Tuesday, October 31, 2023

जंगल की कहानियां : कोयंबटूर का वृक्ष पुरुष

 


पिछले कुछ वर्षों में जलवायु और जैव विविधता संकट के खतरनाक रूप से हमारे नियंत्रण से बाहर होने के स्पष्ट प्रमाण मिले हैं। संयुक्त राष्ट्र की विभिन्न रिपोर्टों के अनुसार, 1980 के दशक के बाद से, प्रत्येक दशक पिछले दशक की तुलना में अधिक गर्म रहा है, पिछला दशक, 2011-2020, रिकॉर्ड पर सबसे गर्म रहा है। हर साल, पर्यावरणीय कारक लगभग 13 मिलियन लोगों की जान ले लेते हैं, और अत्यधिक पानी की कमी वाले क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की संख्या में वृद्धि हुई है।

पर्यावरण एक अनिश्चित स्थिति में है और हमारी दुनिया को बचाने के लिए हम सभी को आगे आना होगा। कुछ हरित योद्धा स्थिति के बारे में जागरूकता बढ़ा रहे हैं और यह सुनिश्चित करने का प्रयास कर रहे हैं कि हम सभी कुछ न कुछ प्रकृति बचा लें। उन्हीं में से एक कोयम्बटूर तमिलनाडु के मरीमुथु योगनाथन (Marimuthu Yoganathan) भी हैं.

12 साल की उम्र में, मारीमुथु योगनाथन ने खुद को नीलगिरी में लकड़ी माफिया से लड़ते हुए पाया। कोयंबटूर में तमिलनाडु राज्य परिवहन निगम (टीएनएसटीसी) की एक बस के 55 वर्षीय बस कंडक्टर ने बताते हैं "मेरे माता-पिता नीलगिरी में एक चाय बागान में काम करते थे, जहां लकड़ी माफिया पेड़ों की अवैध कटाई जैसी गतिविधियों में शामिल थे। एक दिन, मैंने उनको रोकने के लिए उनके रस्ते में जमीन पर लेटकर विरोध करने का फैसला किया। लेकिन मुझे गुंडों ने पीटा . जागरूकता पैदा करने के लिए मैं कलेक्टर को पत्र लिखा और कोटागिरी में सार्वजनिक दीवारों पर हस्तलिखित पोस्टर चिपकाए। कुछ रातें मैं जंगल में सोया, पेड़ काटने वाले लोगों को पकड़ने की कोशिश की। लेकिन जब मैंने देखा कि माफिया के सामने मेरा कोई मुकाबला नहीं है, मैंने अधिक पेड़ लगाकर उनका मुकाबला करने का फैसला किया।" योगनाथन पिछले 40 सालों से अपने यात्रियों को मुफ्त में पौधे बांट रहे हैं। इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि उन्हें "कोयंबटूर का वृक्ष पुरुष" कहा जाता है।

1987 से, उन्होंने तमिलनाडु में चार लाख से अधिक पौधे लगाए हैं, वह जागरूकता पैदा करने के लिए अपना खाली समय स्कूलों और कॉलेजों में भी बिताते हैं। एक प्रोजेक्टर जो उन्होंने पीएफ ऋण पर खरीदा था वह उनका निरंतर साथी है। "आपको इसे छात्रों के ध्यान के लिए दिलचस्प बनाना होगा। प्रोजेक्टर मुझे दिलचस्प तथ्य साझा करने में मदद करता है कि हमें पानी कैसे मिलता है, डोडो पक्षी किस कारण से विलुप्त हो गया, और देश भर में दुर्लभ पेड़ हैं।" भारथिअर विश्वविद्यालय के परिसर में, जल्द ही एक कुयिल थोप्पू (तमिल में पक्षी अभयारण्य) होगा, योगनाथन के प्रयासों के लिए धन्यवाद, जो अभयारण्य के निर्माण में व्यस्त हैं, जिसमें कोयंबटूर में देशी, दुर्लभ और फल देने वाले पेड़ों के 2,000 पौधे होंगे। 

लेकिन उनका अंतिम सपना यह सुनिश्चित करना है कि भारत के प्रत्येक गांव में प्रत्येक घर में आम, चीकू, नारियल, अमरूद और कटहल के पांच पौधे लगाए जाएं। "अगर हर घर के पिछवाड़े में ये पांच पेड़ होते, तो वे एक सहकारी समिति और व्यवसाय बना सकते हैं। कोई भूख नहीं होगी, और हमने फलों का जंगल बनाया होगा।"

