Thursday, November 23, 2023

शौर्य गाथा 90

 भाईसाहब समझदार हो रहे हैं और इनकी समझदारी धीमे धीमे बहुत प्यारी लगने लगी है। वे बैट बॉल से खेल रहे हैं और बॉल मम्मा को लग जाती है। वे तुरंत मम्मा के पास पहुंचते हैं "मम्मा आपको लगी तो नहीं? " और तुरंत Hug कर लेते हैं।

ऐसे ही भाईसाहब चाचू के साथ खेल रहे हैं। चाचू को बैट लग जाता है। भाईसाहब तुरंत जाते हैं, चाचू से कहते हैं "धुको... धुको (झुको)..." और झुकते ही गाल पर पुच्ची कर लेते हैं। फिर कहते हैं "चाचू मैं एंबुलेंस बुलाता हूं... आप चिंता नहीं करो."
फोटो: चाचू और शौर्य
May be an image of 2 people, child and people smiling

#SundayNotes



 मोहब्बत किसी एक किनारे पर रखकर आप जिंदगी नहीं चला सकते। जिंदगी चलाने इश्क, एतबार, उम्मीद, वादे और थोड़ा स्लो-मोशन में ठहरकर जिंदगी देखना लगता है।

पास्ट... पीछे मुड़-मुड़ देख आप कभी बाइक ढंग से चला पाए हैं? भाईसाहब एक्सीडेंट का खतरा हमेशा बना रहता है। जिंदगी भी पीछे मुड़-मुड़ देख नहीं चल सकती। आगे नई राह, नई जिंदगी और नया एडवेंचर आपका हमेशा इंतजार कर रहा होता है... हमेशा।
आपको बस मुस्कुरा कर आगे बढ़ने की जरूरत होती है बिना पीछे मुड़कर देखे।
तो आगे बढ़िये, पिछला पीछे छोड़कर के मुस्कुराइए... और नए सफर में, नई स्पीड के साथ जिंदगी की बाइक घुमा दीजिए। नई राह पर, नई उम्मीद में, नए विश्वास के साथ... किसी नए एडवेंचर की तरफ...

शौर्य गाथा 89.



 भाईसाहब बोलते हैं "पापा, आओ... इधर आओ..." पापा कहीं व्यस्त हैं। इग्नोर कर देते हैं।

भाईसाहब फिर चिल्लाते हैं "पापा, पापा विदेत... विदित पापा..." पापा फिर सुनते नहीं हैं।
अब भाईसाहब अपनी आवाज का माड्यूलेशन बदलते हैं, थोड़ा सा प्यार आवाज में डालते हैं और बोलना शुरू करते हैं "विवू ... विवु... विदेत... सुनो न... विवु विदेत..." पापा की ये सुनकर हंसी छूट जाती है। पापा उन्हें गोद में उठा लेते हैं। ये 'विवू' भाईसाहब ने कभी मम्मा को बोलते सुना है इसलिए जुबां पर आ गया है।
अभी दो-तीन महीने से ज्यादा समझने लगे हैं। बहुत सारा ऑब्जर्व करते हैं... बहुत सारा बोलने लगे हैं।
पापा अगर घर पर कुछ बोलें भाईसाहब वाइस मॉड्यूलेशन तक कॉपी कर रिपीट करते हैं। मसलन ऑफिस से आकर बोलें "निधि मैं थक गया..." तो भाईसाहब भी मम्मा की ओर पलटकर तुरंत पापा को रिपीट करके बोलेंगे "निधि, मैं थक गया हूं.. थक गया हूं..." हम सब उनकी ऐसी हरकतें देख हंस पड़ते हैं।
मुझे लगता है बच्चों की इस उम्र (ढाई से तीन वर्ष) में हमें बहुत कुछ सोच समझकर बोलने और कहने की जरूरत होती है। ये सब कुछ तुरंत सीख लेते हैं। मैं कोशिश कर रहा हूं की सोच समझकर इनके सामने बोलूं। अगर इसी उम्र में आपका बच्चा है तो आप भी कीजिए...
फोटो: भाईसाहब और चाचू

शौर्य गाथा 88.


