Saturday, January 28, 2017

सिद्धांत

ज़्यादा से ज़्यादा लोगों का
ज़्यादा से ज़्यादा लाभवाला सिद्धांत
मैं नहीं मानता।
उसे नंगे रूप में देखें तो उसका अर्थ यह होता है
कि 51 फीसदी लोगों के हितों की ख़ातिर 49 फीसदी
लोगों के हितों का बलिदान किया जा सकता है।
बल्कि कर देना चाहिए।
यह एक निर्दय सिद्धांत है और मानव समाज को
इससे बहुत हानि हुई है।


'सबका ज़्यादा से ज़्यादा भला किया जाए'
यही एक मात्र सच्चा, गौरवपूर्ण और मानवीय सिद्धांत है
और इसे पूर्ण आत्मबलिदान के द्वारा ही अमल में लाया जा सकता है।

—महात्मा गांधी, चार जून उन्नीस सौ बत्तीस

Thursday, January 26, 2017

देशभक्ति

एक मुख्यमंत्री करप्शन के चार्जेज़ से अदालत से छूट कर आती है उस राज्य का हर आदमी जानता है उसके पास आय से अधिक संपत्ति है !
कोई जनसमूह उसके विरुद्ध आंदोलन करने बीच पर नहीं उतरता ,कोई रेल रोकी नहीं जाती ! लोग उसके स्वागत में सामूहिक जलूस निकालने को टूट पड़ते है !
इमोशन बड़ी दिलचस्प शै है !
 नेताओ का एक समूह उधोगपतियो के साथ मिल कर क्रिकेट की एक बॉडी गवर्न करता है स्टेटस एन जी ओ का है उसमे करोडो का हेर फेर होता है अदालत की चेतावनी के बाद उसके कुछ अधिकारों पर रोक लगायी जाती है। दिलचस्प बात है के उसका अध्यक्ष कुछ महीने पहले सन्सद में देशभक्ति पर एक ओजस्वी भाषण दे चूका है और उस एन जी ओ में सभी राजनैतिक पार्टियों के लोग शामिल है !
क्रिकेट बड़ी दिलचस्प शै है !
एक गैर सरकारी संस्था बतलाती है देश की प्रमुख छह राजनैतिक पार्टियों के चुनावी फंड में सबसे ज्यादा योगदान अघोषित सोत्र से मिलने वाला धन है ये संस्था भी इमोशन लेस है ,कोई कैशलेस चंदा नहीं लेना चाहता !
राजनीति सबसे दिलचस्प शै है !
12 साल का बबलू गाँव से कई किलोमीटर चलकर एक बस पकड़कर स्कूल जाता है ,इंटेलिजेंट है उसके पास कई सवाल है ,पर उन्हें बूझने वाला टीचर हर रोज नहीं मिलता। कई दफे खाली स्कूल बैठकर आ जाता है। दसवी बारहवीं का स्कूल ज्यादा दूर है वहां तक पहुँचने के लिए दो बसे पकड़नी पड़ती है शायद वहां टीचर आते हो। स्कूल और अस्पतालों पर इस देश में कोई चुनाव नहीं हारता !
चुनाव बड़ी दिलचस्प शै है
वो कौन से पुलिसवाले है जो एक गरीब दबे कुचले पिता को अपनी बलात्कार हुई बेटी को गोद में लिए थाणे से Fir करने से भगा देते है ,
और एक बाबा के खिलाफ मजाक करने वाले एक कॉमेडियन को दूसरे राज्य तक पकड़ने फ्लाइट से रात को जाते है ?
कौन करता है उस आदेश में साइन जिसमे उनको फ्लाइट के टिकट दिए जाते है ?
कौन है वो पुलिसवाले जिन्हें मालूम है कब डंडा उठाना है कब खामोश खड़े रहना है ?
कौन करता है इन की रीढ़ की हड्डियों में इतनी लचक ?
रीढ़ की हड्डिया बड़ी दिलचस्प शै है !
राम नरेश दो साल पहले आतंकवादियो से मुठभेड़ में कश्मीर में शहीद हुआ था पूरा गाँव उमड़ा था उसकी अंतिम यात्रा में ,,राज्य के मंत्री एम् एल ए सब शामिल हुए थे तब उसकी पत्नी छह महीने से पेट से थी।उसकी पत्नी सरकार द्वारा घोषित पुरूस्कार राशि को लेकर अभी तक दफ्तरों के चक्कर काट रही है खैनी खाने वाला बाबू बतलाता है उसके आधार कार्ड में नाम की स्पेलिंग गलत है उसने उसे सही करवाया तो अब उसके घर का पता गलत आया है
सिपाही के युद्ध ख़त्म होने के बाद भी चलते रहते है
देशभक्ति भी बड़ी दिलचस्प शै है
कौन पैदा करता है हमारे भीतर देशभक्ति ?
रिमोट ?
अखबार ?
मनोज कुमार ?
क्या होती है देशभक्ति ???
26 जनवरी और 15 अगस्त को कल्चरल प्रोग्राम में तीन रंगों वाला कुरता पजामा पहनकर डांस करना ?
ओन लाइन जवानो को श्रंदांजलि दे देना ?
व्हाट्स एप या फेसबुक पर डी पी बदलना ?
अपने देश के प्रधान मंत्री के कार्यक्रम में जय हिन्द के नारे लगा लेना ?
क्या होता है देशद्रोह ?
किसी राजनैतिक आंदोलन में सरकारी संपत्तियों को नुकसान पहुँचाना ,रेल ,बस रोकना ?
जंगल ,नदियों ,पहाड़ो को अपने निजी राजनैतिक हितो और स्वार्थो के लिए काट देना ?
प्लैटफ़ॉर्मो ,सड़को पर दरगाह ,चर्च ,मंदिर बनाकर कब्ज़ा करना ?
अपनी जात /बिरादरी / राजनैतिक विचारधाराओ के लोगो को सरकारी नौकरियों में अनुचित तरीके से स्थान देना ?
सरकारी पुल के लिए उचित मात्रा में लोहा ना मिला कर बनवाना , या एक खास जगह से निम्न क्वालिटी का लोहा खरीदना और बिल ज्यादा दिखाना ?
मिलावटी रोडो, सीमेंटो से सड़क बनवाना ?
किसी कारखाने,फैक्ट्री या प्रोजेक्ट बनाने के लिए विस्थापित लोगो को पर्याप्त मुआवजा ना देना और वादे के मुताबिक सरकारी नौकरी ना देना ?
किसी गरीब आदमी के साथ हुए अन्याय की रिपोर्ट ना लिखना और प्रभावशाली ताकतवर पैसे वाले लोगो के खिलाफ कमजोर केस बनाना ?
सत्ता में आने के बाद सत्ता पक्ष का उन लोगो को फायदा पहुँचाना जिन्होंने चुनाव जीतने में आर्थिक और दूसरे साधनो से मदद की ?
सरकार द्वारा बनायीं गयी योजनाओ के तहत गरीबो के लिए आयी हुई दवा कागजो में खरीदना ?
क्या होता है देशद्रोह ?
कौन बनाता है सिस्टम ?
कहाँ से आते है सिस्टम के लोग ?
मंगल गृह से ?
रामदेव कह रहे है इस गणतंत्र दिवस पर पतंजलि के प्रोडक्ट खरीद कर देश को आर्थिक आजादी दिलवाइये
वंदे मातरम् !
नहीं ,नहीं वंदे मातरम् के वक़्त खड़ा होना कम्पलसरी नहीं है !


-- डॉ अनुराग आर्य (फेसबुक पर) 

Elon Musk

Elon Reeve Musk is inevitably one of the most impressive entrepreneurs the world has ever seen. Born on June 28, 1971, in South Africa, he bought his first computer at 10, taught himself how to program for next two years and then made first software sale at age 12. Musk graduated from the University of Pennsylvania at 24 and dropped out of a Ph.D. program of Stanford University within two days to pursue his entrepreneurial aspirations. Later on, he founded PayPal (formally called X.com), SpaceX (2002) and Tesla Motors (2008).

