Thursday, January 16, 2014

पार्टीशन




मैं अक्सर पाकिस्तान के
उस टूटे घर के बारे में सोचता हूँ,
जो सलामत था जब मैं निकाला गया!
उस राख के बारे में भी
जो बिखरेगी यहाँ की सरजमीं पे.

मुंतज़िर हूँ  मैं
कि कभी ऐसा होगा.
मेरी बिखरी राख,
और वो टूटा घर
मिलेंगे,
बतियाएंगे,
मुझे याद करेंगे.
मेरा बचपन,
जवानी
और बुढ़ापा.

सुना है,
जर्मनी के दो धड़े
मिल एक हुए थे कभी.
मुझे यकीं है,
मिलेंगे कभी
मेरा टूटा घर और मेरी आँख.
और मैं न बचा तो,
मेरा टूटा घर और मेरी राख.

पार्टीशन कभी दिलों का नहीं हुआ.
ज़मीं का हुआ, जिसे खुदा  ने बख्शा,
सियासत का हुआ,
जिसे अकलमंदों ने चाहा.

मैंने और मेरे जैसों ने,
अपना मोहल्ला, अपना घर,
अपने लोग
जिनका मजहब से कोई वास्ता ही नहीं,
बस इतना ही चाहा था.

तुमने हमें निकाला
हमारे घर, हमारे मोहल्ले,
हमारे लोगों से,
हमनें उन्हें यादों में बसा लिया
एक यकीं लेकर-
कि मिलेंगे  कभी,
मेरा टूटा घर और मेरी आँख.
और मैं न बचा तो,
मेरा टूटा घर और मेरी राख.

मैंने कीमतों में इश्क़ चुकाया है.



कौन कहता है,
टूटा रिश्ता काम का नहीं होता.
वजहें नहीं ढूंढनी पड़ती कभी आंसू बहाने.
भूख भी भुला सकता हूँ,
इश्क़ की याद में.
...और तेरे जाने के बाद,
अब कोई बेवफा भी नहीं लगता.

कीमत चुकानी पड़ती है इश्क़ की.
हर अश्क़ की कीमत है,
मैंने कीमतों में इश्क़ चुकाया है.