july-agust-sept 1999....
मैं 21 जुलाई को आया हूँ, बाकियों से 2 दिन Late....सब 19 को आ गये थे, मैं 21 को. पापा ने हॉस्टल में छोड़ते वक़्त कहा है, वो परसों मिलने आयेंगे. एक भैया से भी मिलवाया, वो 8th में पढ़ते हैं, उनके पापा मेरी मम्मी के स्कूल में Teacher हैं. पहला दिन है, कुछ-कुछ अच्छा लग रहा है, मैं वैसे भी मम्मी-पापा से अलग नाना-नानी के घर रहा ही हूँ. मुझे Bed नहीं मिला है, किसी के साथ शेयर करना पड़ेगा (अरे 10 साल के तो हैं सभी, एक Bed पे दो क्या तीन लोग भी आ सकते हैं) रवीश के साथ मैं Bed शेयर कर रहा हूँ (एक दिन रवीश ने अपनी मम्मी मेरी शिकायत भी की, कि मैं Bed पे सामान फैलाता हूँ. :)). उसके पापा पहले से ही मेरे पापा को जानते हैं, लेकिन हम एक ही जगह से नहीं हैं. सोते वक़्त येसा लगा जैसे नाना के यहाँ सो रहा हूँ, लेकिन बगल में नानी नहीं सो रही थी, 'समझदार बहू' की कहानी सुनाते हुए, या मौसी ने भी दूध से भरा गिलास नहीं दिया सोते वक़्त शाम का खाना भी ज्यादा अच्छा नहीं लगा.
सुबह से बड़ी जल्दी उठा दिया, बेचारा नन्ही सी जान, PT भी करनी पड़ती है, 5.30 से. अच्छा नहीं लगा मुझे इतने जल्दी उठना. सुबह के 8.00 बजते-बजते घर कि याद सताने लगी, इतने ज्यादा अनुशासन में तो कभी रहा नहीं हूँ ना! श्याम के साथ Main Gate पर गया, वहीं बैठे हम रोते रहे (बाद में श्याम बिहारी ने स्कूल छोड़ दिया.).......पापा फिर आये हैं, मैं उनके सामने रो रहा हूँ, पापा को भी 50km गाड़ी चलाते हुए आना पड़ता था. उन्होंने लालच दिया है, नए कपड़ों का और स्कूल कि Computer Education का, बेटा कंप्यूटर 70 हज़ार का आता है (उस वक़्त, बाद में मैंने लैपटॉप लिया और पापा को आजतक Use करना नहीं सिखा पाया हूँ.) और बाहर किसी भी स्कूल में सिखाते भी नहीं (बाद में मेरे कंप्यूटर Teacher ने Black & White Screan पर हमे सिर्फ गेम ही खिलाया, और कुछ भी नहीं सिखाया, और मैंने स्कूल में कंप्यूटर पर Game खेलने के कम मौके मिलने के कारण घर पर Video Game ले लिया :)). मैं फिर भी रो रहा हूँ लेकिन मैं कुछ-कुछ खुश हूँ कि मैं औरो से दो दिन Late आया, उनसे दो दिन ज्यादा घर पे रह लिया. अमित से कहा भी.
.......मैं 'पानी कि टंकी' पे बैठा रो रहा हूँ, अलका Ma'am ने उठाया और क्लास ले गईं. मैं जबरदस्ती उनके हाथ से छिटकने कि कोशिश कर रहा हूँ. वो हंस रही हैं, शायद अपनी स्थिति पर भी और मेरे पर भी.
प्रसाद सर ने Chess लाकर दिया है, उनकी लड़की को भी बहुत पसंद है, और मेरा तो Favourite गेम ही है. मेरे नाना expert हैं इसमें, और मुझसे झूठ-मूठ का हार भी जाते थे. मैं खेलता हूँ. बहुत दिनों तक मैंने उनका Chess वापिस नहीं किया और उनकी बेटी मांगती रही.
चाचा आये हैं, मैं पहली बार उन्हें चाचा कहा, घर के बाकी लोगों को देखकर मैं भी उन्हें उनके नाम से बुलाता था. बारिस हो रही है, मैं चाचा के जाने के बाद रोने लगा.....अनुराग उन्हें बुलाने Main Gate तक गया है, भीगता हुआ. चाचा मुझे मना रहे हैं, और मैं TC लेने कि बात कर रहा हूँ.