Elon Musk’s accomplishments over the last two decades make him a role model for young entrepreneurs. Here are five powerful lessons that you can learn from his life and career.

Dare to challenge reality

Quoting Einstein, “You can’t solve problems with the same thinking that caused them.” Before Tesla Energy came into existence, people were convinced that battery packs would continue to be expensive, no matter what. However, Musk realised that if someone could break down batteries into its fundamental components – aluminum, cobalt, carbon, nickel, polymers, steel etc. – and build them from scratch by optimising the resources, the overall cost could be reduced by a huge margin.

Today, Tesla Energy has established itself as a revolutionary energy storage venture for sustainable businesses and homes. Musk dared to challenge the widely accepted reality and changed it.

“Boil things down to the most fundamental truths. Then reason up from there.” – Elon Musk

Similarly, you can write down your business challenges, break them down into basic components, and then try to figure out how those components can be bettered.

Consider failure an option and take calculative risk

Today, he may be a multi-billionaire entrepreneur, but things were not always like this. When Musk started SpaceX, he considered failure as a viable option on his new journey towards interplanetary exploration. However, instead of giving it up, he created a contingency plan and went ahead with the SpaceX project.

In Elon Musk's words, “If we don’t get the first SpaceX rocket launch to succeed by the time we’ve spent $100 million, we will stop the company. That will be enough for three attempted launches.”

The first launch mission of SpaceX, after spending $30 millions, failed. The second launch mission, after spending $60 million also failed. The last and final attempt, failure to which would've led to the end of SpaceX, succeeded. Because of this successful launch mission, SpaceX won a contract worth $1.6 billion from NASA. The rest is history!

“Failure is an option here. If things are not failing, you are not innovating enough.” – Elon Musk

Don't be scared of failure. The ratio of failure to success is always 50:50, especially when you start a new business. But that shouldn't stop you from following your dreams. Just draw a line (in terms of the number of months and amount of money you'll invest) and work hard towards making a dent in the universe.

Think beyond money

What, according to you, was Steve Jobs thinking while working on first iPhone? Or what was it that drove Elon Musk when he was thinking to invest in Tesla Motors? No great person who changed the world in any way did it for money. There was something beyond fame and wealth that motivated them to do great things.

“Going from PayPal, I thought: 'Well, what are some of the other problems that are likely to most affect the future of humanity?' Not from the perspective, 'What's the best way to make money?” – Elon Musk

So whenever you decide to start a new business, focus on the difference that your product can make to humanity. Money is a by-product and will come to you if your product can solve real-time problems. Learn to think beyond money.

What is it about Elon Musk that inspires you?

Biodiversity Hot Spots (Environment Notes)


  • Hot spots are the richest and most threatened reservoirs of plant and animal life of the earth. They have maximum number of endemic species.
  • 25 terrestrial hot spots have been identified for the conservation of biodiversity. They occupy 1.4% of the earth’s surface and 20% of worlds the human population lives in these areas. Western Ghats and Eastern Himalayas (Includes some parts of Indo-Burma or Purvanchal Hills) are two hot spots of India.
To qualify as a hot spot, a region must meet two strict criteria:
  1. Species endemism: the region must contain at least 1,500 species of vascular plants (> 0.5% of the world’s total) as endemics, and
  2. Degree of threat: the region has to have lost at least 70% of its original habitat.
  • Each biodiversity hot spot represents a remarkable universe of extraordinary floral and faunal endemism struggling to survive in rapidly shrinking ecosystems.
  • Over 50 percent of the world’s plant species and 42 percent of all terrestrial vertebrate species are endemic to the 34 biodiversity hot spots.
  • Some hot spots are much richer than others in terms of their numbers of endemics. Five key factors have been taken into consideration and those biodiversity hot spot that tops the list with respect to these five factors are considered as hottest hot spots.

Factors

  1. Endemic plants,
  2. Endemic vertebrates,
  3. Endemic plants/area ratio (species per 100km2),
  4. Endemic vertebrates/area ratio (species per 100km2) and
  5. Remaining primary vegetation as % of original extent.

Biodiversity Hotspots Across the World

The eight hottest hot spots in terms of the above five factors are:
  1. Madagascar
  2. Philippines
  3. Sundaland [South East Asia]
  4. Brazil’s Atlantic Forest
  5. Caribbean
  6. Indo-Burma
  7. Western Ghats and Sri Lanka
  8. Eastern Arc and Coastal Forests of Tanzania/Kenya
These eight ‘hottest hot spots’, appear at least three times in the top ten listings for each factor.
Biodiversity Hotspots Across the World

Indian Biodiversity Hot Spots

There are 3 biodiversity hot spots present in India. They are:
  1. The Eastern Himalayas [Arunachal Pradesh, Bhutan, Eastern Nepal]
  2. Indo-Burma and [Purvanchal Hills, Arakan Yoma, Eastern Bangladesh]
  3. The Western Ghats and Sri Lanka

Indo-Burma Region

  • The Indo-Burma region encompasses several countries.
  • It is spread out from Eastern Bangladesh to Malaysia and includes North-Eastern India south of Brahmaputra river, Myanmar, the southern part of China’s Yunnan province, Lao People’s Democratic Republic, Cambodia, Vietnam and Thailand.
  • The Indo-Burma region is spread over 2 million sq. km of tropical Asia.
  • Since this hotspot is spread over such a large area and across several major landforms, there is a wide diversity of climate and habitat patterns in this region.

Biodiversity of Indo-Burma Region

  • Much of this region has been deteriorating rapidly in the past few decades.
  • This region is home to several primate species such as monkeys, langurs and gibbons with populations numbering only in the hundreds.
  • Many of the species, especially some freshwater turtle species, are endemic.
  • Almost 1,300 bird species exist in this region including the threatened white-eared night-heron [Endangered], the grey-crowned crocias [Endangered], and the orange-necked partridge [Near Threatened].
  • It is estimated that there are about 13,500 plant species in this hotspot, with over half of them endemic. Ginger, for example, is native to this region.

The Eastern Himalayas

  • The Eastern Himalayas is the region encompassing Bhutan, northeastern India, and southern, central, and eastern Nepal.
  • The abrupt rise of the Himalayan Mountains from less than 500 meters to more than 8,000 meters results in a diversity of ecosystems that range from alluvial grasslands and subtropical broad leaf forests along the foothills to temperate broad leaf forests in the mid hills, mixed conifer and conifer forests in the higher hills, and alpine meadows above the tree line.

Biodiversity of the Eastern Himalayas

  • The Eastern Himalayan hotspot has nearly 163 globally threatened species (both flora and fauna) including the One-horned Rhinoceros [Vulnerable], the Wild Asian Water buffalo [Endangered].
  • There are an estimated 10,000 species of plants in the Himalayas, of which one-third are endemic and found nowhere else in the world.
  • A few threatened endemic bird species such as the Himalayan Quail, Cheer pheasant, Western tragopan are found here, along with some of Asia’s largest and most endangered birds such as the Himalayan vulture and White-bellied heron.
  • Mammals like the Golden langur, The Himalayan tahr, the pygmy hog, Lang-urs, Asiatic wild dogs, sloth bears, Gaurs, Muntjac, Sambar, Snow leopard, Black bear, Blue sheep, Takin, the Gangetic dolphin, wild water buffalo, swamp deer call the Himalayan ranged their home.

