Sunday, April 21, 2013

ईश्वर, तुम्हें अपने किये पर शर्म तो आती होगी.




               हर बार जब तुम्हें नहलाया जाता है, घुटन तो होती होगी तुम्हें...डालते हैं सर के ऊपर से लगातार पानी तो कभी दूध....सांस न लेते बनती होगी.कभी कभी तो ये खेल एक से ज्यादा बार दुहराया जाता है, कमाने पुण्य. कभी तो लगता होगा तुम्हें, कि बस बहुत हुआ अब....कभी तो मन करता होगा की निकल आओ मूर्ति से चल दो इन स्वार्थियों से कहीं दूर....ये लोग जो तुम्हारी पूजा करते हैं, मांगते रहते हैं पूजा के हर अंश में तुमसे कुछ न कुछ....जैसे उन्हें तुमने धरती पर भिखारी बना कर ही भेजा है.....कभी-कभी तो तुम्हें लगता होगा कि इन्हें नहीं भरोसा तुमपर, शायद इसीलिए पूजा कर-कर बार बार याद दिलाते हैं, की दे दो तुम सुख, शांति, मोक्ष!

            मोक्ष! मतलब उन्हें नहीं चाहिए जीवन-मृत्यु, क्यूंकि जीवन दुःख है उनके लिए.... इससे परे होना चाहते हैं लोग! हद हैं इनकी इच्छाएं....हद है इनकी सोच! जीवन से भय, मृत्यु से भय....और अब पुनर्जन्म से भय! ईश्वर तुमनें कितने भयभीत इंसान पैदा किये हैं! जिन्हें बिना भय के जीना नहीं आता. डर लगता है एसे डरपोक लोग कहीं गलत मार्ग पर न चले जाएँ! कुछ चले भी गये हैं, जिन्हें डर ने इतना डरा दिया की उनका डर 'आतंक' कर के दूर हुआ! 

          तुमने सिर्फ इन्सान को या तो असह्याय बनाया है....या अपना आसक्त.....और कहीं कहीं तो जेहादी भी! ईश्वर, तुम्हें अपने किये पर शर्म तो आती होगी.