वक़्त से निकल कुछ लम्हे
यादों में खोये हुए
कहते कुछ बातें प्यारी-
जैसे सपने जागे-जागे,
जैसे अरमान गूंजे-गूंजे
जैसी खुशियाँ बिखरी-बिखरी
जैसे जीवन संवरा-संवरा.
जैसे डाली डोली डोली,
फूलों पे मंडरे भँवरा.
उन्नीदी सी रात ये
जैसे गाती गीत मल्हार,
जैसे चाँद प्रेयसी बन,
छू जाता, करता प्यार.
आँखों में, हंसी में आज
एक अजीब नयापन है.
बूंदे हैं बिखरी-बिखरी,
मौसम में अपनापन है.
इतारये इस दिल ने,
एक घरोंदा पाया है.
छोटे से घरोंदे का,
हर तिनका अपना पाया है.
आज कुछ सजीव लम्हे,
बरसों बाद जिए हैं फिर.
खुशियाँ बटोरकर सारी,
लम्बी प्यास कर लूँ तर!