Friday, November 22, 2013

Chashme Wali Ladki Ke Liye... :)



            अजीब लगता है जब एक चलताऊ कविता पे तालियां पड़ती है तो.... शायद लोगों को अर्थपूर्ण कविताओं से ज्यादा संता-बनता जोक्स कहना-सुनना ज्यादा अच्छे लगते हैं. लेकिन गलती इनकी भी नहीं, क्यूंकि आधा देश भरपेट रोटी कि जद्दोजहद में डूबा तो आधा देश को रोटी कि कीमत क्षोभ और तनाव से चुकानी पड़ती है. लोग घर आ दुनियादारी के बारे में सोचना नहीं, बस दो पल मुस्कुराना चाहते है. फ़िलहाल, एक चलताऊ कविता-

मेरी आँखों को उसकी आँखों से
मिलने के अरमान बहुत है, मगर...
कमबख्त कभी मेरा चश्मा बीच आ जाता है,
कभी उसका चश्मा बीच आ जाता है.

हमने सोचा,
ऑंखें चार करते हैं,
अपने-अपने चश्मे उतार देते हैं.

लेकिन फिर,
न उसे कुछ नज़र आता है,
न मुझे कुछ नज़र आता है. ~V!Vs 

Thursday, November 14, 2013

तीन रातों का लेखा-जोखा


इतिहास


एक पत्थर पे रख परीकथाएं
लगा दूंगा आग,
तबाह कर दूंगा इतिहास को ताकती
तमाम किताबें,
तमाम किवदंतियां
और हौसले पस्त करने वाली सारी बातें.

मैं रचूंगा इतिहास, 
मैं रचूंगा इतिहास
जो मुझसे शुरू होता हो,
जो मेरी कहानी हो.
आम-आदमी की कहानी
जिसका शाहों के रचे इतिहास में
कोई जिक्र नहीं मिलता. 


---**---

इश्क़ की शुरुआत अधिकार से नहीं होती


गीता की कसम
मैंने 'सीता' को नहीं चाहा
तुम्हारे शहर में.
जहां 'सीता' को चाहा
वो शहर कोई और था.
मैं था, तन्हाई थी,
कुछ शहर ही आवारा था, यौवना छाई थी.

हाँ, 'गीता' को ज़रूर चाहा
हमारे शहर में.
क्यूंकि 'गीता' में 'सीता' दिखी थी
और ये शहर भी आवारा लगने लगा था.

...क्यूंकि तुममें मुझे
चाहत से ज्यादा अधिकार दिखा था.
इश्क़ की शुरुआत अधिकार से नहीं होती,
अंत होता है.


---***--

मैं लम्बी कवितायेँ नहीं लिखता, क्यूंकि मैं खुद ही लम्बी कवितायेँ पढ़-पढ़ते ऊब जाता हूँ.#Confession फ़िलहाल लिखते-लिखते लम्बी हो गई एक कविता आप तक पहुंचा रहा हूँ...

मोहब्बत


एक पत्थर पे 
स्वप्नदर्शी चाँद रख गया 
अपनी ख़ामोशी.

नदी का बहाओ बहुत तेज था
फिर भी 
नदी के किनारे से 
तुम तक पहुचने का रास्ता ढूंढ़ ही लिया मैंने.

लोग कहते हैं
वो नदी वक़्त थी.
खामोश चाँद तुम
और पत्थर मैं.

कलह करते लोग
ढूंढते रहे कलह,
उन्हें मिलती रही कलह.
फिर मुझसे कहा
उन्हें मोहब्बत नहीं दिखी कहीं.

तुमने मुझमे सम्भावनाएं देखीं,
खुद में ज़रूरतें.
फिर की मोहब्बत.
ढूंढा मुझे,
काश! ढूंढते मुझमें मोहब्बत.
एक बार भी तुमने ने मोहब्बत नहीं ढूंढी.

वक़्त न बहता नदी कि तरह
न इस तरफ तुम रह जाते
दूसरे किनारे मैं,
और बीच नदी में
न बह जाती ये सम्भावनाएं ढूंढती मोहब्बत. 



Pic: A Chinese Art Exhibition 

Wednesday, November 13, 2013

रूह का क़त्ल

तुम्हारे घर में रखे है
मेरे दिन के क़त्ल के सामान
तुम खुद हो
रात के क़त्ल की वजह.

यादों की मरहम
अतीत के घाव उघाड़ती है
दिन पसीने में तर
जिस्म में बुनता हूँ
रूह की तृप्ति का सामान.
उखड़-उखड़ पत्थर होते दिनों में
पथराती आँखें,
तुम्हारी हक़ीक़त झुठलाते-झुठलाते
खुद ही झूठा हो गया.

एक दिन तुम मिलो तो
घर का सारा सामान ले
मेरा क़त्ल कर देना,
फिर रात भर रोना
मेरे ख्वाब बुनकर.

कहते हैं रूह अमर है.
लेकिन तुम क़त्ल करना मेरी रूह भी,
अगले जन्मों के
बेनाम रिश्ते भी
यहीं दफ़न हों, जायज़ है.

