घटना 7th जून की है. तरकरीबन शाम के 6:00 बज रहे हैं, दिन ढलने को है कि मेरे पास फोन आता है कि "एक चीतल कुएं में गिर गया है." मैं उस जगह से 35-40 मिनट दूरी पर हूं. मैं घटनास्थल के निकटतम चौकी स्टाफ को फोन करता हूं. स्टाफ बेचारा पांच-दस मिनट पहले ही दिन भर गस्ती करके वापस आया है. स्टाफ थकान एक किनारे रख 10 मिनट के अंदर ही आवश्यक सामान सहित घटनास्थल पर होता है.
कुआं 30-40 फीट गहरा है और सूखा है. पहले रस्सी डालकर नीचे जाने का प्लान किया जाता है, किंतु इससे चीतल घबराकर उछल कूद करना शुरू कर देगा और चोटिल हो सकता है. टीम के सदस्य कुएं के बंधान के पत्थरों के सहारे उतरना शुरू करते हैं. शायद आपको पता नहीं है किंतु जितना मानव जीवन का मूल्य किसी आम आदमी के लिए होता है, वनकर्मी के लिए उतना ही मूल्यवान वन्यप्राणी का जीवन होता है.
कुएं में उतरकर पांच मिनट तक चीतल से आंखें मिलाई जाती हैं, जिससे उसकी घबराहट कम हो और वनकर्मियों को वह खतरे के रूप में ना देखे. फिर धीमे से साथ ले जाल को फेंका जाता है और एक बार चीतल के जाल में अच्छे से फंस जाने के बाद धीमे धीमे ऊपर खींच लिया जाता है. पूरा रेस्क्यू ऑपरेशन मात्र 20 मिनट में कर लिया गया है!
जाल को सम्हाल कर निकालते हैं और चीतल के इस सबएडल्ट (sub-adult) बच्चे को परीक्षण कर छोड़ दिया जाता है.
चीतल कुलांचे भरते हुए तेजी से भाग जाता है. टीम के चेहरे खुशी और सुकून से खिल गए हैं.
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