Monday, January 15, 2024

मां बिन दो दिन | Part 1


मम्मा को रात में ओवरनाइट ट्रेन से कांफ्रेंस के लिए जाना है इसलिए भाई साहब का ध्यान भटकाना जरूरी है। भाईसाहब कह रहे हैं "पापा तेत थाना है तेत। बर्थडे वाला तेत।" पापा को आइडिया आता है और पापा उन्हें ले जाते हैं केक लाने। भाईसाहब एक पेस्ट्री तो वहीं बेकरी पर ही चट कर जाते हैं और दूसरी मांगते हैं "पापा और भी खिलाओ ना।"
पापा "बेटा अब घर पर खायेंगे न।"
भाईसाहब "ओते पापा।"
पापा पेस्ट्री के साथ मम्मा के लिए ट्रेवलिंग के हिसाब से कुछ खाने के लिए भी ले लेते हैं। भाईसाहब को अपना मनपसंद खाने मिल गया है। अब भाईसाहब थोड़े कूल हैं।
पापा मम्मा को छोड़ने गए हैं, भाईसाहब नाना नानी के साथ हैं और ध्यान भटकाने टीवी तो है ही।
पापा लौट कर आते हैं। टीवी में चींटी घुस गई है कह नानू टीवी ऑफ करते हैं। भाईसाहब के टेंट्रम चालू होते हैं। पापा उन्हें गोदी में उठा लेते हैं। बना बनाकर कहानी सुनाई जा रही है। रात 11:30 बज रहे हैं। नानू भी बगल में लेटे हैं। पापा को लगता है भाईसाहब सोने वाले हैं कि भाईसाहब बोलते हैं "पापा, मम्मा कहां गई?"
पापा: "बेटा ऑफिस में है ना। आ जाएगी चिंता मत करो।"
भाई साहब आंखें मूंद रहे हैं कि फिर 10 मिनट बाद "पापा, मम्मा कहां गई?" पापा वही जवाब देकर सुलाने की कोशिश करते हैं। वो सो नहीं रहे हैं तो नानू उनसे कहते हैं "अरे! मेरा शौर्य छुप जाता है।" भाईसाहब रजाई में नानू के साथ छुप रहे हैं। पापा ढूंढने की 'कोशिश' करते हैं पर उन्हें ढूंढ नहीं पा रहे हैं। रात 12:30 बजने कोई हैं... भाईसाहब आधी नींद में आ गए हैं... यकायक से "पापा, पापा...गोदी... गोदी।" कहने लगते हैं।
पापा गोदी में लेते हैं। भाईसाहब 15 मिनट में सो जाते हैं। पापा और नानू ने चैन की सांस ली है।