महाकाव्य रामायण में अक्षयकुमार को पढ़ते पढ़ते अनायास ही महाकाव्य महाभारत के अभिमन्यु का स्मरण हो आता है. यहाँ सोलह साल का कुमार अपने पिता से जिद कर के देश में घुस आये अज्ञात शत्रु से भिड़ने के लिए चला जाता है, वहां तेरह साल का कुमार अपना अधूरा ज्ञान लिए अपने ताऊ युद्धिष्ठर से जिद कर लड़ने चला जाता है. वही ज़िद, वही जूनून. यहां हनुमान इस छोटे से बालक की वीरता देख हतप्रभ हैं और उसकी तारीफ में कहते हैं -
अयं महा त्मा च महां श्च वी र्यतः समा हि तश्चा ति सहश्च संयुगे। असंशयं कर्मगुणो दया दयं सना गयज्ञैर्मुनि भि श्च पूजि तः ॥ २७॥ (वाल्मीकि रामायण)
वहां व्यूह रचनाकार द्रोण, कर्ण जैसे प्रतापी योद्धा उसके कौशल को देख अत्याधिक प्रभावित हैं. यहाँ यह किशोर जहाँ हनुमान जैसे प्रतापी से युद्धरत होकर वीरगति को प्राप्त होता है वहीँ अभिमन्यु के सामने तो द्रोण, कर्ण, दुर्योधन इत्यादि सात सात महारथी थे. वह अंत तक लड़कर वीरगति को प्राप्त होता है.
आप सोच रहे होंगे कि मैं क्यों अक्षयकुमार और अभिमन्यु को तौल रहा हूँ, जबकि अक्षयकुमार तो अधर्म के साथ खड़ा था और अभिमन्यु धर्म के साथ... मैं कहूंगा, अक्षयकुमार भी अपने धर्म का पालन आकर रहा था, घर में घुस आये अज्ञात शत्रु से लड़ रहा था. तब उसका धर्म यही था और उसने उसका पालन अपने मृत्यु तक किया.
अक्षयकुमार रावण का सबसे छोटा पुत्र था और मंदोदरी के गर्भ से जन्मा था. एक कथा अनुसार वह रावण की दूसरी पत्नी धन्यमालिनी की कोख से जन्मा था. बाल्मीकि रामायण अनुसार वह बहुत ही पराक्रमी योद्धा था और मात्र सोलह की उम्र में उसने समस्त अस्त्र शास्त ज्ञान प्राप्त कर लिए थे. शुक्राचार्य के दिए वेद पुराण ज्ञान से वह पिता की ही तरह प्रकांड पंडित बन गया था. बाल्मीकि रामायण अनुसार अक्षयकुमार का युद्ध कौशल देख हनुमान बड़े प्रभावित थे और वाल्मीकि रामायण में इसे ऐसे बखान किया गया है :
ततः शरैर्भि न्नभुजा न्तरः कपिः कुमा रवर्येण महा त्मना नदन्।
महा भुजः कर्मवि शेषतत्त्ववि द् वि चि न्तया मा स रणे परा क्रमम्॥ २५॥
इतने ही में महा मना वी र अक्षकुमा र ने अपने बा णों द्वा रा कपि श्रेष्ठ हनुमा न जी की दो नों भुजा ओं के मध्यभा ग–छा ती में गहरा आघा त कि या । वे महा बा हु वा नरवी र समयो चि त कर्तव्यवि शेष को ठी क-ठी क जा नते थे; अतः वे रणक्षेत्र में उस चो ट को सहकर सिं हना द करते हुए उसके परा क्रम के वि षयमें इस प्रका र वि चा र करने लगे- ॥ २५ ॥
अबा लवद् बा लदि वा करप्रभः करो त्ययं कर्म महन्महा बलः ।
न चा स्य सर्वा हवकर्मशा लि नः प्रमा पणे मे मति रत्र जा यते॥ २६॥
‘यह महा बली अक्षकुमा र बालसूर्य के समा न तेजस्वी है और बा लक हो कर भी बड़ों के समा न महा न् कर्म कर रहा है। युद्धसम्बन्धी समस्त कर्मों में कुशल हो ने के का रण अद्भुतद्भु शो भा पा ने वा ले इस वी र को यहाँ मा र डा लने की मेरी इच्छा नहीं हो रही है।॥ २६॥
अयं महा त्मा च महां श्च वी र्यतः समा हि तश्चा ति सहश्च संयुगे। असंशयं कर्मगुणो दया दयं सना गयज्ञैर्मुनि भि श्च पूजि तः ॥ २७॥
‘यह महा मनस्वी रा क्षसकुमा र बल-परा क्रम की दृष्टि से महा न् है। युद्ध में सा वधा न एवं एका ग्रचि त्त है तथा शत्रु के वेग को सहन करने में अत्यन्त समर्थ है। अपने कर्म और गुणों की उत्कृष्टता के का रण यह ना गों , यक्षों और मुनि यों के द्वा रा भी प्रशंसि त हुआ हो गा , इसमें संशय नहीं है।। २७॥
परा क्रमो त्सा हवि वृद्धमा नसः समी क्षते मां प्रमुखो ऽग्रतः स्थि तः । परा क्रमो ह्यस्य मनां सि कम्पयेत् सुरा सुरा णा मपि शी घ्रका रि णः ॥२८॥
‘परा क्रम और उत्सा ह से इसका मन बढ़ा हुआ है। यह युद्ध के मुहा ने पर मेरे सा मने खड़ा हो मुझे ही देख रहा है। शी घ्रता पूर्वक युद्ध करने वा ले इस वी र का परा क्रम देवता ओं और असुरों के हृदय को भी कम्पि त कर सकता है॥ २८॥
(साभार : ramcharit.in )
हालाँकि मानस में अक्षयकुमार की वीरता का कोई बखान नहीं है और जितनी डिटेल में महाभारत में अभिमन्यु के कौशल और वीरता का बखान है उतना वाल्मीकि रामायण या अन्य किसी में अक्षयकुमार का नहीं है. स्वाभाविक भी है. वह एक राक्षस कुमार था अनैतिक रावण का पुत्र था. किसी भी महाकाव्य में एंटी हीरो की तारीफें स्वाभाविक रूप से कम ही होंगी, किन्तु जितना भी बखान है वो अनायास ही अभिमन्यु की याद दिला देता है. एक किशोर का अपने परिवार हेतु अपने प्राणों को न्यौछावर कर देना कितना अद्भुत है!