दिन निकल गया है और सारे घर में भाईसाहब के खिलौने बिखरे पड़े हैं, कुछ बर्तन हैं यहां-वहां, भाईसाहब के बिखेरे... दस बार खाने को बनवाया है, दस बार जिद की तब तीन बार खाया है। दिन भर में मैं भी झल्लाकर गुस्सा हुआ हूं, एक दो बार थोड़ा सा डांटा भी। लेकिन भाईसाहब पास आएं और गाल पे प्यार कर लें, कोई गुस्सा रह सकता है भला!

भाईसाहब ने दिनभर टीवी देखी है। आप क्रिकेट नहीं देख सकते, उनकी टीवी बंद नहीं कर सकते। मम्मा माना करे तो रो दें। उपाय बस एक है- नेट बंद कर दो। लास्ट रिसॉर्ट में वही करना पड़ता है।
ढेर सारी बातें करने लगे हैं। पापा मेरे साथ कार चलाओ, और बस किसी खिलौने के रिंग को लेकर खुद स्टीयरिंग घुमाने की एक्टिंग करने लगते हैं और पापा को भी जबरन करवाते हैं, न करो तो आंसू तो हैं हीं! जू...जू.. ऊ.. ऊ.. करके पापा और बेटे की गाड़ी चल गई है। एक में भाईसाहब नाना को ले आए हैं, एक में पापा दादू को! 250Km पंद्रह मिनट में कार से!
"पापा नानू, दादू को खाना खिला दें?" मैं हां बोलता हूं। भाईसाहब का इमेजिनेशन है... झूठमूट का खाना झूठमुट सामने बैठे दादू, नानू को अपने हाथों से खिलाया जाता है।
"शौर्य आपके नानू का नाम क्या है?"
"सुलेश नानू" भाईसाहब बड़े क्यूटली बोलते हैं।
"दादू का?"
,"वि.. द.. ल... दादू"
सबके नाम धीमे धीमे पता हो गए हैं। सबकुछ समझने लगे हैं। लगने लगा है की बड़ी तेजी से बड़े हो रहे हैं ये...।
ग्रो स्लो माय चाइल्ड... ग्रो स्लो!

Papa's Notes. शौर्य गाथा 87.


भाईसाहब की नानी अनुसार भाईसाहब बाड़ में हैं। मतलब बढ़ने की उम्र है। मतलब लंबाई बढ़ेगी और दुबले होना शुरू होंगे। लेकिन पापा को भाईसाहब कुछ और ही बाड़ समझ में आ रही है। भाईसाहब अभी 2 साल 7 माह और 15 दिन के हुए हैं, किंतु पिछले 1 महीने से उनकी समझ यकायक से बढ़ गई है। साथ ही ढेर सारा बोलने लगे हैं। बहुत सारी बातें लगातार... थकते नहीं है। आप सुनते-सुनते थक जाएंगे। जितनी सारी बातें बढ़ गई हैं उतनी सारी समझदारी भी... बहुत तेजी से!
मसलन एक बार पापा के साथ कार में हैं।
पापा बोलते हैं "यार इसमें तो डीजल खत्म हो रहा है..."
भाईसाहब पट से जवाब देते हैं "पापा आप परेशान होना नहीं... मैं डलवा दूंगा दीदल."
इतनी प्यारी सी आवाज में इतनी समझदारी वाली बात!
भाई साहब ने एक दिन कुछ कर दिया है, शायद खिलौने बिखरा दिए हैं।
मम्मा: "आपने ऐसा क्यों किया?"
भाईसाहब: "मैंने इसलिए ऐसा तिया था त्यूंती थेलना था।"
ये 'इसलिए' बोलकर सही से जवाब देना पहली बार हुआ है।
ऐसे ही दो दिन पहले ही भाईसाहब क्रिकेट बैट लेकर आते हैं। "पापा थेलो-थेलो (खेलो) मैं तोहली हूं... मालूंगा।"
ये कोहली बैटिंग करता है, शॉट्स मारता है भाईसाहब ने अपने से ही पापा-मम्मा को बात करते हुए कैच किया है।
पापा-मम्मा अपनी कन्वर्सेशन में भी बहुत कॉन्शियस हो गए हैं। भाईसाहब की बाड़ में समझदारी की भी बाढ़ आ गई है!

फोटो: Papa's Little Monk(ey)