योगनाथन का सुझाव है कि "एक पौधा लगाना और उसकी देखभाल करना स्कूली पाठ्यक्रम का हिस्सा होना चाहिए। सरकार को वर्षा जल संचयन और पार्किंग स्थान आरक्षित करने की तरह, रियल एस्टेट डेवलपर्स के लिए निर्माण शुरू करने से पहले एक निश्चित संख्या में पौधे लगाना अनिवार्य बनाना चाहिए।"

जानकारी एवं फोटो: साभार इंटरनेट

#wildstories #जंगल_की_कहानियां #GreenWarriors

Sunday, October 29, 2023

एक बौद्ध भिक्षु की कथा



एक बौद्ध भिक्षु की कथा है कि वह एक ब्राह्मण के द्वार पर भिक्षा मांगने गया। ब्राह्मण का घर था, बुद्ध से ब्राह्मण नाराज था। 

उसने अपने घर के लोगों को कह रखा था कि और कुछ भी हो, बौद्ध भिक्षु भर को एक दाना भी मत देना कभी इस घर से। ब्राम्हण घर पर नहीं था, पत्नी घर पर थी; भिक्षु को देखकर उसका मन तो हुआ कि कुछ दे दे। इतना शान्त, चुपचाप, मौन भिक्षा-पात्र फैलाये खड़ा था, और ऐसा पवित्र, फूल-जैसा। लेकिन पति की याद आयी कि वह पति पण्डित है और पण्डित भयंकर होते हैं, वह लौटकर टूट पड़ेगा। सिद्धान्त का सवाल है उसके लिए। कौन निर्दोष है बच्चे की तरह, यह सवाल नहीं है, सिद्धान्त का सवाल है--भिक्षु को, बौद्ध भिक्षु को देना अपने धर्म पर कुल्हाड़ी मारना है। वहां शास्त्र मूल्यवान है, जीवित सत्यों का कोई मूल्य नहीं है। तो भी उसने सोचा कि इस भिक्षु को ऐसे ही चले जाने देना अच्छा नहीं होगा। वह बाहर आयी और उसने कहाः क्षमा करें, यहां भिक्षा न मिल सकेगी।

भिक्षु चला गया। पर बड़ी हैरानी हुई कि दूसरे दिन फिर भिक्षु द्वार पर खड़ा है। वह पत्नी भी थोड़ी चिन्तित हुई कि कल मना भी कर दिया। फिर उसने मना किया।

कहानी बड़ी अनूठी है; शायद न भी घटी हो, घटी हो। कहते हैं, ग्यारह साल तक वह भिक्षु उस द्वार पर भिक्षा मांगने आता ही रहा। और रोज जब पत्नी कह देती कि क्षमा करें, यहां भिक्षा न मिल सकेगी, वह चला जाता। ग्यारह साल में पण्डित भी परेशान हो गया। पत्नी भी बार-बार कहती कि क्या अदभुत आदमी है! दिखता है कि बिना भिक्षा लिये जायेगा ही नहीं। ग्यारह साल काफी लम्बा वक्त है। आखिर एक दिन पण्डित ने उसे रास्ते में पकड़ लिया और कहा कि सुनो, तुम किस आशा से आये चले जा रहे हो, जब तुम्हें कह दिया निरन्तर हजारों बार?

उस भिक्षु ने कहा, “अनुगृहीत हूं। क्योंकि इतने प्रेम से कोई कहता भी कहां है कि जाओ, भिक्षा न मिलेगी! इतना भी क्या कम है? भिखारी के लिए द्वार तक आना और कहना कि क्षमा करो, भिक्षा न मिलेगी, क्या कम है? मेरी पात्रता क्या है! अनुगृहीत हूं! और तुम्हारे द्वार पर मेरे लिए साधना का जो अवसर मिला है, वह किसी दूसरे द्वार पर नहीं मिला है। इसलिए नाराज मत होओ, मुझे आने दो। तुम भिक्षा दो या न दो, यह सवाल नहीं है।’

ओशो

महावीर वाणी, भाग-2, प्रवचन-49

#ओशो #Osho #दर्शन 

Saturday, October 28, 2023

शौर्य गाथा 84.


