उल्लास तुम ही, उद्गार तुम ही
स्वयं का उद्धार तुम ही.
तीर खड़े क्या सागर खोजोगे
बैठ थके क्या पाओगे
स्वयं वृक्ष काट यहीं
नौका खुद की गड लो
तूफानों को चेताओ
खुद लहरों पे चढ़ लो.
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जिसे हार का डर नहीं
न मौत का भय हो
स्वयं भरोसे जो भिड़े
जीत उसी की तय हो.
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डर क्या डरायेगा
तू डर को डरा भगा दे
मौत को कचहरी ले जा
मौत की सज़ा सुना दे.