Western Ghats and Sri Lanka

  • Western Ghats, also known as the “Sahyadri Hills” encompasses the mountain forests in the southwestern parts of India and highlands of southwestern Sri Lanka.
  • The entire extent of hotspot was originally about 1,82,500 square kms, but due to tremendous population pressure, now only 12,445 square Km or 6.8% is in pristine condition.
  • The wide variation of rainfall patterns in the Western Ghats, coupled with the region’s complex geography, produces a great variety of vegetation types.
  • These include scrub forests in the low-lying rainshadow areas and the plains, deciduous and tropical rainforests up to about 1,500 meters, and a unique mosaic of montane forests and rolling grasslands above 1,500 meters.
  • In Sri Lanka diversity includes dry evergreen forests to dipterocarpus dominated rainforests to tropical montane cloud forest.
  • The important populations include Asian elephant, Niligiri tahr, Indian tigers, lion tailed macaque [All Endangered], Indian Giant squirrel [Least Concern], etc.

World Heritage Sites

  • World Heritage Sites means “Sites any of various areas or objects inscribed on the United Nations Educational, Scientific, and Cultural Organization (UNESCO) World Heritage List”.
  • The sites are designated as having outstanding universal value under the Convention concerning the Protection of the World Cultural and Natural Heritage.
  • This Convention, which was adopted by the UNESCO in 1972 (and enforced in 1975) provides a framework for international cooperation in preserving and protecting cultural treasures and natural areas throughout the world. The first list of World Heritage state was published in 1978.
  • The convention defines the kind of sites which can be considered for inscription of the World heritage list (ancient monuments, museums, biodiversity and geological heritage,), and sets out the duties of the State Parties in identifying potential sites and their role in protecting them.
“Natural heritage sites are restricted to those natural areas that
  • furnish outstanding examples of the Earth’s record of life or its geologic processes.
  • provide excellent examples of ongoing ecological and biological evolutionary processes.
  • contain natural phenomena that are rare, unique, superlative, or of outstanding beauty
or
  • furnish habitats or rare endangered animals or plants or are sites of exceptional biodiversity”.
  • There are ten criteria for cultural heritage and natural heritage.
  • Nominated sites must be of “outstanding universal value” and meet at least one of the ten criteria. The criteria are given below.

Criteria

  1. to represent a masterpiece of human creative genius;
  2. to exhibit an important interchange of human values, over a span of time or within a cultural area of the world;
  3. to bear a unique or at least exceptional testimony to a cultural tradition or to a civilization which is living or which has disappeared;
  4. to be an outstanding example of a type of building, architectural or technological ensemble or landscape which illustrates a significant stage(s) in human history;
  5. to be an outstanding example of a traditional human settlement, land-use, or sea-use,;
  6. to contain superlative natural phenomena or areas of exceptional natural beauty and aesthetic importance;
  7. to be outstanding examples representing major stages of Earth’s history;
  8. to contain the most important and significant natural habitats for insists conservation of biological diversity, including those containing threatened species of outstanding universal value from the point of view of science or conservation.
  • The UNESCO funds numerous efforts to preserve and restore World Heritage Sites in developing nations.
  • It maintains also a List of World Heritage Sites in developing nations.
  • It maintains also a List of World Heritage in danger facing threat of pollution and other natural hazards.
  • Sites subject to unusual levels of pollution, natural hazards, or other problems may be placed for restoration. Such designated sites facilitate promotion of tourism.

International Year of Biodiversity

  • The United Nations declared 2010 to be the International Year of Biodiversity. It is a celebration of life on earth and of the value of biodiversity for our lives.
Slogan
“Biodiversity is variety of life on earth
Biodiversity is life.
Biodiversity is our life”.

Wednesday, January 25, 2017

तुम्हें मैं क्या दिखता हूँ?

तुम्हें मैं क्या दिखता हूँ?

मुझे पागल जॉन एलिया पागल कर गया है
कुर्रतुलऐन हैदर की 'आग का दरिया' सीना जला गई 
जो बचा था
गुलज़ार पढ़ते-पढ़ते 
किसी और दुनिया में रहता हूँ.

सच कहो,
तुम्हें मैं क्या दिखता हूँ?

तुमसे पहले
मैं हारा था नहीं कुछ, कभी
तुम्हारे बाद
मैंने जीता नहीं कोई युद्ध
लेकिन मंज़र अभी कोई ख़त्म नहीं
रुके कोई जतन नहीं

मैं तड़पा हूँ
मैं भड़का हूँ
मैं खुद को शोला लगता हूँ.

सच कहो,
तुम्हें मैं क्या दिखता हूँ?

मैंने हमेशा इश्क़ किया
कैलकुलेशन कभी न किया
लेकिन अब हज़ार गणनाएं करने लगा हूँ
रिश्ते तौलता हूँ,
फिर निभाता हूँ.

मैं रिश्ते जानने लगा हूँ 
व्यक्ति पहचानने लगा हूँ
अहम सम्हालने लगा हूँ
मुखौटे हटाने लगा हूँ
मुखौटे ओढ़ने लगा हूँ

लोग कहते हैं,
मैं सम्हलने लगा हूँ.
सच कहो,
तुम्हें मैं क्या दिखने लगा हूँ?

मुझे सिखाया गया
सरहदों पर दुश्मन है
फैज़, फ़राज़ ने यह भरम भी जाने दिया
मुझे बताया 
जो कहा जाये सच नहीं होता
लिखे की सरहदें नहीं होती
और जुबां के परे वो ज़िंदा रहता है.

मैं लिखता हूँ,
तुम्हें मैं क्या दिखता हूँ?

Monday, January 23, 2017

अजब इक शोर सा बरपा है कहीं / जॉन एलिया

अजब इक शोर सा बरपा है कहीं
कोई खामोश हो गया है कहीं

है कुछ ऐसा के जैसे ये सब कुछ
अब से पहले भी हो चुका है कहीं

जो यहाँ से कहीं न जाता था
वो यहाँ से चला गया है कहीं

तुझ को क्या हो गया, के चीजों को
कहीं रखता है, ढूंढता है कहीं

तू मुझे ढूंढ़, मैं तुझे ढुंढू
कोई हम में से रह गया है कहीं

इस कमरे से हो के कोई विदा
इस कमरे में छुप गया है कहीं

Sunday, January 22, 2017

औरत / कैफ़ी आज़मी


उठ मेरी जान! मेरे साथ ही चलना है तुझे
कल्ब-ए-माहौल में लरज़ाँ शरर-ए-ज़ंग हैं आज
हौसले वक़्त के और ज़ीस्त के यक रंग हैं आज
आबगीनों में तपां वलवला-ए-संग हैं आज
हुस्न और इश्क हम आवाज़ व हमआहंग हैं आज
जिसमें जलता हूँ उसी आग में जलना है तुझे
उठ मेरी जान! मेरे साथ ही चलना है तुझे
ज़िन्दगी जहद में है सब्र के काबू में नहीं
नब्ज़-ए-हस्ती का लहू कांपते आँसू में नहीं
उड़ने खुलने में है नक़्हत ख़म-ए-गेसू में नहीं
ज़न्नत इक और है जो मर्द के पहलू में नहीं
उसकी आज़ाद रविश पर भी मचलना है तुझे
उठ मेरी जान! मेरे साथ ही चलना है तुझे
गोशे-गोशे में सुलगती है चिता तेरे लिये
फ़र्ज़ का भेस बदलती है क़ज़ा तेरे लिये
क़हर है तेरी हर इक नर्म अदा तेरे लिये
ज़हर ही ज़हर है दुनिया की हवा तेरे लिये
रुत बदल डाल अगर फूलना फलना है तुझे
उठ मेरी जान! मेरे साथ ही चलना है तुझे
क़द्र अब तक तिरी तारीख़ ने जानी ही नहीं
तुझ में शोले भी हैं बस अश्कफ़िशानी ही नहीं
तू हक़ीक़त भी है दिलचस्प कहानी ही नहीं
तेरी हस्ती भी है इक चीज़ जवानी ही नहीं
अपनी तारीख़ का उनवान बदलना है तुझे
उठ मेरी जान! मेरे साथ ही चलना है तुझे
तोड़ कर रस्म के बुत बन्द-ए-क़दामत से निकल
ज़ोफ़-ए-इशरत से निकल वहम-ए-नज़ाकत से निकल
नफ़स के खींचे हुये हल्क़ा-ए-अज़मत से निकल
क़ैद बन जाये मुहब्बत तो मुहब्बत से निकल
राह का ख़ार ही क्या गुल भी कुचलना है तुझे
उठ मेरी जान! मेरे साथ ही चलना है तुझे
तोड़ ये अज़्म शिकन दग़दग़ा-ए-पन्द भी तोड़
तेरी ख़ातिर है जो ज़ंजीर वह सौगंध भी तोड़
तौक़ यह भी है ज़मर्रूद का गुल बन्द भी तोड़
तोड़ पैमाना-ए-मरदान-ए-ख़िरदमन्द भी तोड़
बन के तूफ़ान छलकना है उबलना है तुझे
उठ मेरी जान! मेरे साथ ही चलना है तुझे
तू फ़लातून व अरस्तू है तू ज़ोहरा परवीन
तेरे क़ब्ज़े में ग़रदूँ तेरी ठोकर में ज़मीं
हाँ उठा जल्द उठा पा-ए-मुक़द्दर से ज़बीं
मैं भी रुकने का नहीं वक़्त भी रुकने का नहीं
लड़खड़ाएगी कहाँ तक कि संभलना है तुझे
उठ मेरी जान! मेरे साथ ही चलना है तुझे

