Monday, April 7, 2014

क्यूंकि सबसे खतरनाक होती है रोटी की आग.



एक मजदूर चुपचाप ईंटें बटोरता
चिल्ला रहा था,
'तुम अपने शहर से कुछ रंग दे दो
तो मैं अपना गांव रंग लूँ!'
बगल में उसकी औरत 
मांग रही थी भीख,
'कि आध-गज़ कफ़न का कोई
कर दे बंदोबस्त.'
मर गया बेटा उसका
झुलस तुम्हारे शहर में,
क्यूंकि सबसे खतरनाक होती है रोटी की आग.
क्यूंकि 'सबसे खतरनाक होता है सपनों का मर जाना.'
क्यूंकि उससे खतरनाक होता है गांव से शहर जाना.
गांव में मरते हैं हर दिन,
शहर में एक बार में ही.
क्यूंकि शहर नहीं दूर, न ही गांव बड़ा पास.
क्यूंकि सबसे खतरनाक होती है रोटी की आग.
गर्दन मरोड़ दो पेट बचा रह जाता है,
पेट मरोड़े ले तो गर्दन नहीं बचती.
'रंग दे दो मेरे गांव को,
थोडा शहर वहाँ बस जाने दो.'
'रीजनल पार्क' से
मजदूर ने बटोरी घास
और लगा दी आग,
बिना कफ़न की लाश.
रंग- बाग़- घास- आग- लाश
बुझ गये, जलता रह पेट,
क्यूंकि सबसे खतरनाक होती है रोटी की आग.