्भिला यज्ञ करेगा तो उससे उसे एक रथ प्राप्त होगा. जिसपे बैठ वह सारे युद्ध जीत सकता है. अगर वह उस रथ पे बैठा है तो कोई भी योद्धा उसे मारने में सक्षम नहीं होगा. किन्तु यज्ञ भांग करने वाला ही उसे मारने में सक्षम भी होगा! कहते हैं ब्रह्मा ने ही मेघनाथ को इंद्रजीत नाम भी दिया था. 


वैसे मेघनाथ संसार का एकमात्र योद्धा था जिसके पास ब्रह्मास्त्र, पाशुपतास्त्र और नारायणास्त्र थे. द्वापर युग में अर्जुन के पास पशुपतास्त्र और ब्रह्मास्त्र  तो थे किन्तु नारायणास्त्र नहीं था. हालाँकि स्वयं नारायण श्रीकृष्ण रूप में उनके साथ थे.


राम-रावण युद्ध में मेघनाथ ने तीन दिन युद्ध किया. पहले ही दिन उसने ब्रह्मास्त्र से 67 करोड़ वानरों का वध कर सुग्रीव की लगभग आधी सेना ख़त्म कर दी. साथ राम लक्ष्मण को भी मूर्छित कर दिया था.


युद्ध के दूसरे दिन अपनी मायावी शक्तियों से उसने बड़ा तीव्र युद्ध किया और एक अदृश्य तीर से 'वासवी शक्ति' का लक्ष्मण पर प्रयोग किया, जिससे वो मूर्छित हो गए. वासवी शक्ति क्षण भर में व्यक्ति को परलोक पहुँचाने में सक्षम थी किन्तु लक्ष्मण बलशाली वीर थे इसलिए वो सिर्फ मूर्छित हुए. सूर्योदय के पहले अगर उपचार न किया जाता तो कालकवलित हो सकते थे. इसलिए ही हनुमान संजीवनी बूटी लेने गए और पूरा का पूरा द्रोणगिरि पर्वत उठा लाये.


जब मेघनाथ को पता चला की लक्ष्मण बच गए हैं तो वह अपनी कुलदेवी प्रत्यंगिरा माता के लिए निकुम्भिला यज्ञ करने लगा.  लेकिन विभीषण ने लक्ष्मण को ब्रह्मा जी के वरदान से अवगत कराया और लक्ष्मण रात्रि में ही यज्ञ विध्वंश करने के लिए निकल पड़े.


कथाओं अनुसार यज्ञ भंग होने के बाद मेघनाथ ने यज्ञ में प्रयुक्त बर्तनों से ही युद्ध करना शुरू कर दिया. बाद में जब वो अस्त्र के ले वापस आया तो ब्रह्मास्त्र का प्रयोग भी लक्ष्मण पर किया किन्तु ब्रह्मास्त्र लक्ष्मण की परिक्रमा कर के वापस मेघनाथ के पास आ गया.


मेघनाथ समझ गया कि लक्ष्मणजी वो वीर हैं जिनसे वह मृत्यु को प्राप्त होगा इसलिए वह कुछ देर के लिए युद्धक्षेत्र छोड़ रावण को समझाने के लिए भी गया. किन्तु दम्भ में चूर रावण ने उसकी एक न सुनी. साथ ही पितृाज्ञा न मानने के कारण मेघनाथ का अपमान भी किया.


मेघनाथ ने रावण से आज्ञापालन न करने के कारण क्षमा मांगी और पुनः रणभूमि में आ युद्ध करना प्रारम्भ किया. लक्ष्मण ने अंजलीकास्त्र से मेघनाथ का सर धड़ से अलग कर दिया. (इसी अस्त्र से द्वापर युग में अर्जुन ने कर्ण का वध किया था.) इस तरह मेघनाथ मृत्यु को प्राप्त हुआ.


कथाओं अनुसार ब्रह्मा से मेघनाथ को एक और वर प्राप्त था कि वह उसी योद्धा से मृत्यु को प्राप्त होगा जो 12 वर्षो तक सोया न हो. लक्ष्मण राम-सीता की सेवा करते-करते वन में बारह वर्षों से सोये नहीं थे. इसलिए भी मेघनाथ को मारने में सफल रहे.


एक कथा अनुसार मेघनाथ ने शेषनाग कि पुत्री सुलोचना से बिना अनुमति के विवाह किया था. इसलिए शेषनाग ने दंड देने के लिए लक्ष्मण के रूप में मेघनाथ का वध किया था.