1 महीने मैं गिनकर 47 letters लिख चुका हूँ, कुछ पापा-मम्मी को, कुछ दादी (बाई)-दादा को, कुछ मौसी को. सब में एक ही बात है, मेरे लिए और सामान मत लाना, मुझे TC चाहिए.
...मुझे अभी पता चला है, वहां का भी मम्मी रो-रो कर बुरा हाल है. हाँ, पापा ने नये कपडे खरीद कर दिए हैं.
March 2006.....
आखरी पेपर था, हिंदी का, हिंदी वैसे भी मेरी ठीक है. सब जाने कि तैयारी में हैं, 7 साल बाद स्कूल छोड़ रहे हैं. मेरे पास कैमरा भी नहीं है, कि फोटो ले सकूं. पहले मंगाने का ध्यान ही नहीं रहा, exams में busy था. किसी ने कहा, तुम 6th में दो दिन बाद आये थे. मैं सोच रहा हूँ, काश दो दिन और रह लेता....मैं Bed पर बैठा हूँ, माधव suitcase बंद कर रहा है (मुझे याद है उसने 12th में कभी suitcase lock नहीं किया.) हरिनारायण मेरे बगल में बैठ गया है......बड़ा emotional होके कहता है, 'विवेक तुम मुझे भूल तो नहीं जाओगे' मैं फीका सा मुस्कुरा देता हूँ (उस Emotional Fool को कोई कभी नहीं भूलेग:)). राजेश जा रहा है, 6th में हम लड़े थे, मैं उसे सॉरी कहना चाहता हूँ लेकिन.......
राकेश आकर मेरे पास बैठ गया है, 'हम तो मिलते रहेंगे, ज्यादा दूर थोड़ी रहते हैं.'(फिर पूरे 3 साल बाद हम मिले!) अमित की packing हो गई है (..और उस packing के साथ उसे आज तक झेल रहा हूँ, मेरा अभी भी roommate है) अरविन्द कि 'मडिया पार्टी' तैयार है (उस दिन से अबतक नहीं मिला 'अरविन्द दाऊ' से). श्री कान्त, जिसके साथ मैंने 6th में बहुत रोया है प्रवीण के साथ बैठा कुछ सोच रहा है (इनसे भी 5 साल से नहीं मिला). बहुत से Juniors रूम में आ गये है, किसी ने मेरी पेंसिल ले ली है, किसी ने पेन. मैं रूम से उठ कर भाग आया.प्रसाद सर के घर तक गया, लेकिन उनका दरवाजा खटखटाने कि हिम्मत नहीं हुयी. बाहर से ही लौट आया.
......पापा आ गये हैं, घंटे भर में मैं जा रहा हूँ. आते वक़्त भी आँसू थे, जाते वक़्त भी हैं.....पहले घर जाने को रोता था, अब घर जाने पर रो रहा हूँ.
feb 2011.....
लगभग सबका placement हो चुका है, सब कहीं ना कहीं चले जायेंगे, सब खुश है, engineering ख़त्म होने पर...मैं भी. लेकिन फिर वही कहानी दुहराई जाएगी, सब अलग-अलग हो जायेंगे. हमारी gang टूट जाएगी. मैं और यश दिन में 4 बार मिलते हैं, और अब वो कहीं और, मैं कहीं और...... अमित भी अब roommate कहाँ रहेगा!कॉलेज में 'आरक्षण' फिल्म कि शूटिंग चल रही है......असली ज़िन्दगी भी तो फिल्म के जैसी ही है, लेकिन एक Circle की तरह पुरानी चीजें यहाँ बार-बार दुहराती हैं!
मैं 21 जुलाई को आया हूँ, बाकियों से 2 दिन Late....सब 19 को आ गये थे, मैं 21 को. पापा ने हॉस्टल में छोड़ते वक़्त कहा है, वो परसों मिलने आयेंगे. एक भैया से भी मिलवाया, वो 8th में पढ़ते हैं, उनके पापा मेरी मम्मी के स्कूल में Teacher हैं. पहला दिन है, कुछ-कुछ अच्छा लग रहा है, मैं वैसे भी मम्मी-पापा से अलग नाना-नानी के घर रहा ही हूँ. मुझे Bed नहीं मिला है, किसी के साथ शेयर करना पड़ेगा (अरे 10 साल के तो हैं सभी, एक Bed पे दो क्या तीन लोग भी आ सकते हैं) रवीश के साथ मैं Bed शेयर कर रहा हूँ (एक दिन रवीश ने अपनी मम्मी मेरी शिकायत भी की, कि मैं Bed पे सामान फैलाता हूँ. :)). उसके पापा पहले से ही मेरे पापा को जानते हैं, लेकिन हम एक ही जगह से नहीं हैं. सोते वक़्त येसा लगा जैसे नाना के यहाँ सो रहा हूँ, लेकिन बगल में नानी नहीं सो रही थी, 'समझदार बहू' की कहानी सुनाते हुए, या मौसी ने भी दूध से भरा गिलास नहीं दिया सोते वक़्त शाम का खाना भी ज्यादा अच्छा नहीं लगा.