 

भाईसाहब क्लिप लेकर आए हैं "पापा मैं आपकी टी शर्ट सुखा दूं?" भाईसाहब ने पापा की टी शर्ट पर क्लिप लगा दी है। 

पापा लेटे हुए हैं। भाईसाहब अपनी तोतली आवाज में कुछ बोलते हैं, जिसका सार है "पापा मैं आपके ऊपर सो जाऊंगा" भाईसाहब ने पूरी मेहनत कर उल्टा लिटा दिया है। अब वो पीठ पर लेट गए हैं। फिर खिलखिलाना शुरू कर देते हैं " पापा मैं आपके जैसे लेट गया... मैं आपके जैसे लेट गया।"

फिर बैठकर पीठ बजाना शुरू कर दिया है। गा रहे हैं "व्हील्स ऑन द बस गो..."

पापा को हंसी आ रही है। पापा की पीठ पर जोर से धोल पड़ता है "पापा हंसते नहीं... नहीं हंसते।"

भाईसाहब फिर से एक और धोल जमाएं उसके पहले ही पापा पलटी लेकर भाईसाहब को बेड पर गिरा देते हैं। 🤣

#शौर्य_गाथा 85. #Shaurya_Gatha


Thursday, October 26, 2023

जंगल की कहानियां 4.


14 जनवरी... मकर संक्रांति... आप सभी फेस्टिवल एन्जॉय कर रहे होंगे... तिल के लड्डू खा रहे होंगे. मेरा स्टाफ मेरे साथ ऑफिस में बैठा है. मैं पिछले दो घंटे से मीटिंग ले रहा हूँ, हम विभिन्न मुद्दों पर बात कर रहे हैं. वैसे भी फील्ड स्टाफ की छुट्टी कहाँ होती है.

दोपहर के लगभग दो बज रहे हैं. फोन बज उठता है. किसी गांव के सरपंच का फोन है. वे थोड़ी घबराई सी आवाज़ में बात कर रहे हैं. "सर, यहाँ एक व्यक्ति के खेत में कुआं है, उसमें एक साथ आठ जंगली सुअर गिर गए हैं. उनमें कुछ सुअर के बच्चे भी हैं साब" आठ सूअर एक साथ! दोपहर है लेकिन ठण्ड बहुत है, पानी भी अभी ठंडा होगा.  मैं मीटिंग तुरंत ख़त्म करता हूँ, स्टाफ को आवश्यक रेस्क्यू सामन रखने को बोलता हूँ और अगले पांच मिनट में निकल जाता हूँ. 

पच्चीस किलोमीटर दूर पहुँचने में हमें गांव के घुमावदार पहुंचमार्ग से भी पहुँचने में मात्र बीस मिनट लगते हैं. पंद्रह बीस लोग कुएं पास जमा हैं. हमारी गाड़ी आती देख और भी लोग आना शुरू हो गए हैं. शुक्र है खेत की झाड़ियों से बागड़ (फेंसिंग) है और बस एक ही अंदर जाने का रास्ता है. मैं खेत की बागड़ के पास दो स्टाफ नियुक्त कर देता हूँ जिससे बाकि गांव वाले अंदर ना आ पाएं. खेत मालिक मुझे देखकर बताना शुरू करते हैं "साब, ये सूअर अपना कुनबा ले के जा रे था. साब, अपना खेत सड़क से लगा हुआ है. कुनबा सड़क पे पहुंचा कि एक बस हॉर्न देती आई. पूरा का पूरा सूअर उल्टा दौड़ गया और कुएं में आकर गिर गया." 

कुआं का मुआयना किया जाता है. कुआँ में करीब पंद्रह फ़ीट नीचे पानी है. कुएं में पांच सूअर के बच्चे और तीन एडल्ट हैं. शायद पूरा का पूरा परिवार है. हम अपना काम शुरू करते हैं. इतने में गाँव के सरपंच आ गए हैं. वो मुझे धन्यवाद प्रेषित करते हुए जाल की रस्सी का एक सिरा खुद थाम लेते हैं. कुएं के बीच वाले हिस्से (Diameter)  होकर रस्सी की मदद से जाल अंदर डाला जाता है, इतना कि तैर रहे सूअरों के पैरों के भी नीचे पहुँच जाए. फिर रस्सी के चारों सिरे चार लोग चारों कोनों की और जाते हैं. अब उनके नीचे जाल फ़ैल गया है. दो तीन स्टाफ बांस लिए है और सूअरों को कुएं के मध्य की और हरका रहा है. जिससे वे जाल के अंदर आ जाएँ.