Sunday, January 15, 2017

वे चाहते तो आराम की गुजार सकते थे, फिर वे जंगलों में मारे-मारे क्यों फिरते हैं? / अपूर्वानंद

नंदिनी सुंदर और अर्चना प्रसाद अध्यापक और विदुषी हैं. विनीत लेखक और शोधार्थी हैं. ये सब अपनी नींद और चैन गंवाकर बस्तर के जंगलों में क्यों भटकते हैं?

पत्रकार ने पूछा, ‘माओवादी हिंसा का सामना करने में मुक्तिबोध की कविताएं कैसे मदद करती हैं?’ सवाल इतना अटपटा है कि आप हैरान भी नहीं हो सकते. इसमें नासमझी थी, मूर्खता या दुस्साहस? या इनका घालमेल?
यह सवाल रायपुर में पूछा गया जोकि छत्तीसगढ़ की राजधानी है. यही वह राज्य है जिसके एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के कहने पर दिल्ली विश्वविद्यालय और जेएनयू के अध्यापकों, स्वतंत्र शोधार्थियों, सांस्कृतिक और राजनीतिक कार्यकर्ताओं पर बस्तर में एक व्यक्ति की हत्या की साजिश का मुकदमा न सिर्फ दायर किया गया है, बल्कि उस अधिकारी ने यह धमकी भी दी है कि अगर उन्होंने बस्तर में कदम रखा तो जनता पत्थरों से उन्हें मार डालेगी.
न भूलिए कि राज्य के पुलिस दल ने अभी कुछ वक्त पहले ही नंदिनी सुंदर, बेला भाटिया, हिमांशु कुमार और सोनी सोरी के पुतले जलाए थे. इस पर क्षोभ का ज्वार उठना चाहिए था, लेकिन बेचैनी का कोई बुलबुला भी नहीं उठा. हमने आज तक जनता को सत्ता से जुड़े लोगों का पुतला जलाते तो देखा है, लेकिन राज्य अपने नागरिकों का पुतला जलाए, आज़ाद हिन्दुस्तान में अपनी तरह की यह पहली घटना थी. लेकिन रायपुर तो रहने दीजिए, सुरक्षित और सुसंस्कृत दिल्ली में भी कोई जुबान न हिली.
छत्तीसगढ़ की पुलिस ने इससे समझा कि वह और आगे जा सकती है. नंदिनी सुन्दर, अर्चना प्रसाद, विनीत तिवारी, संजय पराते, मंगलराम कर्मा और मंजु कवासे पर कथित रूप से माओवादियों द्वारा शामनाथ बघेल नामक व्यक्ति की हत्या की साजिश के आरोप लगाते हुए उसने जो प्रथम सूचना रिपोर्ट दायर की, वह इस ढिठाई के बढ़ने का नतीजा है.
पत्रकार के प्रश्न में आप उस दिमाग को भी देख सकते हैं जिसका पूरी तरह से राजकीयीकरण और पुलिसीकरण हो चुका है. वह राज्य के तर्क को हवा और बारिश की तरह कुदरती सच मान चुका है: मुक्तिबोध की कविताओं को माओवादी बीमारी से मुक्त करने के सरकारी अभियान का हिस्सा क्यों नहीं बनाया जा सकता? और अगर वे छत्तीसगढ़ के इस सबसे ज़रूरी काम में मदद नहीं करतीं तो फिर उनकी सामाजिक उपयोगिता ही क्या है?
पत्रकार के सवाल से इस बात का अंदाज मिलता था कि अगर अगली बार आप रायपुर जाएं और आपको माओवाद विरोधी सरकारी अभियान में मुक्तिबोध की तस्वीर या उनकी कविता की पंक्तियां टंकी दिखें तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए. आखिरकार भारत सरकार ने स्वच्छता मिशन का ब्रांड अम्बैसेडर गांधी को तो बना ही दिया है!
मौक़ा गजानन माधव मुक्तिबोध की जन्मशती की शुरुआत का था. रायपुर, राजनादगांव, खैरागढ़ में एक साथ कई आयोजन हो रहे थे. मुक्तिबोध की भविष्योन्मुखी दृष्टि की अभ्यासवश चर्चा सबमें ही हुई होगी जिसके उदाहरण के तौर पर ‘अंधेरे में’ कविता को प्रायः उद्धृत किया जाता है. देश में सैनिक शासन लगने की आशंका, जिसे कई आलोचक फासिज्म कहते हैं, और उस समय सभ्य समाज की प्रतिक्रिया का वर्णन इन पंक्तियों में देखा गया है:
‘विचित्र प्रोशेसन, / गंभीर क्विक मार्च..../ कलाबत्तूवाली काली ज़रीदार ड्रेस पहने / चमकदार बैंड दल- / ..... / बैंड के लोगों के चेहरे / मिलते हैं मेरे देखे हुओं से / लगता है उनमें कई प्रतिष्ठित पत्रकार इसी नगर के.’
लेकिन ‘अंधेरे में’ कविता के आठवें अंश में गोली चलने और आग लगने और नगर से भयानक धुएं के उठने का दृश्य भी है. सड़कें सुनसान हैं और फौजी चौकसी है. ऐसी भयंकर स्थिति में शिक्षित समाज क्या कर रहा है?: ‘सब चुप, साहित्यिक चुप और कविजन निर्वाक / चिंतक, शिल्पकार, नर्तक चुप हैं; / उनके ख़याल से यह सब गप है, / मात्र किंवदंती.’
नंदिनी और उनके मित्रों के पुतले जलाने और इन सब पर मुकदमा दायर करने की खबर को अगर ज़्यादातर ने कहानी की तरह पढ़ा हो, तो ताज्जुब नहीं. लेकिन जैसा कवि आगे कहता है, ‘यह कथा नहीं है, यह सब सच है, हां भई!!’
जो लेखक के लिए एक काव्य युक्ति थी, वह फैंटसी छत्तीसगढ़ का यथार्थ बन गई है. क्योंकर यथार्थ गल्प बन गया?
नंदिनी सुंदर, अर्चना प्रसाद, विनीत तिवारी, संजय पराते, मंगलराम कर्मा और मंजु कवासे को फिलहाल नहीं छुआ जाएगा, ऐसा आश्वासन छत्तीसगढ़ सरकार ने उच्चतम न्यायालय को दिया. न्यायालय ने कहा कि अगर कोई नया तथ्य सामने आता है तो पुलिस कार्रवाई कर सकती है, लेकिन उसके पहले उसे इन सबको एक महीने का वक्त देना होगा.
जिनके नाम आप पढ़ रहे हैं वे एक किस्म के लोग नहीं हैं, न एक विचारधारा के. लेकिन वे साधारण लोग भी नहीं हैं. नंदिनी सुंदर और अर्चना प्रसाद अध्यापक और विदुषी हैं. विनीत लेखक और शोधार्थी तो हैं ही, सांस्कृतिक और राजनीतिक कार्यकर्ता हैं. संजय सीपीएम की छत्तीसगढ़ इकाई के सदस्य हैं. मंजु कवासे सीपीआई की नेता हैं और सुकमा जिले में घुपिड़ी की सरपंच हैं. दो को छोड़कर कोई आदिवासी भी नहीं है.
नंदिनी और अर्चना प्रसाद अंग्रेज़ी के अभिजात समुदाय की सदस्य भी हैं. भारत की अर्थ व्यवस्था की सिरमौर मानी जानेवाली इनफ़ोसिस कंपनी ने समाज शास्त्र के क्षेत्र में उनके विशिष्ट योगदान के लिए उन्हें पुरस्कृत किया है. फिर यह पूंजीपति वर्ग, जो उदारवादी नज़रिए पर ही टिका है, क्यों चुप है? और क्यों भारत का अभिजात वर्ग खामोश है?
क्यों मान लिया गया है कि राज्य की संस्थाओं का सच प्राथमिक होगा और बाकी सबको उसकी कसौटी या अपेक्षा पर खरा उतरना ही है?
मुक्तिबोध ने अपनी कविताओं में बार-बार ‘भावना के कर्तव्य’ और ज्ञान के दायित्व की मांग की है. ज्ञान से संवलित भावना कर्तव्यशील होने को बाध्य है. उस कर्तव्य की दिशा तय है. वह उस स्याह गुलाब और सांवली सेवंती के भाग्य से जुड़ा है, जो गृहहीन हैं और दिनभर के श्रम के बाद बरगद के वृक्ष के नीचे थककर गाढ़ी नींद सो रहे हैं.
नंदिनी का काम छत्तीसगढ़ के आदिवासियों पर है. अर्चना प्रसाद जंगलों के सवाल पर काम करती हैं. उनका जीवन शोध पत्र लिखते, किताबें छपाते और सेमिनारों में सहकर्मियों से मिलते-जुलते आराम से गुजर सकता है. वैसे ही विनीत का शोध अनुदान लेते और नीति के दस्तावेज तैयार करते. संजय, मंजु कवासे और मंगलराम कर्मा भी चुनाव-चुनाव खेलते जनतंत्र के दिन काट सकते हैं. फिर ये सब क्यों अपनी नींद भुलाकर और चैन गंवाकर, जिससे मुक्तिबोध का पात्र डरता है, बस्तर के जंगलों में भटकते हैं?
ये सभी मुक्तिबोध की कविता के उस वैज्ञानिक या कलाकार की तरह नहीं, जो ‘मुक्ति का इच्छुक तृषार्त अंतर’ है और मुक्ति के यत्नों के साथ तो निरंतर है, लेकिन है ‘कार्य क्षमता से वंचित व्यक्तित्व’ और ‘असंग अस्तित्व’. ये सब अपने विषय की नियति से जुड़ा महसूस करते हैं, उनके भले जीवन के संघर्ष में उनके साथ हैं. इसीलिए तो उनकी सत्ता से ठन जाती है. फिर वह कोई भी क्यों न हो! जो आदिवासियों को बेदखल कर एक विकसित राष्ट्र बनाने पर आमादा है. उससे भी बढ़कर जो सलवा जुडूम के नाम पर उनका सैन्यीकरण कर उनकी अस्मिता का अपहरण कर लेना चाहती है. और माओवादियों की सत्ता से भी जो आदिवासियों के आज़ाद रहने के हक का इस्तेमाल करने का स्वत्वाधिकार अपने पास रखना चाहते हैं.
मुक्तिबोध का पागल सवाल करता है: ‘बताओ तो किस-किस के लिए तुम दौड़ गये’. नंदिनी सुंदर, अर्चना प्रसाद, बेला भाटिया, मालिनी सुब्रमण्यम, ईशा खंडेलवाल, मनीष गुंजाम, हिमांशु कुमार, संजय पराते जैसे लोग खुद आदिवासी नहीं, लेकिन ये ही तो मुक्तिबोधीय मनुष्य हैं, अपनी ज्ञानात्मक संवेदना और संवेदनात्मक ज्ञान से प्रेरित, जिनकी आत्मा दूर किसी फटे हुए मन की जेब में जा गिरती है. क्या इस रिश्ते के अधिकार की रक्षा पर बात किए बिना मुक्तिबोध का नाम लेने का अधिकार हमें है?

