Saturday, May 4, 2024

मुझसे प्यार करने के बाद


 मुझसे प्यार करने के बाद तुम्हारा पहले जैसे कुछ भी नहीं रह जाएगा

इतराने लगोगी हर कविता पर

हर लफ्ज़ में समाने लगोगी मुझे

तस्वीरों से समा जायेंगे

साथ बिताए पल

और शताब्दी के अंत तक याद रह जायेगी हर एक छुअन.


मुझसे प्यार करने के बाद तुम्हारा पहले जैसे कुछ भी नहीं रह जाएगा

टटोलोगी मुझे किताबों में

जिन्हें हमने साथ पढ़ा था

उन बातों में

जिन्हें हमने साथ कहीं थी

बुदबुदाओगी मुझे

और पास आने को ललचाओगी

जब भी मैं दूर होऊंगा.


दरवाजे की हर दस्तक में

मेरे आने का इंतजार होगा

नींद में चूम लेने की लालसा

जब नहीं होऊंगा पास

तुम्हारे होंठ सूख जाएंगे याद में

नींद हो जायेगी बेझिल

चांद खाओगी भूख में

दुहराओगी मेरा नाम.


मुझसे प्यार करने के बाद तुम्हारा पहले जैसे कुछ भी नहीं रह जाएगा

सच को सच कहना समझोगी 

सहन को साहस में बदल दोगी

तुम युद्धरत तो हमेशा से थीं हर कठनाई से

ज़रा और जोर से लड़ना सीख जाओगी 

दुनिया सिर्फ मर्द की नहीं है

बराबरी के हक का पता चलेगा तुम्हें

सीने से खुद को लगाना सीखोगी

और दुनिया को अनुभव से तौलोगी.


तुम्हारी पीठ पर जितनी कविताएं लिखूंगा

सब तुम्हारे सीने में जमा हो जाएंगी

तुम्हारे माथे को चूम

जितने भी सूरज उगाऊंगा

तुम्हें ताउम्र प्रज्ज्वल करेंगे

और जो नज़्में हम साथ लिखेंगे

उनका हर लफ्ज़ चूमोगी.


तुम तुम नहीं रह जाओगी

तुम्हारा होना और भी प्रदीप्त हो जायेगा

ज्यादा निष्पाप, शांत, सरल,

कांटों के बीच युद्धरत गुलाब

प्रेम यही सब बदलाव तो हमारे अंदर लाता है


 मुझसे प्यार करने के बाद तुम्हारा पहले जैसे कुछ भी नहीं रह जाएगा।


(बांग्लादेशी कवि हुमायूं आजाद की कविता से प्रेरित)

इक पत्र और प्रेम कविताएं



 मैंने कहा "तुम जहां हो

वहां तुम्हारा होना 

एक क्रांति है।"


"नहीं, मेरा होना ही 

एक क्रांति है।"

लड़की ने प्रत्युत्तर दिया।


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किताबों में उलझा

एक वीरानापन है।


कैसे तुम्हें समझाऊं

तुम्हारा दुनिया में होना ही अपनापन है।


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एक रात तुम लौट आना

शहर से लौटता है कोई गांव जैसे


वैसे शहर से कोई

फिर स्थाई तो नहीं लौटा है गांव

ह्वंगसांग से सारे

यात्री की तरह लौटते हैं गांव


पर एक रात तुम लौट आना

अपने होने की यात्रा पर।


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तुनहरे हाथों में गुदगुदी होती तो होगी

मेरी याद अभी भी वहां सोती तो होगी

दवा नीम सी बिखरी है चेहरे पे तुम्हारे

मेरी याद बुखार में राहत देती तो होगी।


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मैंने नहीं चाहा कि

कभी पीली साड़ी को उतारो तुम

पतझड़ में बसंत होती हो

मेरा मन-तरंग खिल जाता है


तुम्हारा मुस्कुराता चेहरा

पीला सूट

खुले बाल

तुम्हें भगवान ने पीली साड़ी में ही बनाया होगा।


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जो तुम्हें

पाठ्यक्रम में सिखाया जाएगा


वो तुम्हें कभी

वह नहीं बनाएगा

जो तुम बनना चाहते हो


या कि ईश्वर तुम्हें बनाना चाहता था.



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एक दिन जब ईश्वर

खुद धान रोपेगा


तो खुद न्यूनतम समर्थन मूल्य

बढ़ाने चला आयेगा.


धरती पे बैठे लोगों को तो

धान कैसे उगती है

कभी समझ नहीं आयेगा!


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तुम जीता जागता प्रेमपत्र हो.


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मृत्यु से भी ज्यादा

बदतर होना कुछ देखा है?