पहली बार में हम जाल ऊपर की और खींचते हैं और तीन बच्चे जाल के ऊपर हैं. हम रस्सी के एक सिरे को दुसरे की और लेकर आते हैं. कुएं की एक दिशा रोड की और है और वहां लोग भी काफी जमा हो गए हैं. वहां हम सुअरों को छोड़ नहीं सकते. दूसरी और ऊंचाई है, शायद कुएं बनाने के बाद निकली मिटटी वहां जमा की है. इसलिए वहां भी नहीं छोड़ सकते, एक ओर कुएं की बंधान कुछ ज्यादा ऊपर इसलिए वहां भी नहीं. बची हुई एक ही दिशा है जिस ओर निकालने के बाद छोड़ा जा सकता है.  

उन्हें उपर्युक्त दिशा की ओर छोड़ देते हैं. वे छूटते ही दौड़ लगा गए हैं.

अगली बार फिर प्रयास किया जाता है और दो सूअर ऊपर आ गए हैं. एक बच्चा पानी और ठण्ड की वजह से दौड़ने की बजाये वहीँ बैठ गया है. मेरा एक स्टाफ उसे सहलाने जा रहा है. ये खतरनाक हो सकता है. कहते हैं जंगली सुअर जब दौड़ता है और आदमी सामने खड़ा हो तो उसकी जांघ फाड़ के निकल जाता है! मैं मना करता हूँ, तबतक उसने उसके पीठ पर हाथ फेर पुचकार ही दिया है. वो बच्चा भी भागने लगा है.

अगली बार में दो और निकाल लिए हैं और अंत में सबसे शक्तिशाली जंगली सूअर बचा हुआ है. बड़ी मेहनत से उसे आखिर में निकाला जाता है. वो उल्टा कुएं की ओर ही दौड़ लगाने लगा है. उपस्थित लोगों में भगदड़ सी होने लगी है कि मेरे स्टाफ ने डंडों से उसे हरका दिया है. वो भी तेजी से दौड़ता खेतों में गुम हो गया है. लोगों में ख़ुशी का माहौल है. उन्होंने चिलाना और ताली पीटना शुरू कर दिया है.

हमने पहुँचने के लगभग अगले पंद्रह मिट में ही ये सब कर लिया है. हमने राहत कि साँस ली है. ठण्ड और पानी से मरने से हमने उन्हें बचा लिया है... हमारे लिए यही त्यौहार है.

 फोटो/वीडियो: टीम.

#wildstories #जंगल_की_कहानियां #ForestLife #Rescue 4.

Tuesday, October 17, 2023

जंगल की कहानियां 3.


 मैंने यहाँ नया नया ज्वाइन किया है. कुल जमा एक हफ्ता ही हुआ है. बिलकुल नयी जगह पर फील्ड को समझना, स्टाफ को जानना इसी में ही कई दिन लग जाते हैं. इन्हीं सब के शुरूआती दौर में हूँ और आज शाम होते ही लगातार फ़ोन बजने लगा है. एक गांव में, एक खेत में मगर घुस आया है. कुछ दूर पर नदी है, धान का खेत है, जिसमे डेढ़ दो फुट पानी भरा हुआ है, शायद इसलिए ही नदी से होकर खेत तक पहुँच गया है. अगस्त का महीना है, अँधेरा लगभग हो गया है, गांव से खेत लगभग एक किलोमीटर है. शाम को कुछ भी कार्यवाही संभव नहीं है लेकिन सुबह से जल्दी कार्यवाही करनी होगी. मगर अगर गांव तक पहुँच गया तो मानव और मगर दोनों कि जान को खतरा है.

मैं स्टाफ से बात करता हूँ. दो स्टाफ कि ड्यूटी रातभर के लिए लगा देता हूँ. वे खेत में जाते हैं, हरकारे को समझाते हैं, लेकिन हरकारा वहां से जाने से मना कर देता है. वे अब रातभर वहीँ हरकारे के साथ बैठकर जागेंगे.