हॉलीवुड अभिनेत्री मेरिल स्ट्रीप का यह वक्तव्य समूची दुनिया के लिए इतना महत्वपूर्ण क्यों है? / अपूर्वानंद

अक्सर भारतीय संस्कृति का गुणगान करते हुए उसकी पाश्चात्य संस्कृति से तुलना की जाती है और पाश्चात्य संस्कृति को अपसंस्कृति का पर्याय बताया जाता है. अमरीकी संस्कृति को भी पाश्चात्य संस्कृति का ही अंग माना जाता है. लेकिन पिछले दिनों एक घटना ऐसी हुई है जो इस सामान्य धारणा पर पुनर्विचार के लिए विवश करती हैं.
संस्कृति के साथ कुछ शब्द जुड़े हुए हैं. उनमें एक है शिष्टता और दूसरा शालीनता. खुद से अलग या भिन्न का सम्मान और उसे ठेस न पहुंचाना इसमें शामिल है. दूसरों के प्रति सद्भाव को इनके साथ जोड़ लिया जाना चाहिए. इसके साथ ही दूसरों की ज़रूरत का खयाल या उसकी चिंता सुसंस्कृत व्यक्ति का गुण माना जाता है.
वह व्यक्ति जो अपने ग्लास में पानी नहीं छोड़ता या अपनी प्लेट में खाना, उनके मुकाबले अधिक सुसंस्कृत है जो इन दोनों की लापरवाह फिजूलखर्ची करते हैं. जाहिर है, इसमें सावधानी की और निरंतर सचेत रहने की आवश्यकता होती है. यानी आप खुद पर लगातार नज़र रखते हैं.
दूसरे से हुई गलती को नज़रअंदाज करना और उसे दुरुस्त कर देना लेकिन इस तरह कि उसे बुरा न लगे, यह स्वभाव कठिन है और अभ्यास करने से ही आ सकता है, लेकिन है वांछनीय अगर हम परिष्कृति के आकांक्षी हैं.
दूसरे को हीन न दिखाना और किसी भी तरह उसका अपमान न करना भी सुसंस्कृति का ही अंग है. इससे एक दर्जा आगे वे लोग हैं जो दूसरों का अपमान होते देख खामोश नहीं रहते. वे निश्चय ही बाकी के मुकाबले कहीं अधिक सुसंस्कृत हैं जो अन्याय देखकर मुंह नहीं मोड़ते और उससे संघर्ष को अपना दायित्व मानते हैं.
संस्कृत व्यक्ति वह निश्चय ही है जो, काव्य शास्त्र और कला-विनोद में प्रवीण है लेकिन उतना होना पर्याप्त नहीं है. चाहें तो कह सकते हैं कि काव्य और कला उन गुणों की शिक्षा देती हैं जिनकी चर्चा पहले की गई है. लेकिन हम यह भी जानते हैं यह रिश्ता इतना सीधा नहीं है.
हॉलीवुड की मशहूर अभिनेत्री मेरील स्ट्रीप ने पिछले इतवार को गोल्डन ग्लोब्स पुरस्कार समारोह में फिल्मों में अपने काम, यानी अभिनय के लिए पुरस्कार ग्रहण करते समय लगभग पांच मिनट का जो वक्तव्य दिया, वह इसी वजह से सामाजिक और राजनीतिक व्यवहार में शालीनता की बहाली की एक शानदार अपील बन गया है. वह भी ऐसी जिसे सुनकर सिर्फ़ अमरीका के नहीं, पूरी दुनिया के लोग उसमें अपने लिए भी कुछ सुन पा रहे हैं.
एक गलत ढंग से मान लिया गया है कि अभिनय या फिल्म कला की अपील विचार करने लायक नहीं होती है और इसलिए फ़िल्मी दुनिया से जुड़े लोगों को अपने काम से काम रखना चाहिए
संस्कृति का एक गुण या लक्षण यह भी है - सार्वकालिकता और सार्वभौमिकता. मेरील स्ट्रीप अंग्रेज़ी में बोल रही थीं और अमरीकी संदर्भ में बात कर रही थीं लेकिन वे जिस मानवीय आकांक्षा को अभिव्यक्त कर रही थीं, वह भाषा और राष्ट्रीयता की सीमा को लांघ जाती है और सार्वदेशिक बन जाती है.
गोल्डन ग्लोब्स पुरस्कार की आकांक्षा प्रत्येक सिनेकर्मी को होती है. यह पुरस्कार हॉलीवुड फौरेन प्रेस की और से दिया जाता है. माना जाता है सिनेमा से जुड़े लोग अपने प्रशंसकों को नाराज़ नहीं करना चाहते. एक गलत ढंग से मान लिया गया है कि अभिनय या फिल्म कला की अपील विचारातीत (विचार के अयोग्य) होती है और इसलिए फ़िल्मी दुनिया से जुड़े लोगों को अपने काम से काम रखना चाहिए. इसलिए ऐसे मौकों पर उन्हें अपने प्रशंसकों, सहयोगियों का शुक्रिया अदा करना चाहिए, और बस!
सामाजिक मुद्दों पर उनका हस्तक्षेप तो फिर भी स्वीकार्य है, जैसे साक्षरता के लिए या एड्स अथवा कैंसर के विरुद्ध अभियान में हिस्सेदारी, लेकिन जैसे ही वे उस क्षेत्र में प्रवेश करते हैं जिसे राजनीतिक कहा जाता है, अक्सर उन्हें मुंह बंद रखने की सलाह दी जाती है. मेरील स्ट्रीप ने पिछले इतवार की रात जो कहा उसे संकीर्ण रूप से ही राजनीतिक कहा जा सकता है, वह एक व्यापक अर्थ में सामाजिक व्यवहार में परिष्कार की दुहाई थी.
मेरील ने अपनी बात शुरू करते हुए कहा, ‘इस हॉल में अमरीकी समाज के सबसे ज्यादा बदमान तबके के लोग बैठे हैं: हॉलीवुड, विदेशी और प्रेस.’ आगे वे बोलीं,
