रामायण में मेघनाथ का किरदार विजय अरोरा जी ने निभाया है. जो अपने समय में एक प्रसिद्द फिल्म अभिनेता रहे हैं. यादों की बारात और इंसाफ जैसी प्रसिद्द फिल्म्स उनके खाते में हैं. अपने समय में वो अपनी प्रियतम मुस्कान के लिए जाने जाते थे. कहते हैं, उन्होंने राम के किरदार के लिए भी ऑडिशन दिया था. ये पोस्ट लेकिन विजय अरोरा नहीं मेघनाथ के बारे में है.
मेघनाथ का किरदार रामायण का बड़ा अद्भुत किरदार है. मेघनाथ-लक्ष्मण युद्ध जितना प्रसिद्द है उतनी ही रौचक मेघनाथ के जन्म की कहानी भी है.
रावण बड़ा प्रतापी था किन्तु बाली और सहस्त्रबाहु अर्जुन से युद्ध में हारा भी था. इसलिए उसे पुत्र के रूप में अपने से भी ज्यादा बड़े योद्धा की कामना थी. ज्योतिष के महाज्ञानी रावण ने इसके लिए एक उपाय किया. उसने सारे ग्रहों को मेघनाथ के जन्म के समय ज्योतिष के ग्यारहवें घर में (11th house of horoscope ) जाने का आदेश दिया. कहते हैं अगर सारे ग्रह ग्यारहवें घर में हो तो इस वक्त में उत्पन्न व्यक्ति पत्थर को भी छूने से सोना कर सकता है. बहुत ही वैभवशाली-कीर्तिवान व्यक्ति उत्पन्न होता है.
रावण के डर से सारे ग्रह देवों ने उसकी बात मानी, सिर्फ शनिदेव को छोड़कर. वे उस वक्त बारहवें घर में बैठ गए और बाद में यही मेघनाथ की मृत्यु का कारण भी बना. रावण शनिदेव की इस हरकत से इतना क्रोधित हुआ कि उसने उन्हें बंदी बनाकर कारागृह में डाल दिया. मेघनाथ का जन्म हुआ तो 8 ग्रह ज्योतिष के ग्यारहवें घर (11th House of Horoscope) में थे. इसलिए वह बड़ा प्रतापी था. उसने पैदा होते ही मेघ सी गर्जना में प्रथम क्रंदन किया. इसलिए उसका नाम मेघनाथ रखा गया.
पुराणों अनुसार योद्धाओं की महामहरथी, अतिमहारथी, महारथी, अतिरथी और रथी नाम से पांच श्रेणियां हैं. महामहारथी में ब्रह्मा, विह्णु, महेश, गणेश, शक्ति और कार्तिकेय बस आते हैं. अतिमहारथियों में ब्रह्मा, विष्णु. महेश के अवतारों (राम, कृष्णा, परसुराम, हनुमान, वीरभद्र इत्यादि) के अलावा बस मेघनाथ और अर्जुन ही आते हैं. रावण और लक्ष्मण महारथी माने जाते हैं.
मतलब मेघनाथ लक्ष्मण और रावण से भी बड़ा योद्धा था!
एक बार रावण को देवताओं से युद्ध हुआ और युद्ध में रावण को इंद्र ने बंदी बना लिया. जब मेघनाथ को पता चला तो उसने अकेले ही देवलोक पर चढ़ाई कर दी और इंद्र को बंदी बनाकर लंका ले आया. वह इंद्र का वध करने ही वाला था कि ब्रह्मा जी प्रकट हुए उन्होंने उसे इंद्र को छोड़ने को कहा. बदले में मेघनाथ ने ब्रह्मा से ब्रह्मास्त्र के अलावा अमरता का भी वर मांगा. ब्रह्मा ने अमरता का वर देने से मना कर दिया किंतु उसे वरदान दिया कि अगर वह अपनी कुलदेवी प्रत्यंगिरा माता के लिए निकुम्भिला यज्ञ करेगा तो उससे उसे एक रथ प्राप्त होगा. जिसपे बैठ वह सारे युद्ध जीत सकता है. अगर वह उस रथ पे बैठा है तो कोई भी योद्धा उसे मारने में सक्षम नहीं होगा. किन्तु यज्ञ भांग करने वाला ही उसे मारने में सक्षम भी होगा! कहते हैं ब्रह्मा ने ही मेघनाथ को इंद्रजीत नाम भी दिया था.
