मैं वहां पैदा हुआ जहाँ 67% भारतीय रहते हैं... एक छोटे से गाँव में. ये एक गुदना (मिट्टी का) घर था. जिसमें मेरे मम्मी पापा survive कर रहे थे. गाँव में कुछ ही पक्के घर थे और उनमें से एक मेरे दादाजी का था जो थोड़ी ही दूर रह रहे थे. पापा और दादा में कुछ तो हुआ था जिसकी वजह से पापा यहाँ रह रहे थे. ये टिपिकल ग्रामीण टाइप की लड़ाई थी जिसमे भले दो अलग-अलग चूल्हे हो गए हों, दिल अब भी एक ही थे. दादा के दर्द पर पापा बराबर कराहते थे.... और भले पापा से सुबह बहस हो जाए दादा हमें अपनी पीठ पर लादकर घूमते थे. दादी हमें खाना खिलाने के बाद खाती थी. ये पहला एक्सपीरियंस (Experience) मेरा ‘इंडिया’ के साथ था जो मुझे याद रहा... क्यूंकि बाद में मैंने हॉलीवुड फ़िल्में देखी और वहां बेटा अपने बाप या सौतेले बाप का नाम लेता था, चाचा का नाम धड़ल्ले से लेता था और कभी कभी तो वह बाप या दादा को पहचानता भी नहीं था. मेरे बचपन और इन फिल्मों में ज़मीन आसमान का अंतर था.
मेरे गाँव में दसवीं तक स्कूल था और एक छोटे गाँव के हिसाब से यह काफी था. वहां बैंक था जो 20Km की रेडियस में एक मात्र बैंक था. आसपास के गाँव के हिसाब से मेरा गाँव काफी संपन्न या विकसित कहा जा सकता है क्यूंकि वहां दो-तीन ग्रेजुएट भी थे और एक तो पोस्ट ग्रेजुएट भी था.
मैं सरकारी स्कूल में पढता था जहां खुद ही झाड़ू लगा के, फट्टी बिछा कर के हम पढ़ते थे. मैं तीसरी में था जब मेरे अन्दर एक प्रश्न उठा. प्रश्न था की 7 में से 11 घटाने में क्या आएगा. प्राइमरी स्कूल के टीचर ने जवाब दिया की हम इस स्थिति में 7 के आगे 1 लिख उसे 17 बना देते हैं इसलिए उत्तर 6 होगा. मतलब 7 में से 11 घटाने पर उत्तर 6 आयेगा!!! यह 'दूसरा इंडिया' था. बाद में मैंने असर रिपोर्ट (ASER Report) पढ़ी, भारत में शिक्षा की स्थिति पर तमाम वैश्विक रिपोर्टों का डाटा देखा तब मुझे समझ आया यह ‘दूसरा इंडिया’ है. जहां बच्चे Curious हैं, समझ है उनमें और सोच भी, किन्तु सरकारी स्कूलों की हालत इतनी बदतर है की एक 6वीं का बच्चा दूसरी कक्षा के गणित के सवाल हल नही कर पाता है. एक 8वीं का बच्चा ढंग से किताब नहीं पढ़ पाता है... और अफ़सोस ये की सरकारें इन सब के बावजूद बड़े बड़े दावे करती है. अगर TSR सुब्रमण्यम रिपोर्ट और अन्य जगह से आंकड़े उठा कर देखें तो खाका और भी क्लियर हो जायेगा-
1. सरकारी स्कूल 10 लाख से अधिक रेगुलर शिक्षकों की कमी से जूझ रहे हैं.
2. 10 लाख से अधिक शिक्षकों को ‘एजुकेशन ट्रेनिंग’ की जरूरत है जो या तो नहीं हो रही है या उसके होने की उम्मीद ही नहीं है.
3. विद्यालयों में शौचालय नहीं हैं (मेरे में भी नहीं था) और पानी की कमी है.
4. आज भी ग्रामीण स्कूलों में Caste Discrimination (जातिगत भेदभाव) विद्यमान है. (पहले अत्यधिक था. इसे विस्तार से प्रसिद्ध लेखक ओमप्रकाश बाल्मीकि ने अपनी आत्मकथा ‘जूठन’ में लिखा है)
5. प्राइवेट विद्यालयों की हालत भी सरकारी स्कूलों से ज्यादा अच्छी नहीं है. और अब तो वे बढ़ते हुए अपराध से भी ग्रषित हैं.
ये जो दूसरा इंडिया है वो हमारा भविष्य बनाने वाला है. हमारे Demographic Divident (जनसांख्यकीय लाभांश) का फायदा पहुचाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वला है और आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार मानवपूँजी निर्माण बिना शिक्षा के संभव नहीं है. संयुक्त राष्ट्र (UN) की ‘ह्यूमन डेवलपमेंट रिपोर्ट’ तो बिना शिक्षा के सभ्यताओं का होना ही असंभव मानती है!
शिक्षा की ये स्थिति जो दूसरा इंडिया है इतनी भी बुरी इसलिए नहीं कही जा सकती क्यूंकि पांचवी के बाद मेरा चयन नवोदय स्कूल में हुआ और वहां मुझे शायद देश के सर्वश्रेष्ठ शिक्षक मिले. हिंदी पढ़ाने वाले शिक्षक शायद पढ़ाते कम थे हिंदी साहित्य में डूब कर हमें भी उसी रूचि के साथ डूबकर समझने के लिए मजबूर कर देते थे. इतिहास तो हमें खुद ऐतिहासिक किरदार बनाकर अपनी उपलब्धिया, कमियां खुद बखान करने को कह पढाया गया. ये बहुत अधिक डायनामिक तरीका था. शिक्षण के ऐसे तरीके सिर्फ हमारे स्कूल में ही हो सकते थे.