‘लेकिन हम हैं कौन? और हॉलीवुड ही क्या है, आखिरकार? हॉलीवुड अलग-अलग जगहों का जमावड़ा है...हॉलीवुड बाहरी लोगों और विदेशियों से पटा हुआ है और अगर आप उन्हें निकाल दें तो फुटबाल और मार्शल आर्ट्स के अलावा यहां और कुछ देखने को बचेगा नहीं, जो वास्तविक रूप में कला नहीं है.
मेरील स्ट्रीप डोनाल्ड ट्रंप के उस भाषण के हवाले से अपनी तकलीफ जाहिर कर रही थीं जिसमें डेली न्यूज़ के रिपोर्टर सर्ज कोवाल्स्की के लाचार हाथों की नक़ल उतारते हुए उनकी खिल्ली उड़ाई गई थी
कलाकार का एकमात्र काम उन लोगों के जीवन में प्रवेश करना है जो हमसे अलग हैं और आपको वह महसूस कराना है जो वे महसूस करते हैं और ऐसी शानदार अदाकारी के काफी उदाहरण थे इस साल,...लेकिन एक अभिनय ऐसा था जिसने मुझे स्तब्ध कर दिया, वह मेरे दिल में धंस गया, लकिन इसलिए नहीं कि वह अच्छा था. उसमें कुछ भी अच्छा नहीं था. लेकिन वह असरदार था और उसने अपना काम किया: उसने अपने दर्शकों को हंसाया...यह वह क्षण था जब इस देश के सबसे सम्मानित आसन पर बैठने जा रहे व्यक्ति ने एक विकलांग रिपोर्टर की नक़ल उतारी, जिससे वह पद और प्रतिष्ठा और मुकाबला करने की क्षमता में कहीं आगे है.
इसने मेरा दिल तोड़ दिया और मैं अभी भी इसे अपने ख्याल से निकाल नहीं पा रही क्योंकि यह सिनेमा में नहीं असली ज़िंदगी में किया गया था. दूसरे को अपमानित करने की इच्छा जब सार्वजनिक जीवन के किसी व्यक्ति के माध्यम से व्यक्त होती है तो वह हर किसी की ज़िंदगी में चली जाती है क्योंकि वह सबको ऐसा करने की इजाजत या छूट देती है. अपमान का जवाब अपमान से मिलता है, हिंसा, हिंसा को जन्म देती है. जब ताकतवर लोग अपनी जगह का इस्तेमाल दूसरों पर धौंस जमाने के लिए करते हैं तो हम सबकी हार होती है.’
मेरील स्ट्रीप ने अपने संक्षिप्त वक्तव्य में कहीं अमरीका के भावी राष्ट्रपति का नाम नहीं लिया लेकिन वे डोनाल्ड ट्रंप के उस भाषण के हवाले से अपनी तकलीफ जाहिर कर रही थीं जिसमें डेली न्यूज़ के रिपोर्टर सर्ज कोवाल्स्की के लाचार हाथों की नक़ल उतारते हुए उनकी खिल्ली उड़ाई गई थी.
सार्वजनिक आचरण में फूहड़पन के हम आदी हैं और अकसर वह एक विकृत आनंद भी देता है. किसी की शारीरिक अक्षमता या उसके रूप-रंग, मोटापे, उच्चारण के सहारे किसी को नीचा दिखाना, या उसका मज़ाक बनाना हिंदी फिल्मों में आम है. लेकिन वह एक हिंसक इच्छा के साथ भी जुड़ा है - जिसकी खिल्ली उड़ाई जा रही है, उसे इससे क्षति पहुंचेगी, यह ख्याल ही खुशी देता है. मेरील स्ट्रीप ने इस हिंसक प्रवृत्ति का विरोध किया.
यह हिंसक चतुराई पिछले कुछ वर्षों में हमारे देश में बढ़ती जा रही है और उसे सार्वजनिक स्वीकृति भी मिलती जाती है.
सार्वजनिक आचार में परिष्कार का यह आग्रह अमरीका से हम तक पहुंचे तो उसे सुनने में हर्ज नहीं. जैसे मेरील के मन में ट्रंप की हिंसक अदाकारी धंस गई, हममें से कुछ लोगों के मन में आज भारत के सबसे ताकतवर शख्स के हिंसक अभिनय के कई उदाहरणों के पंजे धंसे हुए हो सकते हैं. कुछ बरस पहले शशि थरूर और उनकी प्रेमिका सुनंदा के बीच रिश्ते का जिक्र करते हुए कहा गया कि शशि थरूर की प्रेमिका पचपन करोड़ की है तो हममें से कम लोगों ने ही उसकी आलोचना की होगी, बल्कि उस वक्तव्य ने हमारे भीतर की हिंसक प्रवृत्ति को सहलाकर उत्तेजित किया.
सोनिया गांधी या चुनाव आयुक्त जेम्स लिंग्दोह के पूरे नामों का धीरे-धीरे पूरा उच्चारण करके उनके हिंदूतर होने की ओर एक हिंसक इशारे पर भी हम आहत नहीं हुए. जैसे अपने विरोधी के साथ यह व्यवहार तो उसे चित्त करने का एक चतुर दांव हो!
यह हिंसक चतुराई पिछले कुछ वर्षों में हमारे देश में बढ़ती जा रही है और उसे सार्वजनिक स्वीकृति भी मिलती जाती है. हमारे अभिनेताओं में जो सबसे ताकतवर हैं और हमारे खिलाड़ियों में भी, जो इस देश के सबसे संपन्न लोगों में भी हैं, इस हिंसा को नाम देने की हिम्मत नहीं है, उसे चुनौती देने की बात तो छोड़ दीजिए.
समाज धीरे-धीरे इस तरह की हिंसा का आदी होता जाता है. यह सब कुछ देखकर दिल सचमच टूटता है. लेकिन जैसा मेरील स्ट्रीप ने अपने वक्तव्य के अंत में कहा, अपनी एक गुजर चुकी मित्र प्रिंसेस लिया को याद करते हुए, जिन्होंने कहा था, ‘अपने टूटे हुए दिल को कला में बदल दो!’
कला आखिरकार सचाई का बयान या खोज है, और जैसा चंगेज़ आइत्मातोव के नाटक ‘फूज़ियामा’ की एक पात्र कहती है, सचाई ही सबसे बड़ा शिष्टाचार है. यह तो लेकिन हमें पता है कि इस शिष्टाचार का अभ्यास करना इतना सरल नहीं है.

