भाईसाहब के दादू आए हैं. अब वो मम्मा पापा को भी भूल गए हैं. अगर उन्हें साइकिल से उतरना है तो भले ही मम्मा पापा पास हों, आवाज आती है 'दा..दू...' बाहर झूले पे जाना है तो भी दादू ही लेकर जाएंगे, ग्राउंड में साइकिल चलाना है तो भी आवाज दादू को ही दी जायेगी 'दादू त..ओ.., दादू त..ओ...'
दादू भी उन्हें खुद की थकान भूलकर घुमाते रहते हैं.
कभी-कभी भाईसाहब पापा नाम लेकर 'वि..देत...' बोलते हैं अब दादू को भी उनसे क्यूट और तोतली आवाज में अपना नाम सुनने की इच्छा है. चाचू उन्हें दादू का नाम लेना सिखा रहे हैं. वो 1-2 दिन में सीख भी गए हैं. अब उन्हें किसी बात पर दादू की जरूरत है, वो चिल्लाते हैं 'दा..दू...' दादू सुन नहीं पाते हैं तो जोर से चिल्लाते हैं 'दादू... दा..दू... वि.. ब.. ल...' हम सब लोटपोट हो रहे हैं. चाचू और पापा को हंस हंसकर पेटदर्द हो गया है.
दादू ने भाईसाहब को खुशी से गोद में उठा लिया है और ढेर सारा प्यार कर रहे हैं और भाईसाहब की हंसी रूक नहीं रही है.
#शौर्य_गाथा
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