तुम्हें मैं क्या दिखता हूँ?
मुझे पागल जॉन एलिया पागल कर गया है
कुर्रतुलऐन हैदर की 'आग का दरिया' सीना जला गई
जो बचा था
गुलज़ार पढ़ते-पढ़ते
किसी और दुनिया में रहता हूँ.
सच कहो,
तुम्हें मैं क्या दिखता हूँ?
तुमसे पहले
मैं हारा था नहीं कुछ, कभी
तुम्हारे बाद
मैंने जीता नहीं कोई युद्ध
लेकिन मंज़र अभी कोई ख़त्म नहीं
रुके कोई जतन नहीं
मैं तड़पा हूँ
मैं भड़का हूँ
मैं खुद को शोला लगता हूँ.
सच कहो,
तुम्हें मैं क्या दिखता हूँ?
मैंने हमेशा इश्क़ किया
कैलकुलेशन कभी न किया
लेकिन अब हज़ार गणनाएं करने लगा हूँ
रिश्ते तौलता हूँ,
फिर निभाता हूँ.
मैं रिश्ते जानने लगा हूँ
व्यक्ति पहचानने लगा हूँ
अहम सम्हालने लगा हूँ
मुखौटे हटाने लगा हूँ
मुखौटे ओढ़ने लगा हूँ
लोग कहते हैं,
मैं सम्हलने लगा हूँ.
सच कहो,
तुम्हें मैं क्या दिखने लगा हूँ?
मुझे सिखाया गया
सरहदों पर दुश्मन है
फैज़, फ़राज़ ने यह भरम भी जाने दिया
मुझे बताया
जो कहा जाये सच नहीं होता
लिखे की सरहदें नहीं होती
और जुबां के परे वो ज़िंदा रहता है.
मैं लिखता हूँ,
तुम्हें मैं क्या दिखता हूँ?