क्या प्रधानमंत्री संस्थाओं सवालों से ऊपर हैं? / रवीश कुमार


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केंद्रीय सूचना आयोग आख़िरी मुक़ाम है जहाँ आप सूचना के अधिकार के तहत इंसाफ़ पाते हैं। इसी में काम करते हैं सूचना आयुक्त एम श्रीधर आचार्यलु। इन्होंने दिल्ली विश्विद्यालय को आदेश दिया कि 1978 में स्नातक करने वाले सभी छात्रों के रिकार्ड की छानबीन की जाए। इसी साल प्रधानमंत्री मोदी ने यहाँ से स्नातक किया है,जिसकी सत्यता को लेकर लंबे समय से विवाद चल रहा है। इस आदेश के कारण आचार्यलु से मानव संसाधन मंत्रालयों से जुड़ी सूचना की मांग पर फैसले का अधिकार ले लिया गया है। जिस आयोग का काम आपके अधिकारों का संरक्षण करना है,उसके ही आयुक्त को अपना काम करने की सज़ा दी जाती है।क्या सही दस्तावेज़ रखकर हमेशा के लिए इस विवाद को ख़त्म नहीं कर देना चाहिए। आपने डिग्री ली है तो डरने की क्या बात।नहीं भी ली हो तो कोई बात नहीं। सवाल करने वाला यही जानना चाहता है कि आपने डिग्री ली या नहीं। प्रधानमंत्री बनने के लिए डिग्री नहीं चाहिए मगर सवाल उठा है तो विश्वविद्यालय प्रश्नकर्ता को तो दिखा ही सकता है। आयोग को भी दिखा सकता है ताकि शक की गुज़ाइश न रहे।यह ख़बर सब जगह छपी है मगर सब जगह चुप्पी है।
क्या प्रधानमंत्री कानून और तथ्यों से ऊपर हैं? क्या वही अपने आप में तथ्य हैं,सत्य हैं।तमाम संस्थाएँ अब ये बात जनता को भी अपनी इन हरकतों से बताने लगी हैं।आज के इंडियन एक्सप्रेस में ऋतु सरीन की ख़बर छपी है।इसे पढ़ियेगा और खुले दिमाग़ से सोचियेगा।सहारा बिड़ला पेपर्स विवाद के बारे में आप जानते ही होंगे।इन पेपर्स में कई नेताओं के नाम थे मगर इसे प्रधानमंत्री के ख़िलाफ़ मुद्दा बनाया गया क्योंकि उनके भी नाम थे।सुप्रीम कोर्ट ने इन काग़ज़ात की जाँच कराने से इंकार कर दिया है।
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सुप्रीम कोर्ट से पहले इसी मामले की सुनवाई आयकर विवादों के निपटारे के लिए ट्राइब्यूनल में चल रही थी। इसे इंकम टैक्स सेटलमेंट कमिशन (ITSC) कहते हैं । इस संस्था को नब्बे दिनों के भीतर विवादों का निपटाना होता है। पाँच साल में इस संस्था ने एक भी केस नब्बे दिनों के भीतर नहीं निपटाया है। आयोग ने इस मामले की सुनवाई करते हुए आयकर विभाग से किसी जांच की मांग नहीं की। वरिष्ठ पत्रकार ऋतु सरीन को आयोग ने लिखित रूप से जवाब दिया है कि सहारा पेपर्स मामले की सुनवाई सबसे जल्दी पूरी गई है। पाँच साल में एक भी मामले की इतनी जल्दी सुनवाई नहीं हुई है। पाँच सितंबर 2016 को यह मामला आया और 11 नवंबर को फैसला। आयोग ने भी बिना काग़ज़ात की मांग किये फैसला दे दिया। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मामले में जाँच की ज़रूरत नहीं समझी।
प्रधानमंत्री शुचिता और पारदर्शिता की बात करते हैं । लोग उनकी बातों पर यक़ीन भी करते हैं। क्या लोगों के विश्वास को बनाए रखने के लिए प्रधानमंत्री को ख़ुद इन आदेशों पर नहीं बोलना चाहिए। हो सकता है कि ये आरोप बेबुनियाद हो,फालतू हों मगर दूसरों का इम्तहान लेने वाले प्रधानमंत्री को कहना चाहिए था कि जल्दी जाँच कीजिये और सारे दस्तावेज़ पब्लिक को दे दीजिये। मैं किसी बात से ऊपर नहीं हूँ। लगता है उनकी सारी बातें विरोधियों के लिए हैं। उनके समर्थकों को भी इन सब बातों से फर्क नहीं पड़ता।
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कटनी,मध्यप्रदेश के एसपी गौरव तिवारी के तबादले की ख़बर जब शहर में पहुँची तो गौरव तिवारी के समर्थन में लोग सड़कों पर उतर आए।सोशल मीडिया पर समर्थन जताने लगे।गौरव ने कटनी में पाँच सौ करोड़ के हवाला नेटवर्क का भांडाभोड़ किया है। जाँच चल रही थी कि तबादला हो गया। कांग्रेस विधायक का आरोप है कि बीजेपी के मंत्री का नाम है।ऐसे मामलों की ठीक से जाँच हो जाए तो क्या पता कांग्रेस नेताओं के भी नाम आ जाएँ। सलाम कटनी की जनता का जिसने एक ईमानदार और साहसी अधिकारी को अकेला नहीं छोड़ा। मंगलवार को कटनी के लोगों ने नगर बंद का आयोजन कर न सिर्फ सरकार को चुनौती दी बल्कि गौरव जैसे अधिकारियों को संदेश दिया कि उनकी मेहनत पानी में नहीं गई है। जनता ऐसे लोगों का समर्थन करती है। महानगरों से अच्छी है कटनी की जनता जिसने एक अफसर के लिए वक्त निकाला। अब आपको पाँच सौ करोड़ के हवाला नेटवर्क के बारे में कुछ नहीं पता चलेगा। आप अभिशप्त हैं नेताओं की बातों पर ही यक़ीन करने के लिए कि भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ वही लड़ रहे हैं। बाकी सब लड़ने को क़ाबिल ही नहीं।
क्या भ्रष्टाचार से लड़ने का दावा करने वाले नेताओं के लिए, नैतिकता के लिए ही सही,यह ज़रूरी नहीं कि आईपीएस गौरव तिवारी के समर्थन में बोलें। हर बात पर प्रधानमंत्री का बोलना ज़रूरी नहीं लेकिन ऐसे मौकों पर बोल कर भ्रष्टाचार के नेटवर्क से लड़ने वाले जवानों और अफ़सरों का हौसला नहीं बढ़ा सकते थे। सब कुछ सत्ता पर बैठे लोगों के हिसाब से हो रहा है, उनका समर्थन करने वाले लोगों के लिए जो भी हो रहा है सही हो रहा है।