हालाँकि मेघनाथ कि पत्नी सुलोचना पति वियोग सह नहीं पाई और समाचार सुनने के पश्चात् ही मृत्यु को प्राप्त हुई!


हिंदी में एक कहावत है कि जैसी संगत वैसी रंगत. मतलब आप बुराई के साथ हैं तो आप भी बुरे होंगे. भले ही आप कितने भी बलशाली रहे हों. मेघनाथ भी उसका एक उदहारण है. किन्तु साथ ही पितृआज्ञा का अक्षरश: पालन करने वाले पुत्र के रूप में भी उसे याद किया जाता रहेगा. 


- Vivek Vk Jain


(Photo: Internet) #Meghnath #Ramayana

Thursday, June 10, 2021

जंगल की कहानियां : भारत में सागौन प्लांटेशन के जनक मनीराम गोंड

 #Jungle

भारत में सागौन प्लांटेशन के जनक : मनीराम गोंड (1891)
लगभग 132 साल पहले छत्तीसगढ़ के रायपुर वनमंडल अंतर्गत एक अंग्रेज वन अधिकारी की पोस्टिंग पिथौरा में हुई। उसने कुम्हारीमुड़ा के मनीराम गोंड को बीटगार्ड की नौकरी पर रख लिया। मनीराम खाना बनाने में कुशल थे सो इनके हाथों बने भोजन का स्वाद साहब की जुबान पर चढ़ गया। कुछ महीनों बाद अंग्रेज अधिकारी इंग्लैंड गया तो मनीराम को भी अपने साथ ले गया। वहां पर मनीराम ने साहब की नर्सरी में पौधों के बीज उगाने और पौधा बनाने की 'रुट शूट विधि' सीख ली। जब वे वापस भारत आये तो दो साल बाद उन अंग्रेज वन अधिकारी का ट्रांसफर हो गया।
1891 का साल था जब गिधपुरी जंगल जो देवपुर फारेस्ट रेंज में आता है और बार नवापारा वन्यजीव अभ्यारण्य से लगा हुआ है, वहां जंगल का बड़ा हिस्सा कटाई के कारण उजाड़ पड़ा था। मनीराम ने अपनी पत्नी के साथ वहां पौधे लगाने का निश्चय किया। बताया जाता है कि संजोगवश बर्मा से लौटे एक व्यापारी से उनकी मुलाकात हुई और उसने मनीराम को सागौन के पौधे रोपने का सुझाव दिया और इसके लिए सागौन के बीज उपलब्ध करवाए। यहां पर मनीराम ने इंग्लैंड में सीखा हुआ 'रुट शूट' पौधारोपण विधि का उपयोग किया और जंगल के 23 एकड़ क्षेत्र में सागौन के पौधे लगा डाले! इस समय जब पौधारोपण की कोई स्पष्ट नीति नहीं बनी थी, तब मनीराम ने इस उच्च तकनीक 'रुट शूट प्लांट पद्धति' से सागौन लगा दिए थे। कहा जाता है कि यह सागौन प्लांटेशन भारत ही नहीं बल्कि एशिया का पहला सागौन प्लांटेशन था।
पर इस वनपुत्र को इस अच्छाई का फल दुःख के रूप में मिलना था। बाद में आये अंग्रेज अफसर ने इस सागौन पौधारोपण को लेकर विभागीय अनुमति के दस्तावेज खोजे तो वह नहीं मिला जबकि मनीराम का पौधारोपण भावनावश था। विभाग ने इस काम को गैरकानूनी माना और मनीराम को बर्खास्त कर दिया! मनीराम इससे आहत होकर पागलों की तरह भटकने लगे और बाद में उनकी मौत हो गई! स्थानीय दैवीय विश्वासों के अनुसार मरने के बाद उनकी आत्मा जंगल और गांव में भटकती थी इसलिए बैगाओं ने उनकी आत्मा को मनीराम प्लांटेशन के एक पेड़ में पत्थर बनाकर स्थापित कर दिया और विभिन्न त्योहारों में उनकी पूजा की जाने लगी।
वक्त बीता और बाद में वन विभाग द्वारा इस प्लांटेशन का नामकरण मनीराम जी पर किया गया। आज 23 एकड़ क्षेत्र में सिर्फ एक एकड़ जगह पर ही मनीराम के लगाए सागौन बहुत कम संख्या में बचे हुए हैं। इन पेड़ों की मोटाई पौने तीन मीटर तक है और ये अपने वजन को और कितने दिन सम्भाल सकेंगे, यह कहा नहीं जा सकता। इस प्लांटेशन को लेकर लोगों को अधिक जानकारी नहीं है। बचे हुए पेड़ों को संरक्षित करने के उपायों के साथ इस प्लांटेशन स्थल को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करना अच्छा कदम होगा। 1997 में तत्कालीन मध्यप्रदेश सरकार ने मनीराम के पोते प्रेमसिंह को को 10 एकड़ जमीन और 50 हजार रुपये देने की घोषणा की थी। इसी तरह जून 2018 में छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा पौधरोपण के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करनेवाले को 'मनीराम गोंड स्मृति हरियर मितान' नाम से राज्यस्तरीय सम्मान देने की घोषणा की थी। मनीराम के वंशजों को अभी उस जमीन पर मालिकाना हक मिला है कि नहीं, यह पता नहीं है क्योंकि खबरों के अनुसार 2017 तक मनीराम के पोते प्रेमसिंग जिनकी भी मृत्यु हो चुकी है, उनकी पत्नी हीराबाई को नहीं मिला था।
आज मनीराम नहीं हैं पर पूरे देश में उनकी सागौन रोपणी पद्धति का ही अनुसरण किया जाता है। मनीराम जिनकी कद्र तत्कालीन वन विभाग न कर सका, उसे गांववालों ने वनदेवता बना दिया! यह घटना लोक में किंवदंतियों की स्थापना प्रक्रिया पर प्रकाश डालती है। इस मुद्दे पर और भी कोई जानकारी हो तो टिप्पणी में बता सकते हैं। 'वनदेवता' मनीराम जी को नमन।
- Piyush Kumar
No photo description available.