लेकिन ऐसे स्कूल जो राजीव गाँधी की परिकल्पना थे जिले के मात्र 80 प्रतिभावान बच्चों के लिए ही प्रतिवर्ष उपलब्ध थे, जिसके लिए एक टेस्ट लिया जाता था.
ये दूसरा इंडिया बदलने के लिए हें कड़ी मेहनत की आवश्यकता होगी और साथ में राजनीतिक इच्छाशक्ति की भी. जो कम ही हमें देखने को मिलती है.
मेरे राजनीति पर नकारात्मक कमेंट के कारण हैं. मेरे गाँव में जहाँ कुल 4000 लोग रहते थे, उनमें से कुछ घर मुसलमानों के भी थे. लेकिन जब 2002 के गुजरात दंगे हुए और वो दूरदर्शन पर समाचारों में आये तो मेरे पापा एक अंकल लल्लू मियां से बोले कि बेटा दंगे हो गये हैं आज बोले तो पीट देंगे तो उनका भी उसी हंसी के साथ जवाब था कि साब आप पीटने लगोगे तो भाभीजी बचा लेंगी.
ये सहिष्णुता लाजवाब है. ऐसा न तो पश्चिम में देखने को मिलता है न ही नव-स्वतंत्र अफ्रीकी देशों में.
लेकिन ये सहिष्णुता छिन्न-भिन्न हो गई जब 2015 में एक तथाकथित सांस्कृतिक ग्रुप की शाखा हमारे गाँव में खुली और गाँव के युवा उसके सदस्य हो गये. 2016 में हमारे गाँव में पहला सांप्रदायिक दंगा हुआ. ये ‘तीसरा इंडिया’ है जहाँ तबतक सामाजिक एकता कयम रहती है जब तक की उसका फायदा देश की राजनीति लेना नहीं चाहती!
कुल 5000 से कम जनसँख्या वाले गाँव में जहाँ हायर सेकेंडरी तक स्कूल 2012 में आया. जहाँ से निकटतम कॉलेज 50Km दूर है और अधिकतर युवा बेरोजगार, अर्ध-शिक्षित (10वीं पास) हैं. जहाँ गर्मियों में पानी की अत्यधिक किल्लत होती है वहां न तो विकास इतनी तीव्रता से पहुंचा न ही जल संसाधन किन्तु साम्प्रदायिकता अधिक तीव्रता से पहुँच गई!
ये तीसरा इंडिया जहां जब तक अर्ध-शिक्षित, बेरोजगार युवाओं को राजनीतिक दल नहीं बरगलाते हैं तब तक सामाजिक एकता के सूत्र में बंधा रहता है.
1947 में स्वतंत्रता के बाद मात्र 1984, 1992 और 2002 में बड़े सांप्रदायिक दंगे हुए हैं और यह भारत जैसे वैविध्यपूर्ण, युवा-लोकतंत्र की उपलब्धि कही जा सकती है. किन्तु इन दंगों के पीछे प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से राजीतिक दलों का हाथ रहा है.
चौथा इंडिया मैंने तब देखा जब मैंने अपने स्कूल के सामने स्थित सरकारी अस्पताल का भ्रमण पहली बार किया. यह सरकारी अस्पताल एक PHC (प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र) है. जिसमें तरकरीबन 20 सालों से कोई डॉक्टर नहीं है. और ये अस्पताल 20Km की रेडियस में एकमात्र अस्पताल है! एक नर्स के भरोसे चलती हमारी स्वास्थ्य व्यवस्था इतनी अपूर्ण है की मानव जीवन की कीमत अत्यधिक कम नज़र आने लगती है. शायद इसलिए भारत ऑर्गन-ट्रेड की कैपिटल के रूप में विकसित हो रहा है.
सरकारी बजट में स्वास्थ्य पर होने वाले आवंटन को देख ‘ऊँट के मुंह में जीरा’ कहावत चरित्तार्थ होती नज़र आती है. Demographic Divident का फायदा लेने के लिए प्राथमिक स्वास्थ्य पर खर्च बेहद जरूरी है और एक स्वस्थ माँ ही स्वस्थ बच्चे को जन्म दे सकती है जो भविष्य में मानवपूँजी बन सकता है. किन्तु भारत की करुण स्थिति देखें तो 66% बच्चे कम-वजन (wasted), कम-लम्बाई (stunted) से ग्रषित हैं और IMR (शिशु मृत्यु दर) भी हमारा बहुताधिक (34 per 1000 Live Births) है.
ये बुरी स्थिति चौथा भारत नहीं है. दरअसल इसका असर ‘चौथा भारत’ है. स्वास्थ्य पे कम खर्च अधिक बीमारियाँ लेकर आता है, बीमारी पर खर्च गरीब, गरीबी कुपोषण और भूख लेकर आती है. भूख अंग, शरीर और बच्चे तक बेंचने पे लोगों को मजबूर कर देती है. औरतें अपनी कोख तक गिरबी रखने को तैयार होती है. इस दुश्चक्र (Vicious Cycle) में फंसे होने के कारण ही भारत मलेरिया, सेरोगेसी, देह व्यापार, अंग व्यापार, मानव तस्करी का सिरमौर बना हुआ है!
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Reference:
ASER Report
HDI Report
RajyaSabha TV debates on 'Education In India'
RajyaSabha TV debates on 'Education In India'
Economic Survey 2015-16, 2016-17
The budget document of govt. of India
Rana Ayyub's articles
Wikipedia pages: 'Anti-Sikh Riots'; 'Bombay Riots' and '2002 Gujrat Riots'