मेरिल स्ट्रीप का भाषण / रवीश कुमार


गोल्डेन ग्लोब्स में सेसिल बी डिमेले सम्मान को स्वीकारते हुए प्रसिद्ध अभिनेत्री मेरिल स्ट्रीप का भाषण। इसके बाद इस भाषण की प्रतिक्रिया में लिखा दो लेख पढ़ सकते हैं। अपूर्वानंद ने Satyagrah.scroll.in पर हिन्दी में लिखा है और प्रकाश के रे ने Bargad.org पर मेरिल को अंग्रेज़ी में एक पत्र लिखा है।
आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद. धन्यवाद. कृपया बैठ जाएं. कृपया बैठ जाएं. धन्यवाद. मैं आप सभी को बहुत प्यार करती हैं. आपको मुझे माफ करना होगा. मैंने इस सप्ताहांत चिल्लाने और अफसोस जाहिर करने में अपनी आवाज खो दी है. और इस साल के शुरू में कभी मैंने अपना दिमाग भी खो दिया है. इसलिए मुझे पढ़ कर बोलना होगा. शुक्रिया, हॉलीवुड विदेशी प्रेस. ह्यूग लौरी की बात से शुरू करती हूं. आप और इस कक्ष में मौजूद हम सभी, सचमुच, अभी अमेरिकी समाज के सबसे तिरस्कृत लोग हैं. इस बारे में सोचें. हॉलीवुड, विदेशी, और प्रेस. लेकिन हमलोग हैं कौन? और, आप जानते ही हैं कि हॉलीवुड क्या है. दूसरी जगहों से आये हुए लोगों का एक समूह.
मैं न्यू जर्सी में पली-बढ़ी और वहां के पब्लिक स्कूलों में मेरी रचना हुई. वायोला डेविस साउथ कैरोलाइना में बटाई पर खेती करनेवाले घर में पैदा हुई थीं, और वे लॉन्ग आइलैंड के सेंट्रल फाल्स में बड़ी हुईं. सारा पॉलसन को अकेली मां ने ब्रूकलिन में पाला-पोसा. ओहायो की सारा जेसिका पार्कर सात-आठ संतानों में एक थीं. एमी एडम्स इटली में पैदा हुई थीं. नताली पोर्टमैन जेरूसलम में जन्मी थीं. उनके जन्म प्रमाण पत्र कहां हैं? और सुंदर रुथ नेग्गा इथियोपिया में पैदा हुईं और शायद उनका लालन-पालन आयरलैंड में हुआ. और इस पुरस्कार समारोह में उन्हें वर्जीनिया की एक छोटे शहर की लड़की की भूमिका के लिए नामित किया गया है. सभी भले लोगों की तरह ही रेयान गॉस्लिंग कनाडा से हैं. और देव पटेल केन्या में पैदा हुए, लंदन में पले-बढ़े, और इस समारोह में तस्मानिया में बड़े हुए एक भारतीय की भूमिका निभाने के लिए मौजूद हैं.
हॉलीवुड बाहरी और विदेशी लोगों से भरा पड़ा है. अगर आप उन सभी को बाहर फेंक देंगे, तो आपके पास फुटबॉल और मार्शल आर्ट्स (जिनमें कोई कला नहीं है) के खेल देखने के अलावा कुछ और नहीं बचेगा. उन्होंने यह कहने के लिए मुझे तीन सेकेंड का समय दिया था. अपने से भिन्न लोगों के जीवन में प्रवेश करना और आप तक उसके अनुभव को पहुंचाना ही किसी अभिनेता या अभिनेत्री का एकमात्र काम है. और इस साल के अनेक, ढेर सारे अभिनेताओ-अभिनेत्रियों ने अपने प्रभावपूर्ण और गंभीर काम से यही किया है.
इस साल एक ऐसा अभिनय प्रदर्शन रहा है जिसने मुझे हैरान कर दिया. इसके कांटे मेरे दिल में धंस गये. ऐसा इसलिए नहीं कि यह अच्छा था. उसमें कुछ भी अच्छा नहीं था. लेकिन यह असरदार था और इसने अपना काम किया. इसने अपने लक्षित दर्शकों को हंसाने और अपनी दांत दिखाने का उद्देश्य पूरा किया. यह वह क्षण था जब हमारे देश के सबसे सम्मानित पद पर बैठने के आकांक्षी एक व्यक्ति ने एक विकलांग संवाददाता की नकल की जिससे उस व्यक्ति के धन, संपदा, ताकत और उलटवार करने की क्षमता से कोई तुलना नहीं की जा सकती है. जब मैंने यह देखा, तो मेरा दिल टूट गया. मैं अब भी इसे अपने दिमाग से हटा नहीं पा रही हूं क्योंकि ऐसा किसी फिल्म में नहीं हुआ था. यह वास्तविक जीवन था.
और, किसी सार्वजनिक मंच से, किसी ताकतवर द्वारा किसी को अपमानित करने की यह भावना सभी के जीवन पर असर डालती है क्योंकि इससे दूसरों को भी ऐसा ही करने की एक तरह अनुमति मिल जाती है. अनादर से अनादर पैदा होता है. हिंसा हिंसा को भड़काती है. जब ताकतवर अपनी स्थिति का इस्तेमाल दूसरों को दबाने के लिए करता है, तब हम सभी पराजित होते हैं.
इस बात से मैं प्रेस पर आती हूं. हमें एक सिद्धांतवादी प्रेस की जरूरत होती है जो सत्ता को जवाबदेह बना सके, जो उनकी हर गलती पर अंगुली उठा सके. इसी वजह से हमारे संस्थापकों ने प्रेस और उसकी आजादी को हमारे संविधान में उल्लिखित किया है. इसलिए मैं अपनी पहुंच के लिए प्रसिद्ध हॉलीवुड विदेशी प्रेस और हमारे तबके के सभी से यह निवेदन करती हूं कि पत्रकारों की सुरक्षा के लिए बनी समिति को समर्थन देने के लिए आगे आयें. क्योंकि हमें आगे बढ़ने के लिए उनके साथ की जरूरत है. और, उन्हें सच की सुरक्षा के लिए हमारी जरूरत है.
एक बात और. एक दफा मैं फिल्म सेट पर खड़ी शिकायत कर रही थी कि क्या हम खाने के समय पर भी काम करते रहेंगे या घंटों शूटिंग चलती रहेगी आदि आदि. इस पर टॉमी ली जोंस ने मुझसे कहा, मेरिल, क्या यह बड़ी बात नहीं है कि हम कलाकार हैं. हां, यह बड़ी बात है. और हमें एक-दूसरे को इस हैसियत तथा सहानुभूति के उत्तरदायित्व की याद दिलाते रहना होगा. हम सभी को उन उपलब्धियों पर गर्व होगा जिन्हें आज हॉलीवुड पुरस्कृत कर रहा है.
जैसा कि मेरी प्यारी दोस्त दिवंगत प्रिंसेस लीआ ने एक बार मुझसे कहा था, अपने टूटे हुए दिल को कला में बदल दो. धन्यवाद.