सुबह से बड़ी जल्दी उठा दिया, बेचारा नन्ही सी जान, PT भी करनी पड़ती है, 5.30 से. अच्छा नहीं लगा मुझे इतने जल्दी उठना. सुबह के 8.00 बजते-बजते घर कि याद सताने लगी, इतने ज्यादा अनुशासन में तो कभी रहा नहीं हूँ ना! श्याम के साथ Main Gate पर गया, वहीं बैठे हम रोते रहे (बाद में श्याम बिहारी ने स्कूल छोड़ दिया.).......पापा फिर आये हैं, मैं उनके सामने रो रहा हूँ, पापा को भी 50km गाड़ी चलाते हुए आना पड़ता था. उन्होंने लालच दिया है, नए कपड़ों का और स्कूल कि Computer Education का, बेटा कंप्यूटर 70 हज़ार का आता है (उस वक़्त, बाद में मैंने लैपटॉप लिया और पापा को आजतक Use करना नहीं सिखा पाया हूँ.) और बाहर किसी भी स्कूल में सिखाते भी नहीं (बाद में मेरे कंप्यूटर Teacher ने Black & White Screan पर हमे सिर्फ गेम ही खिलाया, और कुछ भी नहीं सिखाया, और मैंने स्कूल में कंप्यूटर पर Game खेलने के कम मौके मिलने के कारण घर पर Video Game ले लिया :)). मैं फिर भी रो रहा हूँ लेकिन मैं कुछ-कुछ खुश हूँ कि मैं औरो से दो दिन Late आया, उनसे दो दिन ज्यादा घर पे रह लिया. अमित से कहा भी.
.......मैं 'पानी कि टंकी' पे बैठा रो रहा हूँ, अलका Ma'am ने उठाया और क्लास ले गईं. मैं जबरदस्ती उनके हाथ से छिटकने कि कोशिश कर रहा हूँ. वो हंस रही हैं, शायद अपनी स्थिति पर भी और मेरे पर भी.
प्रसाद सर ने Chess लाकर दिया है, उनकी लड़की को भी बहुत पसंद है, और मेरा तो Favourite गेम ही है. मेरे नाना expert हैं इसमें, और मुझसे झूठ-मूठ का हार भी जाते थे. मैं खेलता हूँ. बहुत दिनों तक मैंने उनका Chess वापिस नहीं किया और उनकी बेटी मांगती रही.
चाचा आये हैं, मैं पहली बार उन्हें चाचा कहा, घर के बाकी लोगों को देखकर मैं भी उन्हें उनके नाम से बुलाता था. बारिस हो रही है, मैं चाचा के जाने के बाद रोने लगा.....अनुराग उन्हें बुलाने Main Gate तक गया है, भीगता हुआ. चाचा मुझे मना रहे हैं, और मैं TC लेने कि बात कर रहा हूँ.
1 महीने मैं गिनकर 47 letters लिख चुका हूँ, कुछ पापा-मम्मी को, कुछ दादी (बाई)-दादा को, कुछ मौसी को. सब में एक ही बात है, मेरे लिए और सामान मत लाना, मुझे TC चाहिए.
...मुझे अभी पता चला है, वहां का भी मम्मी रो-रो कर बुरा हाल है. हाँ, पापा ने नये कपडे खरीद कर दिए हैं.
March 2006.....
आखरी पेपर था, हिंदी का, हिंदी वैसे भी मेरी ठीक है. सब जाने कि तैयारी में हैं, 7 साल बाद स्कूल छोड़ रहे हैं. मेरे पास कैमरा भी नहीं है, कि फोटो ले सकूं. पहले मंगाने का ध्यान ही नहीं रहा, exams में busy था. किसी ने कहा, तुम 6th में दो दिन बाद आये थे. मैं सोच रहा हूँ, काश दो दिन और रह लेता....मैं Bed पर बैठा हूँ, माधव suitcase बंद कर रहा है (मुझे याद है उसने 12th में कभी suitcase lock नहीं किया.) हरिनारायण मेरे बगल में बैठ गया है......बड़ा emotional होके कहता है, 'विवेक तुम मुझे भूल तो नहीं जाओगे' मैं फीका सा मुस्कुरा देता हूँ (उस Emotional Fool को कोई कभी नहीं भूलेग:)). राजेश जा रहा है, 6th में हम लड़े थे, मैं उसे सॉरी कहना चाहता हूँ लेकिन.......