मैं वरिष्ठ को फ़ोन करता हूँ. मैंने अभी तक स्पॉटेड डियर, बार्किंग डियर के रेस्क्यू किये थे लेकिन मगर जैसे किसी हिंसक, फुर्तीले जानवर का रेस्क्यू पहली बार करना था. रेस्क्यू के लिए संसाधन आवश्यक थे, वे भी जुटाने थे. वरिष्ठ जवाब देते है "विवेक तुम कर लोगे, मुझे भरोषा है. बाकि जो भी आवश्यक है, मुझे फ़ोन करना." उनका मुझपर भरोषा देख मुझे तसल्ली मिलती है.

रात में मैं अगले दिन कि तैयारी करता हूँ. एक टीम बनाता हूँ. कुछ वरिष्ठों को फ़ोन कर 'रेस्क्यू कैसे कर सकते हैं' पूछता हूँ. विवेक शर्माजी, एक स्नेककैचर हैं, उनके बारे में पता चलता है. उन्हें फ़ोन करके पूछता हूँ "आप इसमें मदद करेंगे?" वे सहर्ष तैयार हैं. उन्होंने मगर का रेस्क्यू कभी नहीं किया है. उनके लिए भी ये अडवेंचरस होने वाला है. 

सुबह पांच बजे स्टाफ का फ़ोन आता है. "सर यहाँ भीड़ जमा होने लगी है. करीब दो सौ तीन सौ आदमी आ गए हैं." यहाँ के लोगों को वाइल्डलाइफ को लेकर अलग क्रेज है! मैं थाने में कॉल करता हूँ. पुलिस स्टाफ को घटना स्थल पर क्राउड मैनेजमेंट के लिए बुलाता हूँ. अपने बाकि स्टाफ को भी बुला लेता हूँ. सुबह पांच बजे इतने लोग तो एक दो घंटे बाद में कितने होंगे! सोशल मीडिया, व्हाट्सप्प के जमाने में खबर आग से भी तेजी से फ़ैल रही है.

अच्छा उजाला होते ही करीब सात बजे से हम 'मिशन मगर रेस्क्यू' चालू कर देते हैं. तब तक तरकरीबन डेढ़ दो हज़ार लोग, जिसमे महिला और बच्चे भी शामिल हैं, खेतों के आसपास आ गए हैं. अब मुझे मगर का भी रेस्क्यू करना है और इन लोगों को भी मगर से बचाना है. मैं माइक लेकर अपील करता हूँ, लेकिन लोग कहाँ मानने वाले हैं! स्टाफ और पुलिस स्टाफ डंडे हाथ में लिए है लेकिन इनपे असर नहीं है. खैर मगर की लोकेशन से डेढ़ सौ मीटर दूर लोगों को करने में सफल हैं. वहां लोग डर कर वैसे भी नहीं जा रहे हैं और मैंने बोल दिया है कि जो बॉडीबिल्डर मदद करने तैयार हैं आ जाएँ. हमें रस्सी खींचने में मदद चाहिए. बस, फिर क्या था कुल जमा चार पांच लोगों के अलावा सब तमाशबीन पीछे हट गए हैं.

नर मगर है. लम्बाई दस से बारह फुट. हमारे पास आवश्यक उपकरण हैं. हम कोशिश करते हैं, रस्सी के फंदे डालते हैं और मगर फंसते ही लोटने लगता है. अधिक रस्सियां लायी जाती हैं, एक समुचित दूरी बनाये रखने का ध्यान रखा गया है, एक तरफ से आवाज़ कि जा रही है कि वो उस ओर ना जा पाए. लम्बे बांस भी हैं कि एक ओर आये तो बांस कि मदद से उसे हरकाया जा सके. करीब दो घंटे लगातार मेहनत की गई है. हम सभी लोग और शर्माजी मुस्तैदी से डटे हुए हैं, बाकि स्टाफ क्राउड मैनेजमेंट का अपना अपना कार्य कर रहा है. करीब दो घंटे लगातार मेहनत कि गई है. मगर को रस्से से जकड लिया गया है. अब हम आश्वस्त हो गए हैं कि अब उससे खतरा नहीं तो कुछ लोग उसे डंडों कि मदद से टांगकर खेत के बाहर लेकर आ रहे हैं. खेत के बाद खेत हैं तारकरीबन तीन सौ मीटर तक. दुर्गम पगडंडी पर मगर को कंधे पर डाले लेकर आने में हालत खराब हो गई. लेकिन किया भी क्या जा सकता है, न कोई वाहन और पिंजरा वहां तक जा सकता है.  

