Friday, December 8, 2017

इश्क़ डरता बहुत है


इश्क़ डरता बहुत है
छुपा छुपा रहता बहुत है
भीड़ में निकले तो हाथ थाम लेता है
किसी और से मिल लो तो
सवाल करता बहुत है
इश्क़ डरता बहुत है.

कभी कभी खुद से अजनबी सा लगता हूं
तुम्हारे आभास को धकेलता हूं.
अंगड़ाई लूं, हाथ-पैर पसारूं,
जगह तो दो.
यहां दम घुटता बहुत है
इश्क़ डरता बहुत है.

बातों पे पहरे
सांसों पे पहरे
सपनों में उम्मीदें
उम्मीदों में भी तुम ठहरे.

ज़रा ठहराव तो दो
सम भाव तो दो
माना इश्क़ गहरा बहुत है
पर ये चुभता बहुत है,
इश्क़ डरता बहुत है.

ये सारा Secret है
इसमें ढेर सारे Phone Calls हैं
ढेर सारी Video Chats हैं
पर कितना बिखराव है!

ये मचलता बहुत है
छूता कम, मसलता बहुत है
चलता कम, सम्हलता बहुत है
विश्वास है, पर डिगता बहुत है,
डरता बहुत है.

यहां इश्क़ रहता बहुत है???

घुटता है, चुभता है, बिखरता है, डिगता है,
इश्क़ डरता बहुत है.

इश्क़ इश्क़ कम,
पहरेदार अधिक है.
क्योंकि
इश्क़ डरता बहुत है
 डरता बहुत है.