Wednesday, January 5, 2011

इंसान इंसान को कहाँ छूते हैं!

तेरे जो हैं, तूने लूटे हैं,
मेरे जो हैं, मेरे बूते हैं.

तेरा हर झूठ सच्चा है,
मेरे सारे ख्वाब ही झूठे हैं.

मुस्कुराने में ज़रा वक़्त लगेगा,
अपनी रूह से ही आप रूठे हैं.

खुदा भी मेरा हमराही है,
उसके भी कई ख्वाब टूटे हैं.

बड़ी मुद्दत से बनाया इंसान,
इंसान इंसान को कहाँ छूते हैं!