शर्मा जी का इसमें सर्वाधिक योगदान रहा है. वे लगातार हमारे साथ सिपाही कि तरह डटे रहे हैं. हम आगे की कार्यवाही करते हैं. पास ही करीब तीस किलोमीटर दूर एक बड़े बांध का बैकवाटर क्षेत्र है जहाँ पर मगर प्राकृतिक रूप से रहते हैं, वहां उसे विधिवत कार्यवाही करने के बाद छोड़ा जाता है. 

हमने शर्मा जी का नाम पंद्रह अगस्त पर कलेक्टर महोदय द्वारा सम्मान के लियर प्रस्तावित किया है. अवार्ड लेने के बाद वे अभिवादन करने आते हैं. उनके चेहरे पर गर्वयुक्त ख़ुशी देखक्रर अच्छा लगता है.

Saturday, October 14, 2023

जंगल की कहानियां 2.


खबर मिलती है की किसी खेत में टाइगर बैठा है. गुलजार पढ़ रहा हूं और मुझे एहसास होता है जैसे कि 'ओस की रात में ओट में बैठा है चाँद!' राजा के अपने नखरे हैं. वो बैठा होता है अपनी मर्ज़ी से, आता है अपनी मर्ज़ी से, जाता है अपनी मर्ज़ी से! हम बस इंतज़ार कर सकते हैं उसके उठने का!

पहुंचकर खेत मालिक से पूछा जाता है 'खेत में पानी देना होगा शायद?'
'नहीं साब, कछु दिक्कत न है. ई तो बैठत रहे यहाँ पे.'

वाह! कितना आम है इन्हें. एक कहानी तो जंगल के किनारे रहने वालों पर भी कोई फिल्मा सकता है! उनका रहना, बसर करना, ज़िन्दगी में टाइगर का साथ होना! यहाँ के हर गांव में एक चबूतरा है बाहर और वहां पर ईश रूप में टाइगर की मूर्ति बैठी है! मुझे लगने लगा है इन्हीं लोगों ने बचाई है प्रकृति, इन्हीं लोगों ने बचाया, बनाया है जंगल! अब कुछ 'पढ़े लिखे' जरूर इन्हें बरगलाने लगे हैं. कुछ के लिए ये वोट हैं, कुछ के लिए इनकी ज़मीन पर खड़ा हो सकता है जंगल रिसोर्ट! लेकिन इनके अंदर जो बसा है वो है प्रेम... अथाह प्रेम! आप इनके घर चले जाइये कुछ सरकारी नोटिस लेकर! नोटिस तो बाद में लेंगे, पानी पहले पिलायेंगे, पहले ढंग से बिठाएंगे.

एक जगह जाता हूँ, कच्चे तीन किलोमीटर रस्ते के बाद गांव. उस रस्ते में हमें टाइगर के पगमार्क भी मिलते हैं! एक दादा अपनी समस्या सुना रहे हैं. ' बरसात में कट जाता है गांव मुख्य रोड से... गाभिन भी न जा पाती हैं अस्पताल... तनक रोड बनवा देऊ.' इनके घरों के सामने से टाइगर निकलता है रात में और ये चैन से सोते रहते हैं. कभी कभी मवेशी ले जाता है और ये गुस्सा नहीं करते.

' प्रकृति के आप कितना करीब हैं?' टीवी पर कोई सुंदर बाला एडवरटाइजमेंट में पूछती होगी और जवाब देती होगी कि 'ये फलां प्रोडक्ट उपयोग कीजिये, बहुत पास महसूस करेंगे, खुद से प्यार करने लगेंगे!'

भाईसाहब यहां आइये, इनसे मिलिए, इन्हें जानिए. इनका प्रेम देखिये. इनसे मोहब्बत सीखिए. ज़रा सी देर इनके साथ रहिये आप खुद के भी करीब होंगे और प्रकृति के भी. खुद से भी मोहब्बत करने लगेंगे, इनसे भी और प्रकृति से भी!