Wednesday, June 9, 2021

जंगल की कहानियां : जादव मोलई पेईंग

 #jungle #savebuxwahaforest #buxwahaforestmovement

माजुली द्वीप के नदी द्वीप है. देश का सबसे बड़ा. जो ब्रह्मपुत्र नदी के बीच में स्थित है. ब्रह्मपुत्र की बाढ़ हर साल इस पर कहर बरपाती है. 20वीं सदी की शुरुआत में यह 880 वर्ग किलोमीटर बड़ा हुआ करता था, 2014 में सिमट कर मात्र 352 वर्ग किलोमीटर का ही रहा गया है. बात 1979 की है, यहां के नदी के रेतीले किनारे (Sandbars) पर वृक्षारोपण का प्रोजेक्ट वन विभाग के द्वारा शुरू किया गया. कारण- बाढ़ के प्रभाव को कम करना. एक शख्स इस प्रोजेक्ट में मजदूर के रूप में काम कर रहा था. 1983 में, पांच साल बाद 200 हेक्टेयर वृक्षारोपण का काम पूरा हो गया. मजदूर वापिस जा चुके थे, रोपित पौधे भी काफी उम्र के थे, लिहाज वन विभाग ने भी बहुताधिक सुरक्षा की जरूरत नहीं समझी. परन्तु यह शख्स वहां रुक गया. उनने 1983 से 2013 तक लगातार 30 वर्ष काम कर 550 हेक्टेयर का एक विशाल जंगल खड़ा कर दिया. 550 हेक्टेयर अकेले ही!
इस शख्स ने सारी उम्र दे दी इतना बढ़िया, उच्च गुणवत्ता का जंगल खड़ा करने में. जिसमें बाघ, हाथी और गैंडे भी विचरण कर रहे हैं!
उस शख्स का नाम था जादव मोलई पेईंग (Jadav Molai Payeng). आप में से अधिकतर ने उनकी कहानी पढ़ी होगी या उनका नाम सुना होगा. फिर भी मैं फिर से बताना चाहता था. बताना चाहता था कि जंगल ऐसे ही निर्मित नहीं हो जाते, उच्च गुणवत्त्ता वन तो बिल्कुल भी नहीं. एक जुनून, सारी उम्र और निःस्वार्थ भाव लगता है.
जब भी बक्सवाहा या कहीं और के जंगल के उजड़ने की बात होती है मेरे आंखों के सामने जादव पेईंग का चेहरा घूम जाता है. लगता है जैसे जादव पेईंग की निःस्वार्थ सेवा, लगन, मेहनत, कोशिश और उम्र उजड़ने जा रही हो.
सबकुछ इतना आसान नहीं होता दोस्त. नए जंगल खड़े करना तो बिल्कुल भी नहीं.
[ तस्वीर: बक्सवाहा के जंगल की, जादव पेइंग 2015 में पद्मश्री पुरस्कार लेते हुए. ]



