Gaurav Solanki की पहली कहानी मैंने 'चालीस' पढ़ी थी. फिर 'हिसार में हाहाकार' पढ़ी, लगा कि ये लड़का सच लिख देता है, जैसा होता है वैसे ही.
सच मतलब कुछ की भाषा में डार्क ट्रुथ ऑफ द सोसायटी. उससे conversations हुए तो ये लगा भी.
Article 15 उसकी लिखी एक बेहतरीन फिल्म है. सच जो कि लेयर्स में है, नग्न है और एक युवा अधिकारी जिसकी खोज में है.
सच जो उसके बिल्कुल करीब है, साथ में जीप में चलता है, लेकिन उसे ढूंढना और खोजना बेहद मुश्किल है.
हर सच को छुपाने एक पूरी जमात खड़ी होती है, यहाँ भी है.
एक दलित क्रान्तिकारी भी है, एक बेहद intelligent स्टूडेंट रहा है लेकिन कास्ट सिस्टम में कई प्रतिभाओं की तरह ही पिस गया आदमी.
हालांकि फिल्म में ये किरदार बहुत नहीं उभर पाया है. उसके आने से अंत तक बहुत ज्यादा पता नहीं चलता. हम उसकी हत्या से पहले उसके dialogues तक ज्यादा जुड़े महसूस नहीं कर पाते.
ऑफिसर और उसकी गर्लफ्रेन्ड के बीच के conversations फिल्म का बेहतरीन पार्ट हैं और अखबार के पेज-3 और पेज-7 के बीच के पेज लगते हैं. समझने लायक, सुनने लायक, गुढने लायक.
ये 'गांवो में क्या हो रहा है और शहर तक क्या सच पहुँच रहा है' वाला अंतर है.
ये पुलिस अधिकारी कोई सिम्बा या सिंघम नहीं है. एक साधारण युवा जो ट्रेनिंग के बाद अपनी पहली पोस्टिंग पे आया है. किर दार सच के इतने करीब है कि Vipin की पहली पोस्टिंग की कहानियों की याद दिलाता है.
कई जगह पर किताबी हो जाने के बाद भी ये फिल्म एक बेहतरीन सिनेमा है.
Caste के अंदर caste, category के अंदर sub-category की बात करते, उनके अंतर उजागर करते हमें फ्रेम दर फ्रेम में सोचते रहने को मजबूर करती है.
ये फिल्म Reservation के खिलाफ आंदोलित युवाओं को धैर्य रखने को कह सकती है. उन्हें अपने दूषण की और झांकने का मौका देती है.
ये फिल्म 'Elite' दलित तबके को भी ये अधिकार खुद छोड़ निचले तबके को पहुंचाने की सलाह हो सकती है. निचले स्तर पे काम करने की सलाह हो सकती है. (हालांकि फिल्म खुद ये कह देती है कि जो दलित व्यक्ति ऊपर उठ के जाता है वो नीचे हेय दृष्टि से देखना शुरू कर देता है.)
फिल्म अन्य कारणों के अलावा इस दशक की सबसे अच्छी सिनेमाटोग्राफी के लिए भी याद की जाएगी.
हम सबका हमारे नग्न सच को एक बार देखने जाना तो बनता है.
-Vivek Vk Jain
#Article15 #RightToEquality #Constitution
For Reference:
Article 15 in The Constitution Of India 1949
15. Prohibition of discrimination on grounds of religion, race, caste, sex or place of birth
(1) The State shall not discriminate against any citizen on grounds only of religion, race, caste, sex, place of birth or any of them
(2) No citizen shall, on grounds only of religion, race, caste, sex, place of birth or any of them, be subject to any disability, liability, restriction or condition with regard to
(a) access to shops, public restaurants, hotels and palaces of public entertainment; or
(b) the use of wells, tanks, bathing ghats, roads and places of public resort maintained wholly or partly out of State funds or dedicated to the use of the general public
(3) Nothing in this article shall prevent the State from making any special provision for women and children
(4) Nothing in this article or in clause ( 2 ) of Article 29 shall prevent the State from making any special provision for the advancement of any socially and educationally backward classes of citizens or for the Scheduled Castes and the Scheduled Tribes