...तो राजा किसी ओस भरी गीली रात में ओट में छुपे चाँद से बैठे हुए हैं. हम इंतज़ार कर रहे हैं की वे उठें तो लोगों की दैनिक ज़िन्दगी चले!

थोड़ी सी धूप बड़ी है और राजा अपने राजसी ठाठ के साथ खड़े होकर पास लगे जंगल की ओर चल दिए हैं...

मुझे 'कुंवर नारायण' याद आ रहे हैं :

"मैं ज़रा देर से इस दुनिया में पहुंचा
तब तक दुनिया
सभ्य हो चुकी थी
जंगल काटे जा चुके थे
जानवर मारे जा चुके थे
वर्षा थम चुकी थी
और तप रही थी पृथ्वी
चारों तरफ कंक्रीट के
बड़े-बड़े घने जंगल उग आए थे
जिनमें दिखायी दे रहे थे
आदमी का ही शिकार करते कुछ आदमी."

Photo: for reference. Majestic Bengal Tiger tiger captured by my dear friend Sumit Shrivastava

Thursday, October 12, 2023

शौर्य गाथा 83


भाईसाहब ने टीवी में देख-देख करके बोलना शुरू कर दिया है कि "पापा मैं पुलिस अंकल हूं." पापा-मम्मा इसे अपॉर्चुनिटी की तरह लेते हैं. भाई साहब से कहते हैं "बेटा पुलिस अंकल सु-सु वॉशरूम में जाकर करते हैं आप भी जाया करना." "ओते पापा" भाईसाहब कहते हैं और अब से हुकेशा ट्राई करते हैं कि पुलिस ऑफिसर के जैसे वॉशरूम में ही सु-सु जाएं.

एक दिन भाईसाहब सामने वाले घर में हैं. उन्हें वहां पर टीवी देखने की छूट है इसलिए उन्हें वहां मजा आता है. भाईसाहब टीवी देखते देखते बोलते हैं "मासी मुझे सु-सु आई." मासी उन्हें वॉशरूम की ओर ले जा रही हैं लेकिन भाईसाहब उंगली से इशारा कर कहते हैं "मैं वहां अपने घल में जाऊंगा." भाईसाहब को अब उनके घर में दौड़ के लाया जा रहा है लेकिन पहुंचते-पहुंचते ही वॉशरूम के गेट पर ही...

पापा भाईसाहब को फ्रेश पैंट पहना रहे हैं. भाईसाहब कहते हैं "पापा अब मैं ऑफिसल नहीं लहा."

पापा उन्हें मुस्कुराते हुए गले लगा लेते हैं. "बेटा जो अच्छा करने का ट्राई करते हैं न, वे सब ऑफिसर होते हैं."

अब भाईसाहब हंसने लगते हैं. पापा मम्मा भी खुश हैं. "मम्मा-मम्मा मैं पुलिस ऑफिसल बन दया... मैंने ट्रालाई तिया ना." भाईसाहब चहकते हुए बोलते हैं. पापा-मम्मा उन्हें प्यार कर रहे हैं.

#शौर्य_गाथा #Shaurya_Gatha 83.

Tuesday, October 10, 2023

पापा के नोट्स 5


 तुमसे जब भी बात करता हूँ कुछ नया सीखता हूँ. जैसे मैं महज अबोध बालक हूँ और तुम ग्यानी. जैसे सारा का सारा ज्ञान उड़ेल ईश्वर ने बच्चौं को भेजा हो. 'पापा, नहीं उसे जेल में बंद नहीं कलेंगे. वो सो लहा है न.' 

'पापा चलो हम पुलिस अंकल बनेंगे...चोल पकलेंगे.' फिर झूठमूठ का पकड़ कर चहक जाना 'पकल लिया!' कितना कुछ है जो तुम सिखा जाते हो. खुद से खुश होना. 'खुद से चहक जाना. न फ़िक्र, न सोचना. बस हँसते जाना.' 