वैसे मेघनाथ संसार का एकमात्र योद्धा था जिसके पास ब्रह्मास्त्र, पाशुपतास्त्र और नारायणास्त्र थे. द्वापर युग में अर्जुन के पास पशुपतास्त्र और ब्रह्मास्त्र तो थे किन्तु नारायणास्त्र नहीं था. हालाँकि स्वयं नारायण श्रीकृष्ण रूप में उनके साथ थे.
राम-रावण युद्ध में मेघनाथ ने तीन दिन युद्ध किया. पहले ही दिन उसने ब्रह्मास्त्र से 67 करोड़ वानरों का वध कर सुग्रीव की लगभग आधी सेना ख़त्म कर दी. साथ राम लक्ष्मण को भी मूर्छित कर दिया था.
युद्ध के दूसरे दिन अपनी मायावी शक्तियों से उसने बड़ा तीव्र युद्ध किया और एक अदृश्य तीर से 'वासवी शक्ति' का लक्ष्मण पर प्रयोग किया, जिससे वो मूर्छित हो गए. वासवी शक्ति क्षण भर में व्यक्ति को परलोक पहुँचाने में सक्षम थी किन्तु लक्ष्मण बलशाली वीर थे इसलिए वो सिर्फ मूर्छित हुए. सूर्योदय के पहले अगर उपचार न किया जाता तो कालकवलित हो सकते थे. इसलिए ही हनुमान संजीवनी बूटी लेने गए और पूरा का पूरा द्रोणगिरि पर्वत उठा लाये.
जब मेघनाथ को पता चला की लक्ष्मण बच गए हैं तो वह अपनी कुलदेवी प्रत्यंगिरा माता के लिए निकुम्भिला यज्ञ करने लगा. लेकिन विभीषण ने लक्ष्मण को ब्रह्मा जी के वरदान से अवगत कराया और लक्ष्मण रात्रि में ही यज्ञ विध्वंश करने के लिए निकल पड़े.
कथाओं अनुसार यज्ञ भंग होने के बाद मेघनाथ ने यज्ञ में प्रयुक्त बर्तनों से ही युद्ध करना शुरू कर दिया. बाद में जब वो अस्त्र के ले वापस आया तो ब्रह्मास्त्र का प्रयोग भी लक्ष्मण पर किया किन्तु ब्रह्मास्त्र लक्ष्मण की परिक्रमा कर के वापस मेघनाथ के पास आ गया.
मेघनाथ समझ गया कि लक्ष्मणजी वो वीर हैं जिनसे वह मृत्यु को प्राप्त होगा इसलिए वह कुछ देर के लिए युद्धक्षेत्र छोड़ रावण को समझाने के लिए भी गया. किन्तु दम्भ में चूर रावण ने उसकी एक न सुनी. साथ ही पितृाज्ञा न मानने के कारण मेघनाथ का अपमान भी किया.
मेघनाथ ने रावण से आज्ञापालन न करने के कारण क्षमा मांगी और पुनः रणभूमि में आ युद्ध करना प्रारम्भ किया. लक्ष्मण ने अंजलीकास्त्र से मेघनाथ का सर धड़ से अलग कर दिया. (इसी अस्त्र से द्वापर युग में अर्जुन ने कर्ण का वध किया था.) इस तरह मेघनाथ मृत्यु को प्राप्त हुआ.
कथाओं अनुसार ब्रह्मा से मेघनाथ को एक और वर प्राप्त था कि वह उसी योद्धा से मृत्यु को प्राप्त होगा जो 12 वर्षो तक सोया न हो. लक्ष्मण राम-सीता की सेवा करते-करते वन में बारह वर्षों से सोये नहीं थे. इसलिए भी मेघनाथ को मारने में सफल रहे.
एक कथा अनुसार मेघनाथ ने शेषनाग कि पुत्री सुलोचना से बिना अनुमति के विवाह किया था. इसलिए शेषनाग ने दंड देने के लिए लक्ष्मण के रूप में मेघनाथ का वध किया था.
हालाँकि मेघनाथ कि पत्नी सुलोचना पति वियोग सह नहीं पाई और समाचार सुनने के पश्चात् ही मृत्यु को प्राप्त हुई!
हिंदी में एक कहावत है कि जैसी संगत वैसी रंगत. मतलब आप बुराई के साथ हैं तो आप भी बुरे होंगे. भले ही आप कितने भी बलशाली रहे हों. मेघनाथ भी उसका एक उदहारण है. किन्तु साथ ही पितृआज्ञा का अक्षरश: पालन करने वाले पुत्र के रूप में भी उसे याद किया जाता रहेगा.
- Vivek Vk Jain
(Photo: Internet) #Meghnath #Ramayana