Sunday, April 8, 2018

लकड़ी


वो लकड़ी है, लड़की नहीं
बड़ी होते ही चूल्हे में जला दी जाएगी.

ये मेरी दोस्त
तुम लकड़ी बन ही रही हो
तो मेरी दादी की लकड़ी बनना
जिससे उन्होंने समाज के ठाकुरों को पीटा
और जरूरत पड़ने पे दादा को भी.
उनकी लकड़ी इतनी ताकतवर थी कि
सारा गांव उनसे डरता था
उन्होंने सपने में तो औरंगज़ेब को भी उसी लकड़ी से मारा होगा
और अंग्रेज़ तो उनकी लकड़ी के सामने ही भागे.

इसलिए मेरी दोस्त
लड़कियां लकड़ियां पैदा होती हैं
जिन्हें बड़े हो के चूल्हे में जलना है
लेकिन तुम इतना तेज़ जलना कि
आग से समाज जला सको
दो चार को धुंएँ से मार सको
और इतना धधकना कि
ये जो आग है
वो बुराई को, बुरा करने वाले को
दशहरे के रावण सा जला दे.

हालाँकि रावण हर वर्ष जलने के लिए नहीं पैदा हुआ था
हर लड़की लकड़ी बनने नहीं पैदा हुई है
हर आदमी जलाने पैदा नहीं हुआ है
और हर एक कि नियति में कांटे नहीं उगे हैं.

लेकिन मुझे भरोसा है
जब अंतिम लड़की लकड़ी बनने से मना कर देगी
उस दिन सब तुम्हें याद करेंगे.
जैसे मैं मंडेला को याद करता हूँ
निडर गाँधी को याद करता हूँ
और लक्ष्मीबाई की आग को याद करता हूँ.

लकड़ी बनना मेरी दोस्त
तो बरसना भी सीखना
गरजना भी सीखना
जलना पर जलाना भी सीखना
गलना पर गलाना भी सीखना.

देखना तुम्हारे आंसू जाया न जाएँ
वो मोती हैं मेरी लिए
और तुम्हारी आँखें सीपी,
जिनमे पड़े सपने
तुम्हें मेरी याद दिलाते रहेंगे.