तुम्हारी बातें तुमसे दूर रह भी याद करता हूँ न तो खुश हो जाता हूँ. तुम जब सुबह 'पापा... पापा...' कह उठते हो और चिपक जाते हो, सबसे सुहानी सुबह होती है. इन सुबहों को ज़िन्दगी भर के लिए सम्हाल के रखना चाहता हूँ. निधि कहती है 'ढाई साल पहले हम जी कैसे रहे थे इसके बिना?' मुझे भी एहसास होता है. पहले नहीं पता था लेकिन अब महसूस होता है कि क्यों लोगों को संतान कि इतनी चाहता होती है. मैं बस इसे पहले सोशल प्रेशर मानता था, लेकिन तुमने मुझे वो सिखाया जो शायद कोई और नहीं सिखा सकता था. तुमने मुझे वो महसूस कराया जो कोई और नहीं करा सकता था. वो ख़ुशी, वो एहसास जो और कहीं नहीं मिल सकता.


तुम्हारी माँ से मोहब्बत और तुम! दोनों ही कायनात के दिए सबसे हसीं तोहफे हैं. तुम्हारी तरह अगर इसका शुक्रिया अदा करूँ तो चहककर कहूंगा 'पापा चलो हम थैंकू बोलते हैं.' और हाथ जोड़ के ही चहक जाऊंगा 'बोल दिया.' ईश्वर इससे सुन्दर कौन सी ही प्रार्थनाएं प्राप्त करता होगा! और इनके अलावा किनका ही जवाब देता होगा!


तुम्हारा होना बस कितना सुन्दर है!

#शौर्य_गाथा 82

Saturday, October 7, 2023

शौर्य गाथा 81

 भाईसाहब ने सारे कपडे बेड पर फैला दिए हैं. मम्मा परेशान हो गई है. वे लेकिन समझ नहीं रहे हैं. पापा के आते ही उनसे शिकायत करती हैं: 'ये आजकल कुछ भी ऊधम कर रहे हैं और मम्मा की बात भी नहीं सुन रहे हैं.'

पापा भाईसाहब को गोद में लेते हैं. सोफे पर बैठते हैं और उनको समझाना शुरू करते हैं. 'बेटा, अच्छे बच्चे मम्मा का काम नहीं बढ़ाते हैं, उनकी मदद करते हैं. कपडे फैलाना नहीं है, जमाना होता है...'

यकायक से अपनी गर्दन मटकाकर भाईसाहब बोलते हैं 'बिलटुल (बिल्कुल)... बिलटुल पापा.'

अब पापा समझाने के लिए आगे कुछ बोल रहे हैं और भाईसाहब सिर हाँ में मटकाते हुए, पापा का चेहरा हाथों में लेकर 'बिलटुल... पापा बिलटुल...' बोल रहे हैं.

'बेटा ऐसे बच्चे... बिलटुल पापा...बिलटुल... अच्छे बच्चे... बिलटुल पापा... नहीं होते... होते हैं पापा, बुलटुल...'

यह दृश्य देख मम्मा की हंसी छूट जाती है. पापा भी हंसने लगते है. 

उफ़! इस ढाई साल के बच्चे को कैसे समझाया जाए.


Friday, October 6, 2023

शौर्य गाथा 80

 भाईसाहब अपने ननिहाल गए हैं. उनकी यशी दीदी उन्हें बहुत प्यार करती है. वो अभी मात्र साढ़े चार साल की है लेकिन समझदारी और बातों में दादी हो चुकी है. दीदी और ढाई साल के भाईसाहब दोनों दिनभर खेलते रहते हैं.

भाईसाहब ने खेल खेल में दीदी को मार दिया है. वो रोने लगी है. भाईसाहब को मम्मा की डांट पड़ती है, लेकिन उनपर कोई असर नहीं है.

दीदी को रोता देख उसके दादू कहते हैं: 'यशी आप भी शौर्य को डांट दो.'

भोली सी दीदी जवाब देती है: 'दादू, बेचारा बच्चा है, अभी अक्ल नहीं है. रहने देते हैं. अकल आ जाएगी तो नहीं करेगा ऐसा.' साढ़े चार साल की यशी की बात सुनकर सबको हंसी आ जाती है. 

इतनी सी यशो और इतना बड़ा दिल! दादू अब उसे गोद में ले प्यार कर रहे हैं. भाईसाहब को देखकर शायद जलन हो रही है. वो भी दौड़ आकर पहुँच गए हैं. 'नानू..नानू ... मुझे भी.... दोदी (गोदी)... दोदी.'