Saturday, September 2, 2017

मनु-श्रद्धा

मैं तुम्हें फिर मिलूंगा
दंडकारण्य के उन जंगलों में
(अगर इंसान ने अंतिम पेड़ भी न काट लिया तो.)
जहाँ शेर और भालुओं के बीच
हरी नदी का कंचन पानी पिया था हमने.

मैं तुम्हें फिर मिलूंगा
अमल-धवल शिखरों के पार
(अगर आखिरी पर्वत भी सपाट होने से बचा रहा.)
जहाँ सुनहरी डूब पर लेते
हमने प्रथम बार आलिंगन किया था.
मैं तुम्हें फिर मिलूंगा
तमिलनाडु के तटों पर
(अगर तेल रिसाव से बचे रह गए वे)
जहाँ की रेत पर बैठ हमने बुने थे
सपने हरी धरती के.
मैं तुम्हें फिर मिलूंगा
उत्तरी ध्रुव की सफ़ेद चादर पर बैठा
(अगर ग्लोबल वार्मिंग से बचा रह गया बर्फ का आखिरी टुकड़ा.)
जहाँ सफ़ेद भालुओं के झुण्ड
हमारे संग खेलते-मचलते थे.
मैं तुम्हें फिर मिलूंगा
किसी सागर में मछलियों संग तैरता
(अगर आखिरी मछली भी न निगल गया इंसान)
जहाँ के खारे जल में
तुमने प्रथम दफे चूमा था मुझे.

मैं मनु- 'मनुज जन्मदाता' वादा करता हूँ  
मैं तुम्हें फिर मिलूंगा 'श्रद्धा'
इसी धरती पर
जहाँ बच्चे जने थे हमने
जहाँ सृष्टि रची थी अपनी हमने,
जब आकाश नीला हुआ करता था,
धरती हरी
और पानी कंचन.
अगर उन बच्चों ने बची रहने दी धरती.
कुकृत्यों से उनके
पूर्णत: तबाह न हुई तो,
मैं तुम्हें फिर मिलूंगा.

*मनु और श्रद्धा मानव के प्रथम पूर्वज हैं. 'जयशंकर प्रसाद' के महाकाव्य 'कामायनी' के प्रमुख चरित्र.