एक दिन

घडी वक़्त बताती है,
तुम्हारे लौट आने का वक़्त नहीं.
डार्क कॉफी
नींद मारती है
तुम्हारे ख्वाब नहीं!

तुमको तो पता होगा
जाते-जाते तुम
मुझे भी उठा ले गये थे.
मुझे लौटाने ही सही
आ जाओ एक दिन!

Wednesday, November 6, 2013

पत्थरों पे छैनी से लिखे कुछ दिन.…




1. तुम्हें देखता हूँ तो लगता है गर इंसान कि ज़िन्दगी में सिर्फ बचपन ही होता तो दुनिया ज्यादा खूबसूरत होती. कहते हैं, बचपना जितना बच रहता है, आदमी में उतनी ही आदमियत बचती है. तुममें बहुत इंसानियत है 'बेटू'.


2. तुम एक दिन मुझसे मिलना और कहना 'गलती मेरी नहीं थी' और मैं झुठलाउंगा तर्कों से. लेकिन सच तो ये है तमाम तर्कों के बाद भी मैं तुम्हें नहीं झुठला सकता. कुछ सच झूठ के परदे में ज्यादा खूबसूरत लगते हैं.


3. सबसे बड़ा सुकून अपनी जड़ों तक लौटना है और मिट्टी की गंध महसूस कर पाना है. मैं कभी कभी महसूस कर पाता हूँ कि पापा को अपने गांव में ही सबसे ज्यादा सुकूं क्यूँ मिलता है.


4. 'अब मेरा उद्देश्य सिर्फ शादी करना है...क्यूंकि माँ-बाप ऐसा चाहते हैं.' मैं पूछना चाहता था कि फिर माँ-बाप ने तुम्हें पढ़ाया-लिखाया किसलिए था. लेकिन रुक जाता हूँ. शायद हमेशा खून के रिश्तों का ज़िन्दगी पे ज्यादा हक़ होता है.


5. 'मुझे उससे इश्क़ था... हम 'लेक' साथ गये थे.... जाने से पहले पूरे छह: घंटे तो मेरे साथ थी.' वो पीते-पीते कहता है,  फिर कुछ देर बाद बीच सड़क पे रात बारह बजे हंगामा खड़ा करता है.  मैं उसे थप्पड़ मारते घर ले आता हूँ.
  ये हंगामा किसलिए? जिसने कभी तुम्हें नहीं चाहा उसके लिए?
 मेरी तमाम सोच शून्य है. क्या तुम बताओगी मुझे, ये जाने वाली लड़की?


6. वो शाम गुस्से में घर आता है...बीवी पे दो हुक्म चला तीन थप्पड़ जमाता है. शायद बाहर से खंडित व्यक्तित्व ले के आये इंसान का व्यक्तित्व घर  में औरतें हुक्म मान सदियों से बनाती आ रही हैं.


7. 'यू आर अ गुड टीम प्लेयर, तुम सबसे मिक्स हो जाते हो....लेकिन मुझे लगता है तुम्हें अब भी टेक्निकली हार्डवर्क की ज़रूरत है. टूल समझने की ज़रूरत है.' उसका बॉस उससे कहता है.
'मुझे इंसान दिखते हैं, सिर्फ मशीनें या टूल्स नहीं.' वो केबिन से बाहर रेसिग्नेशन लैटर फेंक निकल आता है.
मैंने उससे ज्यादा हौसले वाला इंसान तब तक नहीं देखा....सुना है वर्धा के एक स्कूल में इंसान बना रहा है.


8.  सुना है एक रात इंसान जब हद से गुजर जायेंगे, वानर राज करेंगे धरती पर.


Saturday, November 2, 2013

चार कवितायेँ


आंकड़े 


सन पंचानवे के बाद से अब तक
तीन लाख किसानों ने कर ली
आत्महत्या.
कॉलगेट और 3G मिला के
तीन लाख करोड़ से भी
अधिक का हुआ घपला.

कितने समान्तर से आंकड़े हैं ये
और आप कहते हैं इंसान अपनी मौत मरता है.

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संवेदना



मैं एसी बस में ऑफिस जाते
निहारता हूँ भूखे नंगे
फिर उनपे लिखता हूँ एक कविता.

आप पढ़ के कहते हैं
'बहुत भावुक हूँ मैं.'
एसी मैं बैठ 
कवितायेँ लिखना
प्रमाण नहीं संवेदना का.

मैं हूँ संवेदनहीन,
और आपकी भी संवेदनाएं मरी हैं
मुझसे भी कहीं ज्यादा.

---***---


एक्स-गर्लफ्रेंड


ऐसी औरत
जिसने कभी इश्क़ नहीं किया कभी
'जितना दोगे, उतना पाओगे' को
झुठला दिया
...और ज़रूरतों में मेरी
चुचाप मुंह छिपा चली गयी.

अब मत पूछना 
कैसे याद करूँगा मैं तुम्हें
मेरी एक्स-गर्लफ्रेंड.

ये इश्क़ एकतरफ़ा तो नहीं था.

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मौसम 


गली के कोरों से, मुसलसल टपकता
नुक्कड़ पे भिगोता है पुराने ख़त.
यार! कहने को मौसम बहुत हैं मगर,
यहाँ बस बरसता है तसव्वुर तेरा!