'जब रुलाई फूटे किसी पेड़ से लिपट जाना...'
मैं अक्सर लिपट जाना चाहता हूं किसी पेड़ से. पूछना चाहता हूं खैरियत. बाप, दादा ,चाचा किधर हैं? पुरखे किस बीज से पनपे थे? एल्गी (Algae) से अब तक ऐसे विकसित नहीं हुए कि काट पाओ किसी को? देखो आदमी तो 2 लाख साल में ही डेवलप कर गया है...इतना कि शुरू से भोजन दिया जिसने, सांसे दे रहा है जो, उसी को मशीनों से आधे घंटे में काट डालता है.
'विलुप्ति (Extinction) के कगार पर तो नहीं हो तुम?' ' बचे हैं तुम्हारे प्रजाति के कुछ लोग?' पूछते पूछते साथ में रो देना चाहता हूं...
कुछ अपना भी है जो कहना है. कुछ रिश्ते हैं जिन्हें निभा नहीं पाया. कुछ जिंदगियां जिनसे अंतिम समय मिल नहीं पाया. एक वह मंदिर है जहां पर बचपन खेलने में बीता, वहां बमुश्किल जा पाता हूं. कुछ एहसास हैं जो नौकरी के साथ खत्म हो गए, कुछ हैं जो बढ़ गए. उनके बारे में बताना चाहता हूं.
वक्त के साथ बेबी केयर, फ्यूचर प्लानिंग, फाइनेंशियल प्लानिंग, स्टेबिलिटी जैसे लफ्ज़ जुड़ गए हैं. उनको तुम्हें समझाना चाहता हूं. मैं अक्सर किसी पेड़ से लिपट जाना चाहता हूं...
कितने पक्षी बैठे? कितनो को दाना दिया? कितने बच्चे खेले हैं? कितने मुसाफिरों को छांव दी? किसी की आंखों में चोर तो नहीं दिखा? पूछना चाहता हूं.
अच्छा बताओ, यहीं खड़े रहकर पिछले कई दशकों में कितनी दुनिया बदलते देखी? कितने लोगों ने मेरे जैसे बात करने की कोशिश की? कितनों ने तुम्हें चुभन दी? कितनों ने सोचा होगा तुम्हें काटने का...? पूछना चाहता हूं. मैं अक्सर किसी पेड़ से निपट जाना चाहता हूं...
#wildstories #जंगल_की_कहानियां #ForestLife
Photo: Monitor Lizard by Sumit Shrivastava