Thursday, September 28, 2017

उम्र तेईस और भगत सिंह


कहानी के हर किरदार के पात्र होते हैं
तुम्हारा किरदार ही पूरी कहानी है.
मैं नहीं कहूंगा की तुम लेफ्ट थे या समाजवादी
या तुम्हे कौन हाईजैक कर रहा है
मुझे तुम्हारी आइडियोलॉजी (विचारधरा) से ज्यादा फर्क नहीं पड़ता
मुझे इस बात से फर्क पडता है
कि उम्र तेईस में तुममें राष्ट्र, आज़ादी और विचारधाराओं के प्रति
इतनी चेतना जागृत हो गई थी.

मैं तो स्व को ढूंढने में ही तेईस का हो गया था,
और अभी तक ढूंढ रहा हूँ.



शून्य



मैं न्याय के उन उसूलों की बात नहीं करूंगा
जो संविधान में लिखे हैं
या जिन्हें न्यायपालिका कहती है.
उन उसूलों की बात करूंगा
जिनसे झोपड़ियों पे ज़मींदारों के हक़ हो जाते हैं
कई लोग आज भी मैला ढोते हैं
और कई तो अब भी मंदिर के अंदर नहीं पहुँच पाते.

उन उसूलों की बात करूंगा
जिनके चलते तीन करोड़ केस आज भी 
न्यायलय के अंदर कहीं धूल खा रहे हैं.
जिनके चलते कई लोग आज भी
बिना ज़ुर्म की सजा पा रहे हैं.

उन उसूलों की बात करूंगा
जिनमे रिश्वत लेना तो पुण्य है,
न्याय मांगना पाप.

मैं उन उसूलों की बात करूंगा
जिनमे सरपंच तो औरत होती है
लेकिन सरपंची पुरुष करता है.
सरपंच तो दलित होता है
लेकिन सरपंची ठाकुर करता है.

उन उसूलों की बात करूंगा
जिनमे मंदिर में सिर्फ जाति का ब्राह्मण ही हो सकता है पुजारी
और दक्षिण में आज भी है देवदासी प्रथा जारी.

थक गया हूँ
लिखते-पढ़ते-सुनते बातें
संविधान प्रदत्त अधिकारों की,
समानता की,
बातें ईमान की खाई शपथों की.

मैं आज धरातल की बात करूंगा
जिसमें पिस रही है दो तिहाई जनता
कानून बना रहे हैं कुछ हज़ार 
और सिर्फ चंद लाख लोगों तक ही पहुचें हैं अधिकार.

महोदय, हम एक सौ तीस करोड़ से ज्यादा हैं
और सौ करोड़ में नौ शून्य होते हैं.

देश की अधिकतर आबादी 
वो शून्य है जिसके आगे कोई अन्य अंक नहीं है,
उनके होने न होने के माने नहीं हैं.

मैं इसी शून्य की बात करूंगा,
क्यूंकि मैं भी वही शून्य हूँ.

मातृभाषा | केदारनाथ सिंह

जैसे चींटियाँ लौटती हैं
बिलों में
कठफोड़वा लौटता है
काठ के पास
वायुयान लौटते हैं एक के बाद एक 
लाल आसमान में डैने पसारे हुए
हवाई-अड्डे की ओर

ओ मेरी भाषा
मैं लौटता हूँ तुम में
जब चुप रहते-रहते 
अकड़ जाती है मेरी जीभ
दुखने लगती है
मेरी आत्मा.

*अकाल में सारस कविता संग्रह से.