Monday, August 25, 2014

रतजगा और प्रेम

तुम्हारा रूप,
जैसे चांदनी में माता का रतजगा कर-कर निखारा हो.
रतजगे की दिव्य-ध्वनि जैसे
समा गयी हो तुममें.
अंग-रंग मंत्रित सा लगता है!
बचपन से लाल चुनरी में माता
सबसे सौम्य लगती थी,
अब तुम्हारा चेहरा भी.

उफ़! हटो नज़रों से,
ज़रा दुनिया भी दिखने दो-
फायदे-नुकसान, सौदे-रेजगारी.

दुनिया बनियों की है,
प्रेमियों की नहीं! 

Friday, August 15, 2014

मेरे हिस्से की आज़ादी


1.
जिन्होंने कभी हमसे पानी माँगा,
संग बैठ रोटी खाई
प्यार से पुचकार देशहित में मुफ्त ज़मीनें मांगी,
अपने बड़े-बड़े मॉल बनाये.
मैं जब लौट के थका-मांदा वहां गया,
उन्होंने कहा-
'पानी बीस रूपये, एक लीटर'.

(Inspired from  'Shanghai' Film)
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2.
पहले मेरे हिस्से आज़ादी आई, फिर मशीनें
उन्होंने अपने घर बनाये मेरी ज़मीनों पे
अपनी फसल बोई मेरी फसलों पे
उससे जो उगा वो बारूद था
जो मुझपे ही दागा गया.

पहले मेरे हिस्से आज़ादी आई, फिर मशीनें.
फिर मेरे हिस्से की आज़ादी उनकेे हिस्से आई.




Tuesday, August 12, 2014

Robin Williams




रौशनी रोती है
अँधेरा न मिला उसे मिटाने.
कलम चुभती रही
मुझे ख़याल न मिले.
दम्भ बैचेन है
कहीं किसी पे अकड़ निकालने,
इंसान खुरापात करने सड़क पे
आधा-तिरछा चल रहा है.

उफनती नदी में गिर जाएगी दुनिया एक दिन
किताबों के होंगे क़त्ल
संभावनाएं सारी रो पड़ेगी
आख़िरी कवि कर लेगा आत्महत्या.
विदूषक तुम बताओ क्या करोगे?
कॉफ़ी में मिला ज़हर पी लेना
मुखौटा हटा दुनिया को दिखाना
असली चेहरा-
तुड़ा-मुड़ा चेहरा, जिसपे आंसुओं के मोटे धब्बे हैं.

मैं आदम के आखिरी वंशज के मरने का इंतज़ार कर रहा हूँ,
तब तक मोड़ के भिखारी को
एक रुपया देता रहूंगा.

घास का स्केच


तुम हरी घास हो
जिसपे बैठ दो सुकून के पल बिताना चाहता हूँ.
शबनम की महक महसूस करता हूँ.
एक दौर से मैंने कोई पेंटिंग नहीं की
तुम्हें ही रंगता रहा मैं.
मैं भिखारी नहीं जो रिश्ते मांगता,
आज नया स्केच बनाया है
जला के तुम्हें.
'भारत भवन' में लोगो ने कहा
'अब तक का सबसे खूबसूरत काम.'
तुम्हारे खून के धब्बे किसी को नहीं दिखे
न मेरा ताप!

खीझ जाता हूँ कि
इस दौर के लोगों को कविता समझ नहीं आती.
मेरी तो बिलकुल न आएगी.

पोपले मुंह मैं बैठना चाहता हूँ,
शबनम कि महक लेना चाहता हूँ.
ये घास तू भी तो पीली पड़ गई है.