Saturday, June 5, 2021

जंगल की कहानियां : #buxwahaforestmovement

 #savebuxwahaforest #buxwahaforestmovement

1974 से हम विश्व पर्यावरण दिवस मना रहे हैं, to raise awareness on environmental issues such as marine pollution, human overpopulation, global warming, sustainable consumption and wildlife crime और बाकि हर दिन हम धरती का क्षरण करते हैं।
अगर एक व्यक्ति शतायु होता है और जिंदगी के पहले दिन से एक पौधा रोज लगाता है तो पूरे जीवन में वो 36525 (365x100 और लीप वर्ष मिला कर) पौधे ही लगा पाएगा।
मुझे पता है हम में से कोई भी ये नहीं कर पाएगा लेकिन वन संपदा जो आपको विरासत में मिली है उसे हम खत्म किए जा रहे हैं। लगभग 215000 (2.15 लाख) पेड़ बक्सवाहा में ही एक झटके में खत्म कर देंगे।
अगर कोई बोले कि मैं पर्यावरण हितैषी हूं, एक पौधा रोज लगाता हूं और आप #savebuxwahaforests या अन्य किसी जंगल/पर्यावरण क्षरण के खिलाफ़ आवाज में साथ नहीं देते हैं, उसे रोकने की कोशिश नहीं करते हैं तो ये आपकी हिपाक्रेसी (Hypocrisy) है!
आज 5 जून को हम पौधा लगाएंगे, सेल्फी लेंगे और सोशल मीडिया पर पोस्ट करेंगे। वन बचाएं, बन बनाएं का नारा लगाएंगे। लेकिन छत्तीसगढ़ की 850 हेक्टेयर की जनजातीय बसाहट की जंगल की जमीन कोयला खान के लिए आवंटित की जाएगी तो चुप रह जायेंगे। 364 हेक्टेयर का बक्सवाहा का जंगल जाएगा तो उसके लिए चुप रहेंगे, नियमगिरि (उड़ीसा) के पवित्र पहाड़ बरबाद होंगे, वहां की नदियां प्रदूषित होंगी तो कोई कुछ नहीं बोलेगा। हिपाक्रेसी की भी एक सीमा होती है!
हममें से हजारों हैं जिन्होंने Covid-19 से परिवार का कोई सदस्य या रिश्तेदार खोया है। हममें से कितने ही ऑक्सीजन सिलेंडर की लाइन में लगे हैं। कितने ही एक समय खुद की सांसे गिने हैं, कोविड पॉजिटिव हुए तो प्रार्थना किए हैं कि ईश्वर हमारी सांसे बचा ले! क्या सांसे ऐसे ही बचती हैं?
तुम्हारी सांसों के लिए ऑक्सीजन लगती है और ऑक्सीजन पैदा करने पेड़, और पेड़ कभी अकेला पेड़ नहीं होता है, जंगल के इकोसिस्टम का हमेशा एक हिस्सा होता है। पेड़ बचाने हैं तो पूरा जंगल, पूरा इकोसिस्टम बचाना होगा। Compensatory Afforestation सिर्फ पेड़ लगा सकता है, patches में लगे ये पेड़ सदियों से बना एक जंगल कभी नहीं बन सकते, ये याद रखना।
कई जगह बीच का रास्ता नहीं होता बाबू। जैसे तुम्हारी जिंदाही और मौत के बीच का कोई रास्ता नहीं है। है भी तो उसे कोमा कहते हैं उस हालत में तुम जाना नहीं चाहोगे। याद रखना जंगल बचाने और न बचाने के बीच का भी कोई रास्ता नहीं है। Compensatory Forestation look good on paper but not a substitute for a 1000 years old forest.
और हां, अंत में यदि आप किसी natural place पर, किसी जंगल, वन अभ्यारण में घूमने जाते हैं और प्लास्टिक, पॉलिथीन या रैपर या अन्य कोई कचरा छोड़ के आते हैं और सोशल मीडिया पर #SaveEnvironment या #SaveForest की बात करते हैं तो याद रखना ये आपकी हिपाक्रेसी हैं।
#WorldEnvironmentDay मनाइए #SaveForests #SaveBuxwahaForests कैंपेन का हिस्सा बनिए किंतु साथ ही खुद को भी बेहतर बनाइए।