भाईसाहब ने सारे कपडे बेड पर फैला दिए हैं. मम्मा परेशान हो गई है. वे लेकिन समझ नहीं रहे हैं. पापा के आते ही उनसे शिकायत करती हैं: 'ये आजकल कुछ भी ऊधम कर रहे हैं और मम्मा की बात भी नहीं सुन रहे हैं.'
पापा भाईसाहब को गोद में लेते हैं. सोफे पर बैठते हैं और उनको समझाना शुरू करते हैं. 'बेटा, अच्छे बच्चे मम्मा का काम नहीं बढ़ाते हैं, उनकी मदद करते हैं. कपडे फैलाना नहीं है, जमाना होता है...'
यकायक से अपनी गर्दन मटकाकर भाईसाहब बोलते हैं 'बिलटुल (बिल्कुल)... बिलटुल पापा.'
अब पापा समझाने के लिए आगे कुछ बोल रहे हैं और भाईसाहब सिर हाँ में मटकाते हुए, पापा का चेहरा हाथों में लेकर 'बिलटुल... पापा बिलटुल...' बोल रहे हैं.
'बेटा ऐसे बच्चे... बिलटुल पापा...बिलटुल... अच्छे बच्चे... बिलटुल पापा... नहीं होते... होते हैं पापा, बुलटुल...'
यह दृश्य देख मम्मा की हंसी छूट जाती है. पापा भी हंसने लगते है.
उफ़! इस ढाई साल के बच्चे को कैसे समझाया जाए.