राकेश आकर मेरे पास बैठ गया है, 'हम तो मिलते रहेंगे, ज्यादा दूर थोड़ी रहते हैं.'(फिर पूरे 3 साल बाद हम मिले!) अमित की packing हो गई है (..और उस packing के साथ उसे आज तक झेल रहा हूँ, मेरा अभी भी roommate है) अरविन्द कि 'मडिया पार्टी' तैयार है (उस दिन से अबतक नहीं मिला 'अरविन्द दाऊ' से). श्री कान्त, जिसके साथ मैंने 6th में बहुत रोया है प्रवीण के साथ बैठा कुछ सोच रहा है (इनसे भी 5 साल से नहीं मिला). बहुत से Juniors रूम में आ गये है, किसी ने मेरी पेंसिल ले ली है, किसी ने पेन. मैं रूम से उठ कर भाग आया.प्रसाद सर के घर तक गया, लेकिन उनका दरवाजा खटखटाने कि हिम्मत नहीं हुयी. बाहर से ही लौट आया.
......पापा आ गये हैं, घंटे भर में मैं जा रहा हूँ. आते वक़्त भी आँसू थे, जाते वक़्त भी हैं.....पहले घर जाने को रोता था, अब घर जाने पर रो रहा हूँ.
feb 2011.....
लगभग सबका placement हो चुका है, सब कहीं ना कहीं चले जायेंगे, सब खुश है, engineering ख़त्म होने पर...मैं भी. लेकिन फिर वही कहानी दुहराई जाएगी, सब अलग-अलग हो जायेंगे. हमारी gang टूट जाएगी. मैं और यश दिन में 4 बार मिलते हैं, और अब वो कहीं और, मैं कहीं और...... अमित भी अब roommate कहाँ रहेगा!कॉलेज में 'आरक्षण' फिल्म कि शूटिंग चल रही है......असली ज़िन्दगी भी तो फिल्म के जैसी ही है, लेकिन एक Circle की तरह पुरानी चीजें यहाँ बार-बार दुहराती हैं!
18 comments:
dairy ke ye panne kitne ehsaason ko suna gaye
bhaiya maan gaye yaar......
kuch dil maine chubhan shi hui hain ye padkar...
ohhh...you make me feel nostalgic and scared....afterall dil to abhi bhi baccha hi hai naaaa! :(
you have written it so brilliantly....almost har student ki kahaani....ufff....wat shud i say...i think i shud stop before i get tears in eyes :(
ये क्षण भी एक मुकाम है जहाँ से मंजिल के लिए एक नयी जंग शुरू होगी। अभी तो आपके लिए इस खूबसूरत दुनिया कों देखना बाकी है । चार मित्र बिछड़ेंगे , चालीस नए इंतज़ार में हैं।
Isn't life this amazing riddle? We spend our half life in a journey to be what we want and pass half life remembering that journey and ppl who left their footprints there.
समय के साथ, नई जगह, नये लोग, नई कहानी.
और उन्मुक्त खुला आसमां...
ज़िदगी के पन्ने यूं ही खुलते रहेंगे और समय उन पर कुछ-न-कुछ लिखता चला जाएगा।
bhai, kya likha hai yar,shanddaar, colg lige ka itna accha presentatn rare hee dekhney ko milta hai...phoda bhai...hats off
@divyakant, chubhan to hogi hi, kyuki ye sirf meri kahani nhi h, sabhi navodians ki h.
@saumya, thanku ji, sach kaha dil to aakhir abhi bhi bachha h ji, vaise, badi ghatiya movie h. :)
jab pahli baar apne school gya tha, jawahar navodaya vidyalaya to mei dara hua tha, bechara itna rota tha ki rone ke karan famos ho gya tha.
@vineet, thnks for comment, but most of the part is abt my school life.
@rashmiji, divya ji, sushil ji, mahendraji, rahul ji thanks for response. thank u all.
डाइरी के ये पन्ने कितने अहसानों को सुना गए|
bhaiya maan gaye yaar......bahut hi sunder
बढ़िया लिखा।
वाह क्या बात है, बेहतरीन क्षणों को पन्नों पर उतारा है।
बढिया लगा पढना
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