पिछले पांच दिनों से हम भाईसाहब की मम्मा से कम से कम बात करा रहे थे, क्यूंकि बात करते ही ये रोना शुरू कर देते थे. लेकिन अगले दिन ही भाईसाहब मम्मा से मिल लेंगे इसलिए आज वीडियोकॉल पर इनकी बात मम्मा से करवाई जाती है.
मम्मा पूछती है: "बेटा याद आती है?" भाईसाहब सर मटकाकर 'हाँ' में जवाब दे देते हैं.
"बेटा मैं नहीं हूँ... मैं कल आ जाउंगी." मम्मा कहती है.
भाईसाहब: "आप नहीं हो इसलिए शशि दीदी आ दई है, ईसान भैया आ दया है."
नन्ही सी जान और इतनी समझ!! मम्मा नहीं हैं, इसलिए भैया दीदी आ गए हैं, इन्हें ये पता है! पापा का इन्हें बहुत जोर से प्यार करने का मन होता है. पापा इन्हें उठाकर कर जोर से भींच लेते हैं. मम्मा अपनी कोरों के आंसू पोंछते हुए फ़ोन से "बाय... बाय" बोल रही है. पापा की आँखें भी भींग गई हैं.
परिस्तिथियाँ सबको अधिक समझदार बना देती हैं.... यहाँ तक की दो साल की नन्ही सी जान को भी!
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