क्या ढोया है

वह बोझ


असफलता, 

निःसंतानता,

बेरोजगारी


इससे भी बड़ा बोझ है

अपनी संतान से आंखें न मिला पाना


और उस गलती के लिए

जो तुमने कभी की ही नहीं थी!


**



मुझे पूछना था तुमसे

कि किरदार जिनमें तुम 

रम जय करते थे


उन्हें 

जिस्म से बाहर कैसे निकाला करते थे?


मैं तो जिस किरदार में हूं

वर्षों से वही ढो रहा हूं।


(इरफ़ान के लिए)

निर्मला पुतुल की प्रसिद्ध कविता


बाबा! 


मुझे उतनी दूर मत ब्याहना 


जहाँ मुझसे मिलने जाने ख़ातिर 


घर की बकरियाँ बेचनी पड़े तुम्हें 


मत ब्याहना उस देश में 


जहाँ आदमी से ज़्यादा 


ईश्वर बसते हों 


जंगल नदी पहाड़ नहीं हों जहाँ 


वहाँ मत कर आना मेरा लगन 


वहाँ तो क़तई नहीं 


जहाँ की सड़कों पर 


मन से भी ज़्यादा तेज़ दौड़ती हों मोटरगाड़ियाँ 


ऊँचे-ऊँचे मकान और 


बड़ी-बड़ी दुकानें 


उस घर से मत जोड़ना मेरा रिश्ता 


जिस में बड़ा-सा खुला आँगन न हो 


मुर्ग़े की बाँग पर होती नहीं हो जहाँ सुबह 


और शाम पिछवाड़े से जहाँ 


पहाड़ी पर डूबता सूरज न दिखे 


मत चुनना ऐसा वर 


जो पोचई और हड़िया में डूबा रहता हो अक्सर 


काहिल-निकम्मा हो 


माहिर हो मेले से लड़कियाँ उड़ा ले जाने में 


ऐसा वर मत चुनना मेरी ख़ातिर 


कोई थारी-लोटा तो नहीं 


कि बाद में जब चाहूँगी बदल लूँगी 


अच्छा-ख़राब होने पर 


जो बात-बात में 


बात करे लाठी-डंडा की 


निकाले तीर-धनुष, कुल्हाड़ी 


जब चाहे चला जाए बंगाल, असम या कश्मीर 


ऐसा वर नहीं चाहिए हमें 


और उसके हाथ में मत देना मेरा हाथ 


जिसके हाथों ने कभी कोई पेड़ नहीं लगाए 


फ़सलें नहीं उगाईं जिन हाथों ने 


जिन हाथों ने दिया नहीं कभी किसी का साथ 


किसी का बोझ नहीं उठाया 


और तो और! 


जो हाथ लिखना नहीं जानता हो ‘ह’ से हाथ 


उसके हाथ मत देना कभी मेरा हाथ! 


ब्याहना हो तो वहाँ ब्याहना 


जहाँ सुबह जाकर 


शाम तक लौट सको पैदल 


मैं जो कभी दुख में रोऊँ इस घाट 


तो उस घाट नदी में स्नान करते तुम 


सुनकर आ सको मेरा करुण विलाप 


महुआ की लट और 


खजूर का गुड़ बनाकर भेज सकूँ संदेश तुम्हारी ख़ातिर 


उधर से आते-जाते किसी के हाथ 


भेज सकूँ कद्दू-कोहड़ा, खेखसा, बरबट्टी 


समय-समय पर गोगो के लिए भी 


मेला-हाट-बाज़ार आते-जाते 


मिल सके कोई अपना जो 


बता सके घर-गाँव का हाल-चाल 


चितकबरी गैया के बियाने की ख़बर 


दे सके जो कोई उधर से गुज़रते 


ऐसी जगह मुझे ब्याहना! 


उस देश में ब्याहना 


जहाँ ईश्वर कम आदमी ज़्यादा रहते हों 


बकरी और शेर 


एक घाट पानी पीते हों जहाँ 


वहीं ब्याहना मुझे! 


उसी के संग ब्याहना जो 


कबूतर के जोड़े और पंडुक पक्षी की तरह 


रहे हरदम हाथ 


घर-बाहर खेतों में काम करने से लेकर 


रात सुख-दुख बाँटने तक 


चुनना वर ऐसा 


जो बजाता हो बाँसुरी सुरीली 


और ढोल-माँदल बजाने में हो पारंगत 


वसंत के दिनों में ला सके जो रोज़ 


मेरे जूड़े के ख़ातिर पलाश के फूल 


जिससे खाया नहीं जाए 


मेरे भूखे रहने पर 


उसी से ब्याहना मुझे!